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6,710 फीट की ऊंचाई पर बसा दार्जिलिंग, टॉय ट्रेन, जंगल और चाय के बागान ऐसी है यहां की खूबसूरती

आज दार्जिलिंग टी पूरी दुनिया में मशहूर है। समुद्र तल से 6,710 फीट की ऊंचाई पर बसा यह शहर आज भी अपनी इमारतों में ब्रिटिश राज के उस दौर को जिंदा रखे हुए है।

By Pratima JaiswalEdited By: Published: Fri, 18 May 2018 06:59 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 10:53 AM (IST)
6,710 फीट की ऊंचाई पर बसा दार्जिलिंग, टॉय ट्रेन, जंगल और चाय के बागान ऐसी है यहां की खूबसूरती

कंचनजंगा की बर्फ से ढकी विशाल चोटियों के बीच बसे पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग शहर की वादियां जितनी हसीन हैं, उससे भी ज्यादा दिलकश है वहां तक पहुंचने का रास्ता। गर्मियों में कूल एहसास के लिए डॉ. कायनात काजी के साथ चलते हैं इस बेमिसाल शहर के सफर पर.. दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल का एक बड़ा शहर है। यह हमेशा से ब्रिटिश हुकूमत की आंखों का तारा रहा और उन्हीं के राज में यहां चाय की खेती फली-फूली।

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दुनिया भर में महकती है दार्जिलिंग की चाय की खूशबू 

आज दार्जिलिंग टी पूरी दुनिया में मशहूर है। समुद्र तल से 6,710 फीट की ऊंचाई पर बसा यह शहर आज भी अपनी इमारतों में ब्रिटिश राज के उस दौर को जिंदा रखे हुए है। दार्जिलिंग की वादियां जितनी हसीन और दिलकश हैं, उससे भी ज्यादा दिलफरेब वहां तक पहुंचने का रास्ता है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे हिमालयन रेलवे की छोटी लाइन पर चलने वाली खिलौना रेलगाड़ी जिसे 'टॉय ट्रेन' भी कहते हैं, न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग पहुंचने का बहुत पुराना और सैलानियों का पसंदीदा तरीका है। मात्र दो फीट के नैरो गेज पर छुक-छुक करके दौडऩे वाली इस हिमालयन रेल को यूनेस्को ने विश्र्व धरोहर का दर्जा दिया है। हिमालय का गेट कहे जाने वाले शहर न्यू जलपाईगुडी से चलकर यह ट्रेन सड़क मार्ग के साथ आंख मिचौली खेलती हुई सड़क के बराबर-बराबर चलती है और बीच में चुपके से जंगल में गायब भी हो जाती है। न्यू जलपाईगुडी से दार्जिलिंग तक 88 किमी. की दूरी तय करते हुए चाय के बागानों के बीच से गुजरती हुई यह ट्रेन आपको प्रकृति के इतने नजदीक ले जाती है कि आप सब कुछ भूल कर उस रमणीकता का हिस्सा बन जाते हैं। कितने ही लूप और ट्रैक बदलती हुई यह ट्रेन पहाड़ी गांवों और कस्बों से मिलती-मिलाती किसी पहाड़ी बुजुर्ग की तरह 6-7 घंटों में धीरे-धीरे सुस्ताती हुई दार्जिलिंग पहुंचती है। इस रास्ते पर पडऩे वाले स्टेशन भी अंग्रेजों के जमाने की याद ताजा कराते हैं। भारत में सबसे अधिक ऊंचाई यानी लगभग 7407 फीट पर स्थित माना जाने वाला रेलवे स्टेशन 'घूम' इसी ट्रैक पर स्थित है। टॉय ट्रेन में जंगल सफारी- न्यू जलपाईगुड़ी से रंगटोंग सिलिगुड़ी को पहाड़ों का द्वार भी कहा जाता है। इसके पास ही न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन है, जहां से दार्जिलिंग के लिए टॉय ट्रेन चलती है। अगर आपके पास एक दिन का समय है तो एक बार तसल्ली से इस यात्रा को टॉय ट्रेन से तय करें। लेकिन अगरसमय कम है तो इस ट्रेन का आनंद किस्तों में भी उठा सकते हैं। आप न्यू जलपाईगुड़ी से रंगटोंग तक इस ट्रेन में 16 किलोमीटर की एक शार्ट ट्रिप भी कर सकते हैं। धीरे-धीरे चलती यह ट्रेन तसल्ली से आपको जंगल और उनके बीच पडऩे वाले गांवों के दर्शन करवाती चलती है। टॉय ट्रेन में जंगल सफारी की बुकिंग आप भारतीय रेल की ऑनलाइन सेवा से भी करा सकते हैं। टॉय ट्रेन में जंगल को निहारना बड़ा ही अनोखा अनुभव है।

 

दिलचस्प है हेरिटेज शॉप 

यूनेस्को ने इस ट्रेन को विश्र्व धरोहर का दर्जा ऐसे ही नहीं दिया है। चौरास्ता है शहर का दिल दार्जिलिंग पहुंचने पर जहां सबसे ज्यादा चहल-पहल देखने को मिलती है, वह है चौरास्ता। इसे आप दार्जिलिंग का दिल भी कह सकते हैं। यह नेहरू मार्ग का वह भाग है, जहां जमीन समतल होकर एक बड़े चौक के रूप में बनी हुई है। यहां बैठकर लोग धूप सेंकते हैं और दूर तक फैली हिमालय की बर्फीली चोटियों को निहारते हैं। यह स्थान सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र भी है। यहां एक ऊंचा मंच बना है, जहां हमेशा कुछ न कुछ चलता ही रहता है। यहीं आसपास कई होटल मौजूद हैं। चौरास्ता के आसपास बनी हेरिटेज शॉप्स आपको ब्रिटिश औपनिवेशिक दौर की याद दिला देंगे। लकड़ी की नक्काशी से सजी ये दुकानें अभी भी वही पुराना आकर्षण समेटे हुए हैं। सूर्योदय का अनूठा नजारा टाइगर हिल दार्जिलिंग टाउन से 11 किलोमीटर दूर है। यह दार्जिलिंग की पहाडि़यों में सबसे ऊंची छोटी है। यहां से सूर्योदय देखना एक अद्भुत अनुभव है। टाइगर हिल से हिमालय की पूर्वी भाग की चोटियां दिखाई देती हैं। यदि मौसम साफ हो, तो यहां से हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट भी नजर आती है। टाइगर हिल पर जब सूर्योदय होता है तो उससे कुछ सेकंड पहले कंचनजंगा की बर्फ से ढकी चोटियों पर सिंदूरी लालिमा छाने लगती है। 

इन जगहों को देखना न भूलें

प्रकृति का ऐसा खूबसूरत नजारा हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। टाइगर हिल से माउंट एवरेस्ट बिल्कुल सीधे सामने दिखाई देता है, जिसकी दूरी लगभग 107 मील मानी जाती है। टाइगर हिल पर सैलानियों की सुविधा और सर्दी से बचाव के लिए एक कवर्ड शेल्टर बिल्डिंग भी बनाई गई है। हालांकि ज्यादातर लोग खुले आसमान के नीचे हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में ही रहकर इस अद्भुत नजारे का साक्षी बनना पसंद करते हैं।घूम मोनेस्ट्रीटाइगर हिल से वापसी में घूम रेलवे स्टेशन के पास ही घूम मोनेस्ट्री पड़ती है। इस मोनेस्ट्री का निर्माण सन् 1875 में किया गया था। इसमें 15 फीट ऊंची मैत्रेयी बुद्धा की मूर्ति विराजमान है। यह मोनेस्ट्री तिब्बती बौद्ध अध्धयन का केंद्र है। घूम मोनेस्ट्री में महात्मा बुद्ध के समय की कुछ अमूल्य पांडुलिपियां संरक्षित करके रखी गई हैं। सुबह-सुबह इस मोनेस्ट्री के बाहर रेलवे लाइन पर भूटिया लोग गर्म कपड़े व अन्य सामानों का बाजार लगाते हैं। यह बाजार सुबह नौ बजे तक ही लगता है। उसके बाद टॉय ट्रेन की आवाजाही शुरू हो जाती है।

ब्रिटिश काल की अभी भी मिलती है झलक 

 

बेबी सीवॉक का दर्शनयहां दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे का संग्रहालय भी मौजूद है। इसे सन् 2000 में आम जनता के लिए खोला गया था। यहां पर पहाड़ों पर चलने वाला सबसे पहला रेल इंजन बेबी सीवॉक रखा गया है। सन् 1881 में इसी इंजन द्वारा पहाड़ों में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की शुरुआत हुई थी। आप इस इंजन और इसके साथ जुड़े कोच को अंदर से भी देख सकते हैं। इस संग्रहालय में दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के इतिहास की साक्षी कई दुर्लभ चीजें रखी हुई हैं। मागढोग योलमोवा मोनेस्ट्री मागढोग योलमोवा मोनेस्ट्री बतासिया लूप से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यह मोनेस्ट्री आलूबारी मोनेस्ट्री के नाम से भी जानी जाती है। यह एक बड़ी मोनेस्ट्री है, जिसका निर्माण 1914 में हुआ था। इसका संबंध उत्तर-पूर्वी नेपाल से आए नेपाली समुदाय से है। इसे बहुत सुंदर तरीके से सजाया गया है। इसमें बुद्ध और पद्मसंभव की विशाल मूर्तियां हैं। यहां की दीवारों पर खूबसूरत भित्तचित्र भी बने हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि इन चित्रों को रंगों से सजाने के लिए घास और जड़ी-बूटियों से निकले रंगों का प्रयोग हुआ है। मोनेस्ट्री के अहाते में विशालप्रार्थना चक्र भी स्थापित है। 


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