जीएनएलएफ ने पैतरा बदल विमल गुरुंग को लिया आड़े हाथो
गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने दागोपाप शासन के साथ ही छठी अनुसूची के तहत ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र को संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित होने की बात दोहराई।
दार्जिलिंग, [संवादसूत्र]। गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने दागोपाप शासन के साथ ही छठी अनुसूची के तहत ही दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र को संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित होने की बात दोहराई। पार्टी नेता ने कहा कि गोजमुमो के शीर्ष नेता विमल गुरुंग ने जातीय उन्मूलन के नाम पर नई दिल्ली मे कई कार्य कर पहाड़ वासियो के अच्छे दिन आने का वादा किया था। उन्होने हाल ही मे ऑडियो टेप जारी कर पहाड़ पर शासन के लिए किसी भी नई व्यवस्था को खारिज कर दिया है। साथ ही साथ पहाड़ के अन्य दलो की तरह ही अनुसूची का विरोध ही किया है। इससे पूर्व अभागोली तथा क्रामाकपा जैसे दल छठी अनुसूची को जाति के लिए विभाजनकारी बताकर विरोध करते रहे है। वही दूसरी ओर विनय तामांग के नेतृत्व वाला जीटीए बोर्ड प्रशासन राज्य सरकार के साथ मिलकर पहाड़ पर नई प्रशासनिक व्यवस्था पर बल दे रहा है।
गोरामुमो दार्जिलिंग जिला समिति प्रवक्ता संदीप लिंबु तथा संजीव तामांग गुरुंग ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर कहा कि विमल गुरुंग अगर भाजपा के साथ मिलकर पहाड़ के लोगो के लिए तथा जाति के विकास के लिए कुछ सकारात्मक कर पाते है और गोरखालैड राज्य लाने मे सक्षम होते है तो पार्टी उनका विरोध न करते हुए साथ देगी। हालांकि पार्टी नेताओ ने चेताते हुए कहा कि अगर गुरुंग वापस जीटीए जैसी असंवैधानिक व्यवस्था को ही बढ़ावा देते है तो पार्टी उनका विरोध करेगी। पार्टी नेताओं ने छठी अनुसूची दस्तावेज दिखाते हुए तथा प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि दार्जिलिंग तथा कालिम्पोग मे ऐसे भूभाग का बड़ा हिस्सा है जो केद्र के अधीन है किंतु अगर छठी अनुसूची को लागू किया जाता है तो पहाड़ वासी को न सिर्फ यह भूभाग वापस मिलेगे अपितु यह करने वालो मे दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र का पहला स्थान होगा। लिंबु ने पहाड़ के सियासी दलो को छठी अनुसूची दस्तावेज को देखने और इसका अध्ययन करने का सुझाव देते हुए कहा कि ऐसा करने से जो दल अनुसूची का विरोध कर रहे है वो शायद पहाड़ के हित मे विरोध न करे। लिंबु ने वर्ष 1931 का जिक्र करते हुए बताया कि जनगणना के आधार पर पहाड़ वासी जनजाति की श्रेणी मे आते थे जिसका अनुसरण करते हुए ही पार्टी ने बीते दागोपाप शासन के दौरान कुल 28 सदस्यों का निर्वाचन किया गया था तथा 5 लोगो को मनोनीत किया गया था।गोरामुमो प्रवक्ता ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा छठी अनुसूची का विरोध करने के आरोपो का जवाब देते हुए कहा कि जब वर्ष 2005 मे अनुसूची का मसौदा राज्य सरकार तथा केद्र के समक्ष रखा गया था तब स्वयं सीएम ने केद्र का विरोध करते हुए अनुसूची का समर्थन किया था। उन्होने छठी अनुसूची को पहाड़ समस्या का स्थाई समाधान बताते हुए आम लोगो से इसका समर्थन करने की अपील की। पार्टी नेताओ द्वारा छठी अनुसूची को ही जीटीए जैसी असंवैधानिक व्यवस्था का संवैधानिक विकल्प बताया। ज्ञात हो कि 22 अगस्त 1988 को दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद का समझौता हुआ था। पहाड़ पर 21 वर्ष के गोरामुमो के शासन के बाद जनवरी 2005 मे छठी अनुसूची के तहत दागोपाप शासन की बढ़ोलारी की मांग पर सुभाष घीसिंग ने केद्र सरकार तथा राज्य सरकार के साथ मिलकर मसौदे पर हस्ताक्षर किया था। इस दौरान ही अभागोली के तत्कालीन अध्यक्ष मदन तामांग ने छठी अनुसूची का विरोध करते हुए घीसिंग की कार्रवाई का विरोध करते हुए किनारा कर लिया था। उनके विरोध के चलते छठी अनुसूची मसौदा स्टैडिंग समिति के समक्ष चला गया था जो बाद मे लोकसभा व राज्यसभा मे अटक गया था। बिल पारित होने मे हो रही देरी तथा इस बीच ही 7 अक्टूबर 2007 मे विमल गुरुंग के नेतृत्व मे शुरू हुए आंदोलन और उनके बढ़ते जनाधार के बाद आखिरकार वर्ष 2008 मे घीसिंग का राज और ताज दोनो ही उनसे छिन गया था। इन सबके बावजूद बीती 28 जनवरी को मोटर स्टैड मे आयोजित गोरामुमो की जनसभा मे उमड़े जनसैलाब से उत्साहित पार्टी ने अपने पुराने मुद्दो को धार देना शुरू कर दिया है।