Chhath puja 2019: नहाय खाय के साथ हुई छठ व्रत की शुरूआत, बाजारों में रही भीड़
Chhath puja 2019 नहाय खाय के साथ बृहस्पतिवार से से छठ व्रत की शुरूआत हो गई है। पूजन सामग्री खरीदने के लिए सिलीगुड़ी के विभिन्न बाजारों में भीड़ देखी जा सकती है।
सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। नहाय खाय के साथ बृहस्पतिवार से से छठ व्रत की शुरूआत हो गई है। पूजन सामग्री खरीदने के लिए सिलीगुड़ी के विभिन्न बाजारों में भीड़ देखी जा सकती है। इसी कड़ी के तहत सूप और दउरा से बाजार सजा हुआ नजर आया। इनकी खरीदारी शुरू हो चुकी है।
हालांकि पूजन सामग्रियों की कीतम आसमान पर है। खास कर सूप दउरा और नारियल ने तो महंगाई का रिकार्ड तोड़ दिया है। छठ पूजा पर सूप और दउरा की कीमत काफी बढ़ी हुई नजर आई। सूप की कीमत 70 से 80 रुपये है। वहीं बड़े दउरा की कीमत 250 रुपये और छोटे दउरा की कीमत 180 रुपये है। केला कांदी की कीमत साढ़े पांच सौ रुपये बताई गई। सुथनी 40 रुपये प्रति किलो, अदरख पांच रुपये पीस, हल्दी पांच रुपये पीस, ईख 25 से 30 रुपये , सेब 80 से 100 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहे है। नारियल को पचास से साठ रुपये में बिकते देखा गया। संतरा, शरीफा, पानी सिंघाड़ा से भी बाजार सजा हुआ है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि फल आदि की खरीदारी एक-दो दिनों बाद करेंगे ताकि ताजे फल खरीद सकें। वहीं दुकानदारों का कहना है कि एक-दो दिन बाद तो पल भर की फुर्सत भी नहीं मिलेगी। इस समय काफी सामग्री बाजार में आ चुकी है, काफी आनी बाकी है। वहीं सूप और दउरा की बिक्री करने वालों का कहना है कि छठ पूजा को लेकर इनकी मांग आज भी बरकरार है।
आज भी श्रद्धालु इन्हें खरीदना पसंद करते हैं। इसलिए काफी समय पहले से ही सूप, दउरा बनाने में लग जाते हैं। ताकि समय पर श्रद्धालुओं की मांग पूरा कर सकें। इनको बनाने में पूरा परिवार जुट जाता है। इसी समय तो खूब मांग होती है। इस मौके पर लौकी की सब्जी का विशेष महत्व है। लौकी की सब्जी के साथ अरवा चावल और चना दाल को भोजन में शामिल किया जाता। अवसर को लेकर लौकी की खूब मांग रही। महंगी कीमत होने के बावजूद भी श्रद्धालु लौकी खरीदते देखे गए। लौकी की कीमत पचास से साठ रुपये रही। इसी क्रम में जिस स्थान पर भोजन पकाया जाएगा उस स्थान की साफ-सफाई की गई।
कच्चा चूल्हा बनाया गया। वहीं खरना का पालन शुक्रवार को किया जाएगा। श्रद्धालुओं के द्वारा निर्जल रहकर उपवास किया जाएगा। इस दिन बिना नमक का भोजन ग्रहण करेंगे। इसके अलावा खीर इत्यादि भी बनाई जाएगी। उक्त प्रसाद को आस-पड़ोस के लोगों के बीच भी वितरित किया जाएगा। प्रसाद को कच्चे चूल्हे पर तैयार किया जाएगा। जिस स्थान पर भोजन तैयार किया जाएगा उस स्थान पर शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है।
इस बीच,शहर के घाटों की निगरानी के लिए पुलिस की ओर से विशेष व्यवस्था की जा रही है। घाटों निगरानी की जिम्मेदारी एसडीओ सिलीगुड़ी को सौंपी गयी है। छठ घाटों पर एनजेटी के निर्देशानुसार सभी कार्य संपन्न होंगे। घाटों पर मनचलों व अवांछित तत्वों पर भी पुलिस की नजर रहेगी। इसके लिए सभी थाना को आवश्यक निर्देश दिए गये है शहर के सेठ श्रीलाल मार्केट, नया बाजार, महावीर स्थान, सेवक रोड, वार्ड नंबर एक, दो तीन, पांच, चार, दस, 11, 12, सात, छह, 18, 20 समेत जहां जहां छठ व्रत करने वाले है वहां छठी मैया के गीतों की गूंज है। दूसरी ओर सुबह से ही यहां बिहार, नेपाल और भूटान में छठ व्रत करने वाले परिवार भी कपड़ा खरीदने पहुंचे।
इनलोगों के साथ ही शहर के छठव्रती बुधवार सुबह से ही सिल्क और चुनरी प्रिंट की साड़ियों की खरीदारी में व्यस्त थे। लोगों का कहना है कि इसके लिए इससे अच्छा समय नहीं है। व्रतियों की मनपसंद जयपुरी बादली कॉटन, चंदेरी और मणिपुरी सिल्क साड़ियों के साथ चुनरी साड़ियों की बाजार में अच्छी डिमांड है। चार दिवसीय छठ महापर्व मंगलवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया। छठ व्रत की साड़ियों से लेकर डिजाइनर रेडिमेड कपड़े की दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ी रही। बच्चों में लड़कों ने एक्सीडेंटल जींस और टी शर्ट को अधिक पसंद किया तो लड़कियों ने नए अवतार में आए प्लाजो एवं लांग सूट की जमकर खरीदारी की। बच्चों को रिझाने के लिए दुकानदारों ने पहले से ही डिजाइनर एवं नए रंग रूप वाले कपड़ों का भंडार एकत्रित कर लिया था।
महिलाओं ने पारंपरिक परिधान साड़ी की खरीदारी में आधुनिकता को अधिक महत्व दिया। यही कारण था कि उनके पसंद के आगे कीमत की चिंता नहीं थी। महिलाओं ने चटक रंग वाली जयपुरी बादली कॉटन एवं चुनरी ¨पट्र को पसंद किया। जिसकी औसत कीमत 400 से लेकर 1000 तक थी। वहीं फैंसी साड़ियों की खरीदारी भी महिलाओं ने की। फैंसी साड़ियों में मणिपुरी सिल्क, कांजीवरम सिल्क, जयपुरी कामदार आदि की भी महिलाओं ने जमकर खरीदारी की। सिल्क साड़ियों की रेंज 2000 से लेकर 10000 तक थी तो चंदेरी मूंगा कोटा, लक्ष्मीपति, जयपुरी कामदार साड़ियों की कीमत 1000 से लेकर 6000 तक की थी। बच्चे अपने मनपसंद कपड़े के लिए दुकानों से लेकर मॉलो तक चक्कर लगाते रहे।