कोरोना वायरस ने शिक्षा जगत को दिया नया आयाम
इरफान-ए-आजम सिलीगुड़ी इंसान को खुली आखों से न दिख सकने वाला कोरोना वायरस बहुत कुछ ि
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी: इंसान को खुली आखों से न दिख सकने वाला कोरोना वायरस बहुत कुछ दिखा रहा है। एक बहुत ही बहुत छोटे से वायरस ने दुनिया को बहुत बड़े-बड़े रास्ते दिखा दिए हैं। कोरोना वायरस के संकट व इसके चलते जारी विश्वव्यापी लॉकडाउन के मद्देनजर जहा बहुत सी चुनौतिया उत्पन्न हुई हैं वहीं बहुत से नए अवसर भी खुले हैं। कोरोना वायरस संकट से मनुष्य के जीवन का हर पहलू प्रभावित हुआ है।हर कुछ की नई-नई परिभाषाएं गढ़ी जाने लगी हैं। उसी में एक शिक्षा जगत भी है। कल तक जो स्कूल वाले विद्यार्थियों को क्लास में मोबाइल नॉट अलाउड की वार्निंग दिया करते थे आज वही स्कूल वाले मोबाइल अलाउड का सहारा ले कर क्लास चला रहे हैं। स्कूल व स्कूल के क्लासेज महीने भर से ज्यादा समय से बंद पड़े हैं। आगे और महीने भर से ज्यादा समय तक बंद रहेंगे। मगर, शिक्षाध्ययन को भी आखिर कब तक रोके रखा जा सकता है। यह भी चलना जरूरी है। सो, स्मार्ट फोन, लैपटॉप व कंप्यूटर आदि के सहारे ऑनलाइन स्मार्ट क्लास चलने लगे हैं।शिक्षा जगत ने डिजिटल क्लासेज के माध्यम से शिक्षाध्ययन की नई व्यवस्था को अपनाना शुरू कर दिया है। व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक ग्रुप व ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस कॉल, ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंस कॉल, ऑनलाइन कॉन्फ्रेंसिंग ऐप आदि-आदि के माध्यम से ऑनलाइन एजुकेशन इन दिनों मुख्यधारा में है। मगर, क्या यही सूरत-ए-हाल बरकरार रहेगी? ये सारी चीजें कोरोना वायरस संक्त्रमण काल तक ही तात्कालिक रहेंगी या फिर आगे यह नई व्यवस्था मुख्यधारा का हिस्सा बन जाएगी? कोरोना के साथ भी व कोरोना के बाद भी, यह नव शिक्षाध्ययन कितना व्यावहारिक है? इसमें कितनी आसानिया हैं? कितनी मुश्किलात हैं? इन तमाम पहलुओं पर शिक्षा जगत की राय जानना जरूरी है । इसलिए पेश है सिलीगुड़ी शिक्षा जगत की चुनिंदा शख्सियतों की राय। कोरोना वायरस के इस संकट काल ने वास्तव में दुनिया को एक नई दिशा दी है। इससे शिक्षा जगत भी अछूता नहीं है। मजबूरी में ही सही लेकिन डिजिटल क्लासेज व ऑनलाइन एजुकेशन का नया रास्ता खुला है। इसकी अपनी आसानिया हैं तो अपनी मुश्किलात भी हैं। इसके बावजूद वर्तमान कोरोना संकट काल ने शिक्षा जगत को नया आयाम दिया है। पर, अभी भी भारत उस मुकाम पर नहीं पहुंचा है जहा वर्चुअल यानी आभासी क्लास रियल यानी वास्तविक क्लास को ओवरटेक कर लेंगे। इसमें बहुत बहुत समय लगेगा। आज भले ही समय के अनुसार टेंपरेरी रूप में ही डिजिटल ऑनलाइन क्लासेज की व्यवस्था की गई है लेकिन आने वाले दिनों में यह नियमित हो जाएगा, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। वहीं ऑनलाइन क्लासेज के अनुरूप पाठ्यक्रम को भी नए रूप में ढालना होगा। अब वह दिन नहीं रहा कि केवल किताबी ज्ञान ही सब कुछ हो, दक्षता विकास भी जरूरी है। इस पर सबको ध्यान देना होगा।
डॉ. एसएस अग्रवाल
अध्यक्ष-नॉर्थ बंगाल सहोदय स्कूल कंप्लेक्स
प्राचार्य-सिलीगुड़ी मॉडल हाईस्कूल
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शिक्षक विद्यार्थियों के लिए यह एकदम पहला ऐसा मौका है कि सब अपने अपने जगहों से एक दूसरे से कनेक्ट हो रहे हैं और शिक्षाध्ययन हो रहा है। इससे पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं रहा। वाकई कोरोना वायरस के संकट ने एक नया रास्ता खोला है। इसमें बहुत से शिक्षक जो सूचना प्रौद्योगिकी में रूचि नहीं रखते थे वह भी अब पूरी सक्रियता संग इसमें रुचि रखने लगे हैं। सो, जाहिर सी बात है कि शिक्षा जगत को एक नया आयाम मिला है। मगर, अभी ही सब कुछ ऑनलाइन हो जाएगा ऐसा कहना सही नहीं होगा। क्योंकि, तकनीक व आधारभूत संरचनात्मक रूप में अभी हमारा देश भारत उस मुकाम तक नहीं पहुंचा है। इसमें अभी समय लगेगा। मगर, यह तय है कि ऑनलाइन एजुकेशन एक बेहतर विकल्प व अतिरिक्त सहायक विकल्प जरूर सिद्ध हुआ है। इससे शिक्षा जगत और सुदृढ़ हुआ है।
सुकात घोष
प्रभारी प्राचार्य-दिल्ली पब्लिक स्कूल सिलीगुड़ी
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स्कूली शिक्षा का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। शिक्षाध्ययन के लिए स्कूल से बेहतर स्थान कोई और नहीं है। वर्तमान में जो कोरोना संकट के चलते डिजिटल क्लासेज, ऑनलाइन एजुकेशन की व्यवस्था अपनाई जा रही है वह फिलहाल मूल स्थान नहीं ले सकती है। हा, यह एक्स्ट्रा सपोर्ट के रूप में बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। शिक्षक एवं विद्यार्थियों का आमने सामने कक्षा में होना व परस्पर संवाद के माध्यम से शिक्षाध्ययन का दूसरा विकल्प फिलहाल नहीं हो सकता है। वैसे वर्तमान में जो ऑनलाइन एजुकेशन व्यवस्था शुरू हुई है उससे न सिर्फ विद्यार्थियों बल्कि शिक्षकों को भी बहुत कुछ जानने समझने व खुद को अपडेट करने का मौका मिला है।
मुनव्वरा बेगम अहमद
प्राचार्या-दिल्ली पब्लिक स्कूल
(फूलबाड़ी)
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ऑनलाइन एजुकेशन जहा एक सुनहरा अवसर है वहीं एक चुनौती भी है। आमतौर पर कक्षाओं में शिक्षक ही सर्वोच्च होता था। वह सही गलत जो भी कह दे वही अंतिम सत्य होता था। उसकी गलती पकड़ने वाला भी कोई नहीं होता था। मगर, ऑनलाइन क्लासेज में बच्चे तो बच्चे, बच्चों के अभिभावक भी उपस्थित रहते हैं और वे शिक्षक की शैली व ज्ञान का भी मूल्याकन करते रहते हैं। ऐसे में शिक्षकों को खुद को अपडेट करने की चुनौती बढ़ी है। वहीं, स्कूलों में चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी, ऑनलाइन एजुकेशन की तकनीक व आधारभूत संरचना स्थापित करने की चुनौती होगी। फिर, हर अभिभावक व विद्यार्थी को भी इससे लैस होना होगा। ये सारी नेटवर्किंग ऑनलाइन एजुकेशन व्यवस्था सुचारू चल सके उसके सरकार को भी आवश्यक तकनीकी व आधारभूत संरचनात्मक विकास पर बल देना होगा। इस नई ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था का एक फायदा यह भी हुआ है कि जो शिक्षक अब तक सक्त्रिय नहीं थे वह भी अब सक्त्रिय होने लगे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में अपनी रुचि को नया आयाम देने में लग गए हैं। वैसे अभी बहुत समय लगेगा कि भारत में शिक्षा ऑनलाइन ही हो जाए। अभी भारत उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाया है। उसमें बहुत समय लगेगा। मगर यह निश्चित है कि कोरोनावायरस ने शिक्षा जगत को भी एक नई दिशा दिखाई है, नया आयाम दिया है जिस पर शिक्षा नया विकास कर सकता है। संदीप घोषाल
संस्थापक निदेशक-ब्राइट एकेडमी सिलीगुड़ी