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प्लास्टिक के साथ ही थर्मोकोल और प्लास्टर ऑफ पेरिस के प्रयोग पर रोक

-दुर्गा पूजा में नदियों को प्रदूषित होने से बचाने पर जोर - नगर निगम के साथ राज्य सरकार ने भ

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 Sep 2020 06:40 PM (IST)Updated: Mon, 28 Sep 2020 06:40 PM (IST)
प्लास्टिक के साथ ही थर्मोकोल और प्लास्टर ऑफ पेरिस के प्रयोग पर रोक
प्लास्टिक के साथ ही थर्मोकोल और प्लास्टर ऑफ पेरिस के प्रयोग पर रोक

-दुर्गा पूजा में नदियों को प्रदूषित होने से बचाने पर जोर

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- नगर निगम के साथ राज्य सरकार ने भी शुरू की तैयारी

-विसर्जन के साथ ही प्रतिमाओं की बाहर निकालने की होगी व्यवस्था -----

-कोरोना काल में पर्यावरण के प्रति सचेत होने का समय -प्रशासनिक स्तर पर बड़े पैमाने पर शुरू होगा जागरूकता अभियान

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अक्टूबर से शूुरू है दुर्गा पूजा,अन्य पूजा भी नजदीक

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लाख से अधिक प्रतिमाओं का विसर्जन पूरे उत्तर बंगाल

अशोक झा, सिलीगुड़ी :

कोरोना काल में मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद से दुर्गापूजा की तैयारी में पूजा कमेटी के लोग और मूर्तिकार लगे हुए हैं। इस वर्ष पूजा के साथ नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए भी तैयारियां अभी से शुरु हो गयी है। प्रशासनिक, राजनीतिक या सामाजिक तीनों ही स्तर पर नदियों को प्रदूषण मुक्त रखने की बात की जा रही है। कहने का मतलब है मूíतयों का विसर्जन भी हो और नदियों का प्रदूषण भी ना हो। सुनकर भले ही अटपटा लगे परंतु जिस प्रकार आधुनिक युग में मूíतयों को तैयार किया जा रहा है वह नदियों में विष घोलने का काम करता है। यहीं कारण है कि इन दिनों उत्तर बंगाल में पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्थाओं ने प्रदूषण रोकने के प्रति सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने देश में पर्यावरण अनुकूल तरीके से मूíत विसर्जन के लिए देवी-देवताओं की मूíतया प्लास्टिक, थर्मोकोल और प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनाने पर रोक लगा दी है।

सीपीसीबी ने मूíत विसर्जन के संबंध में 2010 के दिशानिर्देशों को हितधारकों की राय जानने के बाद संशोधित किया है। उसने विशेष तौर पर प्राकृतिक रूप से मौजूद मिट्टी से मूíत बनाने और उन पर सिंथेटिक पेंट एवं रसायनों के बजाय रंग का उपयोग करने पर जोर दिया है। सीपीसीबी के अधिकारियों ने कहा कि एक बार इस्तेमाल करने योग्य प्लास्टिक और थर्मोकोल से मूíतया बनाने की अनुमति बिल्कुल नहीं दी जाएगी। केवल पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल मूíतया, पंडाल, ताजिया बनाने और सजाने में किया जा सकेगा। जिससे कि जलाशयों में प्रदूषण नहीं हो।

17 अक्टूबर से दुर्गा पूजा, उसके बाद लक्ष्मी पूजा, कालीपूजा और उसके बाद भंडारी पूजा को लेकर मूíतया तैयार हो रही है। उत्तर बंगाल में प्रतिवर्ष कम से कम तीन लाख प्रतिमाएं नदियों में विसíजत की जाती है। प्रतिमाओं में इन दिनों रंग के जगह पर रसायनिक पेंट का इस्तेमाल जल प्रदूषण के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इस वर्ष सिटीजन फोरम, नैफ, बिहारी कल्याण मंच और विज्ञान मंच की ओर से स्कूली छात्र छात्राओं को लेकर नदियों को बचाने का प्रयास प्रारंभ किया गया है। यह प्रयास कितना सफल हो पाता है यह तो समय ही बताएगा। सिलीगुड़ी नगर निगम में वामो बोर्ड ने तो महानंदा नदी को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने का निर्णय लिया है। जिसके तहत प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही प्रतिमाओं को तत्काल वहा तैनात कíमयों द्वारा बाहर निकाल लिया जाएगा। कमेटिया भी नदी में मूíत विसर्जन के साथ प्रतिमाओं को निकालने का काम करेगी। इतना ही नहीं पूजा में प्रयोग आने वाली सामग्री को नदी में विसíजत नहीं करने दिया जाएगा। उसके लिए वहा बॉक्स बनाया जाएगा। वहीं, सामग्री को कमेटी को रखना पड़ता है। इस मॉडल को राज्य के सभी पंचायतों व जिलों में अपनाया जाए तो नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है। मूíत विसर्जन के समय नदी के कुछ ऐसे परिवार भी होते हैं, जो प्रतिमा विसर्जन के साथ ही प्रतिमा को नदी से बाहर निकाल लेते हैं। जिससे विसर्जन के साथ-साथ सफाई का कार्य भी हो जाता है। प्रतिमा बनाने वालों की अपनी मजबूरी

कुम्हार टोली के मुíतकार अधीर पाल ने बताया कि मुíतकार प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभिन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग करते हैं। मूíत के रंगों को विविधता देने के लिए फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। ईमली के बीज के पाउडर से गम तैयार किया जाता है एवं उस गोंद से पेंट बनाते हैं। इसके साथ ही प्रतिमाओं को चमक देने के लिए बाíनस का प्रयोग होता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। भारी मात्रा में प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण की संभावना काफी है। ऐसा करना हमारी मजबूरी है। ------------- उत्तर बंगाल में नदियों के प्रति जागरुकता नहीं बढ़ायी गयी तो आने वाले दिनों में नदिया सिर्फ नाम की बच जाएगी। प्रदूषित होने के साथ इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। नदिया समाप्त होगी तो इसमें पाए जाने वाली जीव जन्तु भी नहीं बचेंगे। इसलिए नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए हम सबको मिलकर काम करना होगा। प्रशासन की जिम्मेदारी के साथ ही आम जनता की भी यह जिम्मेदारी है।

अनिमेष बसु, संयोजक,नैफ

---------------- पर्यावरण के प्रति पहले पूजा कमेटियों को जागरुक किया गया है। पर्यावरण सरंक्षण पर पुरस्कार की घोषणा भी की गयी है। अब मूíतकारों में जागरुकता लाने के लिए अभियान चलाया जाएगा। उनको बताएंगे कि,मूíत में ऐसे रंगों का प्रयोग न करें,जिससे नदियों के जल पर इसका असर पड़े। नगर निगम का पहला काम था नदी को प्रदूषित होने से रोकना। इसमें कुछ हद तक सफलता मिली है।

-अशोक भट्टाचार्य,चेयरमैन, नगर निगम प्रशासनिक बोर्ड -------------

मूíतकारों को जागरुक किया जाएगा। उन्हें बताया जाएगा कि कैसे मूíतयों में रंग भरा जाए जो इको फ्रेंडली हो। प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार की ओर से हर उपाय किए जा रहे हैं। आमलोगों को भी जागरूक रहने की आवश्यकता है। उत्तर बंगाल विकास मंत्रालय की ओर से जागरुकता अभियान चलाया जाएगा।

- रवींद्रनाथ घोष, उत्तर बंगाल विकास मंत्री

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पर्यावरण के प्रति सभी को सतर्क रहना होगा। सरकार की ओर से जागरूकता अभियान पर विशेष जोर दिया जा रहा है। वभिन्न क्लबों और मूíतकारों के अलावा पर्यटकों में भी जागरुकता लाने की जरूरत है। पर्यटन विभाग की ओर से लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाएगा,जिससे कि उत्तर बंगाल के नदियों को प्रदूषित होने से बचाया जा सकें।

- गौतम देव, पर्यटन मंत्री


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