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चाय बागान से निकली बेटियों ने तय किया फ्रांस तक का सफर

चाय बागान से लेकर फ्रांस तक का सफर। यह आश्चर्यजनक जरूर है लेकिन हौसला और चाहत हो तो मुश्किल भी नहीं। जलपाईगुड़ी के एक चाय बागान में काम करने वालों की बेटियों ने।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 26 Feb 2019 10:49 AM (IST)Updated: Tue, 26 Feb 2019 11:03 PM (IST)
चाय बागान से निकली बेटियों ने तय किया फ्रांस तक का सफर

सिलीगुड़ी, राजेश पटेल। चाय बागान से लेकर फ्रांस तक का सफर। यह आश्चर्यजनक जरूर है, लेकिन हौसला और चाहत हो तो मुश्किल भी नहीं। इसे कर दिखाया है पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के सरस्वतीपुर में एक चाय बागान में काम करने वालों की बेटियों ने। इन बेटियों की सोच भी बदल गई है। इन सबको जब रग्बी का उचित प्रशिक्षण मिला तो इन सब ने बता दिया कि बेटियों में कितना दम है। आज इनका लोहा पूरा देश मानता है। इनको पता चल गया है कि दुनिया चाय बागान ही नहीं है। खुला आसमान भी है, जहां वे अपने हिसाब से उड़ान भर सकती हैं।

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जॉर्ज मैथ्यू ने पहचानी प्रतिभा : चाय बागान की इन बच्चियों की प्रतिभा को पहचाना सरस्वतीपुर चर्च में प्रार्थना कराने के लिए आए एक फादर जॉर्ज मैथ्यू ने। उन्होंने कोलकाता में ‘जंगल क्रोज’ नामक संस्था चलाने वाले अपने दोस्त पॉल वाल्स को इन बेटियों के बारे में बताया तो वह इनको रग्बी खेल में पारंगत बनाने के लिए आगे आए। वाल्स कोलकाता में ब्रिटिश हाई कमीशन में उच्चायुक्त थे। उन्होंने यहां पर कोच के रूप में रोशन खाखा को नियुक्त किया। पहली बार 2013 में बेटियों ने चाय बागान के ही एक मैदान में इसे खेलना शुरू किया। तब से लेकर आज तक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कई बार राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लिया। अक्सर यह टीम फाइनल में पहुंचती है। कई बार मैच जीता भी है।

नेशनल टीम तक पहुंचीं : सरस्वतीपुर चाय बागान की नौ लड़कियां रग्बी की नेशनल टीम में खेल रही हैं। तीन तो पिछले साल फ्रांस में आयोजित यूथ ओलंपिक में भी खेल चुकी हैं। यूथ ओलंपिक के लिए भारत की जो टीम गई थी, उसकी कप्तान भी इसी चाय बागान में काम करने वाले एक दंपती की बेटी संध्या राय थी। वैसे तो इनको ढेरों सम्मान व पुरस्कार मिले हैं, लेकिन ‘दैनिक जागरण’ ने हाल ही में जब ‘आइकन ऑफ नार्थ बंगाल’ अवार्ड से इन बेटियों को नवाजा तो इनके लिए वे क्षण यादगार बन गए।

कोलकाता में पढ़ रहीं हैं खिलाड़ी बच्चियां: नेशनल टीम में खेलने वाली या खेल रही बच्चियों के नाम संध्या राय, रुश्मिता उरांव, आशा उरांव, सुमन उरांव, स्वप्ना उरांव, चंदा उरांव, रीमा उरांव, पूनम उरांव तथा लक्ष्मी उरांव हैं। इनमें से संध्या उरांव, सुमन उरांव, स्वप्ना उरांव व चंदा उरांव को ‘जंगल क्रोज’ नामक संस्था की ओर से स्कॉलरशिप देकर कोलकाता में पढ़ाया जा रहा है।

फुटबाल की तरह ही है रग्बी : रग्बी टीम के कोच रोशन खाखा ने बताया कि रग्बी फुटबॉल की तरह का ही खेल है, लेकिन कुछ बुनियादी अंतर भी हैं। इसकी गेंद नारियल के आकार की होती है। इसकी शुरुआत किक मारकर होती है, लेकिन बाद में हाथों से पीछे की ओर पास देना होता है। खाखा के मुताबिक इस खेल ने चाय बागान की गरीब परिवार की इन बच्चियों की सोच को रग्बी ने बदल दिया है।


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