दार्जिलिंग बंद से दो से तीन गुना सब्जियों के बढ़े दाम, वेतन न मिलने से आर्थिक संकट
गोरखालैंड की मांग पर टिके गोजमुमो (गोरखा जनमुक्ति मोर्चा) के बेमियादी आंदोलन से पर्वतीय क्षेत्र धीरे-धीरे भुखमरी की ओर बढ़ रहा है
सिलीगुड़ी, [जागरण संवाददाता] । बांग्ला भाषा की अनिवार्यता से शुरू होकर गोरखालैंड की मांग पर टिके गोजमुमो के बेमियादी आंदोलन से पर्वतीय क्षेत्र धीरे-धीरे भुखमरी की ओर बढ़ रहा है। आपूर्ति में आ रही निरंतर कमी से खाद्यान्न सहित आवश्यक वस्तुओं की कीमतें 20 दिन में ही आसमान छूने लगी हैं। यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब मुंहमांगी कीमत देने पर भी खाद्यान्न व जरूरी चीजें ढूंढें नहीं मिलेगी।
आंदोलन के 20 दिन गुजर चुके हैं। पर्वतीय क्षेत्र के बाशिंदे बंद के दौरान जमा किए गए घरेलू सामान के भंडारण से अब तक काम चला रहे हैं। घटने पर दो से तीन गुना अधिक दाम देकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं।
हालांकि इस माह वेतन के भी लाले पड़े हैं। कारण, अलग राज्य गोरखालैंड की मांग कर रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा द्वारा किए गए अनिश्चितकालीन बंद के आह्वान पर कहीं भयवश तो कहीं स्वेच्छा से व्यापारिक प्रतिष्ठान व बैंक नहीं खुल रहे हैं। आंदोलन के के बाद तो जो थोड़ी-बहुत जरूरतें पूरी हो जाती थीं वह भी अब दिन ढलने के बाद ही हो पा रही हैं। यहां तक कि सिलीगुड़ी से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी लुक-छिप कर हो रही है। हर कहीं की जानकारियां देने वाला इंटरनेट तो आंदोलन के बाद से ही बंद है।
आंदोलन की शुरुआत दार्जिलिंग से हुई तो वह कर्सियांग, कालिम्पोंग आदि पर्वतीय इलाकों में जंगल में आग की तरह फैल गई। आंदोलन से पड़ोसी राज्य सिक्किम भी अछूता नहीं रहा।
कर्सियांग में 20 रुपए किलो में बिकने वाला टमाटर छह गुना अधिक दाम पर 120 रुपए में बिक रहा है। चीनी 60 रुपये किलो में भी बमुश्किल मिल रही है। फिलहाल जरूरी वस्तुओं की उपलब्धता की बात करें तो अभी ऊंचे दामों अर्थात तीन से चार गुने में मिल रही हैं। दवा की दुकानें खुलती हैं और मरीज भी एंबुलेंस से इलाज के लिए जा रहे हैं, लेकिन लौटते में एंबुलेंस भी घरेलू सामान व साग-सब्जी ढोकर जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम कर रही हैं। कुछ वाहन वैवाहिक समारोह की पट्टी लगा मनमानी किराया वसूल सवारी व माल ढो रहे हैं।
दार्जिलिंग में भी कमोबेश यही हाल हैं। यहां खाद्यान्न व अन्य जरूरी चीजों का स्टाक घरों में उपलब्ध है, लेकिन आंदोलन लंबा खिंचने से यह भी खत्म होने के करीब है। दो जुलाई की रात तक रात तक यहां चोरी-छिपे खाद्यान्न सहित अन्य घरेलू सामान की आपूर्ति हुई। वाहनों के जलाए जाने के बाद से इस रफ्तार में भी कमी आई है। थोड़ी-बहुत मांग पूरी करने में एंबुलेंस आदि वाहन लगे हैं।
कालिम्पोंग में भी आंदोलन शबाब पर है। यहां भी अन्य क्षेत्रों की तरह कमरतोड़ महंगाई बढ़ी है। हालांकि यहां स्थिति अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कुछ बेहतर बताई जा रही है, लेकिन संकट के दौर से यह क्षेत्र भी गुजर रहा है। बंद के दौरान बाजार न खुलने से यहां पर भी आने वाले कल को लेकर लोग पसोपेश में हैं।
बहरहाल, यह हाल कुछ दिन और रहा तो बड़ी बात नहीं कि पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को खाने के भी संकट से जूझना पड़ सकता है। बंदी के चलते पर्वतीय क्षेत्र के अप्रतिम सौंदर्य को निहारने वाले पर्यटकों का टोटा भी आय पर बुरा असर डाल रही है। आर्थिक संकट व आपूर्ति में पड़ रहे व्यवधान से आने वाले दो-तीन दिनों में हालत बद से बदतर हो सकते हैं। देखा जाए तो निकट भविष्य में पेट भरने का संकट भी पर्वतीय क्षेत्र में हो जाए तो बड़ी बात नहीं है।
उत्तर बंगाल के पहाड़ी क्षेत्र दार्जिलिंग व कुछ अन्य क्षेत्रों में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन जारी है। इस बीच गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) से गोजमुमो प्रमुख व जीटीए के मुखिया बिमल गुरुंग समेत अन्य सभी निर्वाचित सदस्य इस्तीफा दे चुके हैं।
इस माह के अंत में जीटीए का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। उधर पश्चिम बंगाल सरकार ने जीटीए के लिए मंगलवार को बरुण राय को प्रशासक नियुक्त कर दिया।