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बापू जिस मकान में ठहरे थे वह अब तस्वीरों में सिमटी याद बन कर रह गया है

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वर्ष 1925 के मई महीने में सिलीगुड़ी आए थे। तब, यहां से एक अनचाहा विवाद उनके पल्ले पड़ गया। देश भर में उसकी ही चर्चा छिड़ गई।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 02 Oct 2018 01:13 PM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2018 01:13 PM (IST)
बापू जिस मकान में ठहरे थे वह अब तस्वीरों में सिमटी याद बन कर रह गया है

सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वर्ष 1925 के मई महीने में सिलीगुड़ी आए थे। तब, यहां से एक अनचाहा विवाद उनके पल्ले पड़ गया। देश भर में उसकी ही चर्चा छिड़ गई। विरोधियों ने मामले को तूल देने की बड़ी कोशिश की लेकिन धीरे-धीरे मामला ठंडा पड़ गया।

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16 जून 1925 को निधन से पहले कई महीने तक स्वाधीनता सेनानी ‘देशबंधु’ चित्तरंजन दास गंभीर बीमार रहे थे। उन्हें देखने के लिए ही बापू यहां आए थे। सियालदह से दार्जिलिंग मेल के जरिये वह सिलीगुड़ी जंक्शन (अब सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन, थोड़े से बदलाव के साथ आज भी उसी रूप में मौजूद व चालू) पहुंचे। यहां से बापू दार्जिलिंग गए। उस सफर में यहां के तत्कालीन दिग्गज कांग्रेसी नेता शिवमंगल सिंह भी उनके साथ रहे थे। दार्जिलिंग के माल स्थित चित्तरंजन दास के मकान पर जा कर गांधी जी ने उनका हालचाल लिया और वहां एक दिन ठहरे भी।

दार्जिलिंग से वापसी के क्रम में महात्मा गांधी सिलीगुड़ी में कांग्रेस नेता शिवमंगल सिंह के मकान पर भी ठहरे। वहां उन्होंने कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं संग बैठक भी की। शहर के हाशमी चौक के निकट हिलकार्ट रोड पर आज उस मकान की जगह शहर की सबसे पहली 10 मंजिला इमारत निलाद्री शिखर बिल्डिंग कायम है। बापू जिस मकान में ठहरे थे वह अब तस्वीरों में सिमटी याद बन कर रह गया है, जिसे आज भी कई कद्रदानों ने अपने घरों में संजो कर रखा हुआ है।

शहर के वे कुछ लोग गर्व से कहते हैं कि उनके पास उस घर की तस्वीर है जिसमें कभी बापू ने एक दिन व एक रात गुजारी थी। अपने पुरखों से विरासत में मिली यादों को ताजा करते हुए शहर के उद्यमी व समाजसेवी नंदू सिंह बताते हैं कि उस समय एक विवाद बापू के पल्ले पड़ गया था।

कांग्रेस नेता शिवमंगल सिंह ने यहां की पहाड़ी संस्कृति व परंपरा के तहत बापू को जहां खादी पहनाया था वहीं ‘खुकुरी’ भी भेंट की थी। तब, देश भर में यह चर्चा का विषय बन गया कि अहिंसा के पुजारी ने आखिर कैसे हिंसा के हथियार का तोहफा कबूल कर लिया? गांधी जी के विरोधियों ने इसे मानो बड़ा मुद्दा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मगर, धीरे-धीरे समय के साथ मामला ठंडा पड़ गया। आज भले ही बापू नहीं हैं लेकिन उनकी यादें कायम हैं और हमेशा रहेंगी। 


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