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घर में छिपे तेंदुए ने महिला पर किया हमला, अपने मालकिन को बचाने के लिए उससे भिड़ गया चार साल का 'टाइगर'

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में अपनी मालकिन की जान बचाने के लिए चार साल का एक कुत्ता खुद की जान पर खेल गया।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 17 Aug 2019 11:16 AM (IST)Updated: Sat, 17 Aug 2019 12:28 PM (IST)
घर में छिपे तेंदुए ने महिला पर किया हमला, अपने मालकिन को बचाने के लिए उससे भिड़ गया चार साल का 'टाइगर'
घर में छिपे तेंदुए ने महिला पर किया हमला, अपने मालकिन को बचाने के लिए उससे भिड़ गया चार साल का 'टाइगर'

दार्जिलिंग, एएनआई। दार्जिलिंग में एक तेंदुए ने एक महिला पर हमला किया। जिसे एक पालतू कुत्ते ने अपने मालकिन अरुणा लामा की जान बचाई। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में अपनी मालकिन की जान बचाने के लिए चार साल का एक कुत्ता खुद की जान पर खेल गया। तेंदुए से घिरी मालकिन को देखकर टाइगर (कुत्ते का नाम) ने ना सिर्फ तेज आवाज में भौंकना शुरू किया बल्कि बिना डरे उस पर (तेंदुए) पर हमला भी बोल दिया। टाइगर की बहादुरी के कारण 58 साल की अरुणा लामा की जिंदगी बच गई।  

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जानकारी के मुताबिक, सोनादा निवासी अरुणा लामा को घर के स्टोर रूम से कोई आवाज सुनाई दी। वहां जीवित मुर्गे रखे हुए थे। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, उनके होश उड़ गए। वहां तेंदुआ बैठा हुआ था। घबराहट में उन्होंने दरवाजा बंद करने की कोशिश की लेकिन तब तक तेंदुए ने उन पर हमला बोल दिया। 

तेंदुए से खुद को बचाने के लिए जब अरुणा संघर्ष कर रही थीं, टाइगर (कुत्ते का नाम)  उनकी सहायता के लिए बीच में कूद पड़ा। तेज आवाज में भौंकते हुए टाइगर अरुणा और तेंदुए के बीच मजबूत दीवार की तरह खड़ा हो गया। वह लगातार तेज आवाज में भौंकता रहा। टाइगर की बहादुरी के आगे तेंदुए ने भी हार मान ली और वह वहां से भाग निकला। स्टोररूम में इस संघर्ष के दौरान अरुणा को कुछ चोटें जरूर आई हैं लेकिन उनकी जिंदगी बच गई और वह इसके लिए टाइगर की शुक्रगुजार भी हैं।  

अरुणा की बेटी स्मृति ने बताया, 'तेंदुए के साथ बहादुरी से लड़ते हुए टाइगर ने मेरी मां की जिंदगी बचा ली। अगर वह सही समय पर ऐसा नहीं करता तो पता नहीं आज क्या हो जाता।' उधर, अस्पताल में इलाज करा रहीं अरुणा ने कहा, 'आज उसने (टाइगर) एक पुराना कर्ज अदा किया है।' 

सड़क पर भूखा मिला था टाइगर 

उनकी बेटी स्मृति ने बताया, 'दरअसल, 2017 में राज्य में एक बड़े आंदोलन के दौरान सड़क पर हमने टाइगर (कुत्ते को)को भूखा पाया था। उस समय आंदोलन की वजह से पहाड़ियों पर करीब 104 दिन का बंद था और भोजन की कमी थी। इसके बावजूद हम उसके लिए लगातार भोजन की व्यवस्था करते रहे। खाना देने के बाद हम चाहते थे कि वह अपने असली मालिक के पास लौट जाए लेकिन वह कुछ देर में ही दोबारा हमारे पास लौट आता। इसके बाद वह हमारे परिवार का हिस्सा बन गया। 


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