कर्सियांग में धर्मगुरु पेंबा रिम्पोछे ने अलग राज्य के लिए तैयार किया मैप, दावा- यह भारत के संविधान अंतर्गत
शामी लाखांग मोनाष्ट्री के धर्मगुरु पेंबा रिम्पोछे ने कहा बार-बार फेलियर होने के बावजूद गोरखालैंड की बात उठ रही है। बंगाल में नहीं रहेंगे कहनेवाले पुनः बंगाल के संविधान में रहने की बात कर रहे हैं। गोरखालैंड के नाम में राजनीति कर विधायक बननेवाले गोरखालैंड की बात छोड़ देते हैं।
कर्सियांग, मुरारी लाल पंचम। दार्जिलिंग जिले के कर्सियांग स्थित शामी लाखांग मोनाष्ट्री के धर्मगुरु पेंबा रिम्पोछे ने कर्सियांग के हिल कार्ट रोड स्थित एक होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। मीडिया से बातचीत करते हुए धर्मगुरु पेंबा रिम्पोछे ने हाल ही में बंद हुए बंसल कंपनी अधीनस्थ रहे दस चाय बागानों का जिक्र करते हुए कहा कि चाय बागान में कार्यरत श्रमिकों से अपनी वेतन, दिहाड़ी आदि के मांग को लेकर जिलाशासक कार्यालय के सामने कुछेक नेताओं ने कथित रूपसे थाली बजाने व भूख हड़ताल कराने के लिए लगाया । अंत में दो किश्त में बकाया वेतन,अदिहाड़ी देने का आश्वासन देते हुए भूख हड़ताल खत्म कराया गया व बंसल कंपनी अधीनस्थ बंद रहे चाय बागानों को खोला गया। यह अच्छी बात है। परंतु आगामी वर्ष -2023 में त्योहारी सीजन के दौरान पुन: इस प्रकार से श्रमिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ा तो,पहले नेतृत्वों को भूख हड़ताल में बैठना होगा। यह नेतृत्वों को पूर्ण जिम्मेवारी लेना पड़ेगा। मैंने कहा था कि यदि बंसल कंपनी की लीज खारिज कर शामी लाखांग मोनाष्ट्री को लीज सुपुर्द कर दिया जाये तो,मैं एक बार में ही श्रमिकों के बकाया राशि का भुगतान कर देता। बागानों को सुचारु रूपसे पीपीएस की भांति संचालन करता। परंतु ऐसा नहीं हुआ। इस कंपनी के मालिक द्वारा ही समस्याओं का समाधान किया गया। यह अच्छी बात है। यदि पीपीएस की भांति सदा के लिए है तो,ठीक है। यदि ऐसी नहीं है तो,यह ठीक नहीं है। श्रमिकों के हित में चेतावनी भरे लहजे में उन्होंने कहा कि आगामी वर्ष -2023 में ऐसी हालात उत्पन्न ना हो?
गोरखालैंड की बात फिर उठ रही
उन्होंने आगे कहा कि इस 10 चाय बागानों को मात्र नहीं, बल्कि दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र में रहे संपूर्ण 87 चाय बागानों में कार्यरत श्रमिकों को यदि किसी प्रकार से सहायता की आवश्यकता हुई तो मैं सहयोग पहुंचाने का वचन देता हूं। मैं चाय बागानों में कार्यरत श्रमिकों के शोषण व अत्याचार को कदापि सहन नहीं करूंगा।
अलग राज्य गोरखालैंड की मांग के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सुवास घीसिंग गोरखालैंड के जन्मदाता हैं। उन्होंने अपनी जीवित अवस्था में ही गोरखालैंड को तिलांजलि देकर दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद (दागोपाप ) लिया था। गोरखालैंड बार-बार फेलियर होने के बावजूद पुन:गोरखालैंड की बात उठ रही है। बंगाल में नहीं रहेंगे कहनेवाले पुनः बंगाल के संविधान में रहने की बात कर रहे हैं। गोरखालैंड के नाम में राजनीति कर विधायक बननेवाले गोरखालैंड की बात छोड़ कथित रूपसे माथे में बंदरों को नचाने, मधुमक्खियों को खाने, दूसरों के काम के पीछे लगने का कार्य कर रहे हैं। क्या विधायकों का काम यहीं है? उन्होंने प्रश्न भी रखा।
सिर्फ गोरखालैंड नहीं एक संपूर्ण राज्य का मानचित्र
उन्होंने कहा कि मैं बंगाल के दासत्व से लोगों को एक दिन अवश्य मुक्त कराउंगा। मैं भारत के संविधान अंतर्गत अलग राज्य के लिए मानचित्र तैयार किया हूं। इस पर मैं कार्य कर रहा हूं। मैं सही मार्गदर्शन करूंगा। मुझे आप लोगों की साथ चाहिए। मेरा साथ दीजिए। उन्होंने कहा कि गोरखालैंड का मानचित्र लेकर नहीं, बल्कि अलग राज्य का मानचित्र लेकर कार्य कर रहा हूं।