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चुनाव में मुद्दें गुल, वोटर कूल और धु्रवीकरण फूल

-शीतलकूची हिसा के बाद पकड़ा जोर पीके के बयान से भाजपा को राहत समर्थकों में उत्साह

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 08:30 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 08:30 PM (IST)
चुनाव में मुद्दें गुल, वोटर कूल और धु्रवीकरण फूल
चुनाव में मुद्दें गुल, वोटर कूल और धु्रवीकरण फूल

-शीतलकूची हिसा के बाद पकड़ा जोर, पीके के बयान से भाजपा को राहत समर्थकों में उत्साह

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-बढ़ रही 30 फीसद बनाम 70 फीसद की चुनावी लड़ाई

-तीन चरणों में मतदाता इसके आसपास मार रहे चक्कर

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी :

बंगाल में आजादी के बाद से अबतक यहां कभी धु्रवीकरण की राजनीति नहीं होती थी। पहली बार है कि बंगाल विधानसभा चुनाव में नरेंद्र की पावन भूमि पर चुनावी मुद्दें गुल हो गये है। वोटर खोमोश यानि कूल है लेकिन ध्रुवीकरण अपने चरम पर फूल है। यह फूल चाहे ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का हो या फिर भारतीय जनता पार्टी के कमल फूल का। समझ से परे है कि नेता क्यों अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और हत्या को हथियार बना रहे है। जयश्री राम पर मचे घमासान दलितों व राजवंशी लोगों की हत्या पर भी खूब रोटियां सेंकी जा रही है। तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर जिन्होंने मोदी की लोकप्रियता, सामाजिक धु्रवीकरण ,दलितों का सहयोग और हिन्दी भाषियों पर भाजपा की पकड़ बताकर सोनार बांग्ला के लिए सोने में सुहागा का काम किया है।

सत्ता के प्रति लोगों में रोष

चुनाव में मुद्दों के बदले सत्ता में बैठी सरकार के 10 साल के कामकाज को लेकर लोगों में आक्रोश है। धाíमक और जातिगत समीकरण से सामने आने लगे है। स्थिति को भांप कर बंगाल की अस्मिता और बंगाली अस्मिता को मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है। नवगठित इंडियन सेक्युलर फ्रंट का गठबंधन को बंगाल के मुस्लिम और महिला मतदाताओं में बिखराव की उम्मीद है।

शीतलकूची की घटना बनेगा ट्रनिंग प्वाइंट

शीतलकूची काड के कारण अल्पसंख्यक वोट बैंक भी एकतरफा मूड बनाता दिख रहा है। इसका सीधा फायदा भाजपा को होता देखा जा रहा है। भाजपा वोट देने गये आनंद बर्मन पर ममता की चुप्पी को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण करना प्रारंभ किया है। भाजपा ने दलित और पिछड़े वोट बैंक का मुद्दा उछालना शुरू किया है। चार चरणों की बहुसंख्यक सीटों पर तृणमूल काग्रेस की खासी पकड़ मानी जाती है। लगभग 164 सीटों में से 110 सीटों पर दलित मतदाताओं को अहम माना जा रहा है। बंगाल के मतदाताओं में से 23.5 फीसद दलित समुदाय से हैं। कूचबिहार और उत्तर बंगाल में रहने वाले राजवंशियों व पूर्ववर्ती पाकिस्तान से आए मतुआ शरणाíथयों एवं उनके वंशजों का अच्छा प्रभाव है। दलितों और अन्य पिछड़ा वर्गो (ओबीसी) के अधिकारों की बात कर रहे हैं। राज्य में 68 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए और 16 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। तृणमूल काग्रेस और भाजपा दोनों ने ही सत्ता में आने पर महिष्य, तेली, तामुल और साहा जैसे समुदायों को मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार ओबीसी की सूची में शामिल करने का वादा किया है।

पांचवे चरण से दिखाई दे रहा प्रभाव

शनिवार को उत्तर बंगाल के तीन जिलों दाíजलिंग, कालिम्पोंग और जलपाईगुड़ी जिले के13 सीटों पर चुनाव संपन्न हुआ है। इसमें चाय बागान मजदूरों के अलावा गोरखा, मतुआ और अल्पसंख्यक समुदाय की भूमिका निर्णायक भूमिका निभायी। भाजपा और तृणमूल काग्रेस चाय बागान के मजदूरों को लुभाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। स्वयं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसी के तहत उत्तर बंगाल दौरा की है। दाíजलिंग और कालिम्पोंग की छह सीटों पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और चाय बागान मजदूरों के वोट निर्णायक माना गया है। जलपाईगुड़ी में भी गोरखा आबादी अच्छी-खासी है। शुरू से ही भाजपा के साथ रहे मोर्चा के दोनों गुट इस बार तृणमूल काग्रेस के साथ हैं। दाíजलिंग की सिलीगुड़ी सीट को माकपा का गढ़ माना जाता रहा है। यहा वर्ष 2016 में भी सीपीएम के अशोक भट्टाचार्य चुनाव जीत चुके थे। देखना होगा कि इस बार लोगों ने उन्हें कितना पसंद किया है।

क्या है अनुसूचित जाति की आबादी आबादी :2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी करीब 1.84 करोड़ है और इसमें 50 फीसद मतुआ समुदाय के लोग हैं। इनकी भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण है।


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