स्कूल नहीं तो कम से कम कोचिंग ही खोल दो सरकार
-लॉकडाउन में प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने वालों की टूटी कमर -छोटे कोचिंग सेंटरों के ि
-लॉकडाउन में प्राइवेट ट्यूशन पढ़ाने वालों की टूटी कमर
-छोटे कोचिंग सेंटरों के शिक्षक भी मुसीबत में
-पढ़ने और पढ़ाने वाले दोनों आर्थिक रूप से कमजार
-मकान का किराया तक जुटाना हुआ मुश्किल
- ऑनलाईन पढ़ाई कराने की कोई सुविधा नहीं
-कहां से फोन और लैपटॉप लाएंगे गरीब बच्चे 60
दिनों से लॉकडाउन मोहन झा, सिलीगुड़ी: कोरोना की वजह से लॉकडाउन की मियाद बढ़ती ही जा रही है। इससे व्यापार जगत के साथ शिक्षा जगत भी संकट के दौर से गुजर रहा है। बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। जबकि सरकारी शिक्षक हर माह सरकार से मोटी तनख्वाह जरूर ले रहे हैं। दूसरी ओर निजी स्कूलों, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने और कोचिंग क्लास कराने वाले शिक्षकों का बुरा हाल है। इन शिक्षकों ने कोरोना से बचने के लिए जरूरी शारीरिक दूरी तथा अन्य मानकों का पालन करते हुए ट्यूशन और कोचिंग शुरू करने की अनुमति देने की गुहार सरकार से लगाई है। कोरोना की वजह से जारी लॉकडाउन का अब दो महीना पूरा होने को है। कोरोना की मार व्यापार के साथ शिक्षा जगत भी झेल रहा है। नामी-गिरामी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय प्रबंधन ने ऑनलाइन कक्षा, ऑनलाइन परीक्षा की व्यवस्था कर शिक्षा व्यवस्था को एक नई दिशा की ओर मोड़ने की कोशिश की है। लेकिन भारत जैसे देश में ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था किस हद तक कारगर साबित होगा, यह एक बड़ा सवाल है। वहीं सरकारी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओ के लिए ऑनलाइन व्यवस्था कितना सुगम होगा,इस बारे में अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है। सिलीगुड़ी में नामी-गिरामी ऊंची-ऊंची इमारतों वाली निजी स्कूल और कॉलेजों के अलावा बस्ती और पाड़ा मे भी छोटे-छोटे स्कूल चलाये जा रहे हैं। नर्सरी से कक्षा 5 तक चलने वाले इन स्कूलों मे अच्छी शिक्षा देकर एक बड़ा आदमी बनाने का ख्वाब देखने वाले रिक्शा-वैन चालक, परिचारिका और दिहाड़ी मजदूरो के बच्चे पढ़ते हैं। गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले ये लोग बड़ी मुश्किल से स्कूल और ट्यूशन का फीस जुगाड़ कर पाते हैं। वहीं सरकारी नौकरी की तैयारी, मेडिकल और इंजीनियरिंग मे दाखिले के लिए तैयारी कराने वाले नामी-गिरामी कोचिंग सेंटर से अधिक घरों या किराए के कमरे मे छोटे-छोटे कोचिंग सेंटर चल रहे हैं। सरकारी स्कूल, कॉलेजो से शिक्षा ग्रहण कर पाड़ा और बस्ती के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ युवा अपने घर में या फिर किराए पर कमरा लेकर कोचिंग चलाते हैं। इन कोचिंग सेंटर में नर्सरी से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं तक की तैयारी करायी जाती है। सरकारी शिक्षकों की बल्ले-बल्ले,इनकी कौन सुने
मकान का किराया जुटाना मुश्किल
इन छोटे-छोटे स्कूलों और कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले शिक्षाíथयों और शिक्षकों की आíथक स्थिति कमोबेश एक सी होती है। ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाने के लिए मोबाइल, लैपटॉप जैसे कीमती गैजेट की व्यवस्था दोनों के लिए मुश्किल है। स्कूल और कोचिंग सेंटर मे बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों मे से अधिकाश स्वयं भी शिक्षार्थी ही हैं। बच्चों को पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च उपार्जन करते हैं। लेकिन कोरोना की मार इनके सपनों को अंधेरे की ओर धकेल रहा है। कोरोना की वजह से रिक्शा-वैन चालक और दिहाड़ी मजदूरी करने वाले अभिभावकों के लिए बच्चों का पेट भरना मुश्किल है। स्कूल और ट्यूशन की फीस तो सोच से परे ही है। ट्यूशन फीस नहीं मिलने से ये छोटे-छोटे स्कूलों मे पढ़ाने वाले शिक्षकों को भी परिश्रमिक नहीं मिल रहा है। इसके बंद रहने से शिक्षकों की समस्या काफी बढ़ गई। किराए के कमरे मे ट्यूशन व कोचिंग चलाने वालों को दोतरफा नुकसान है। सरकारी शिक्षकों पर तो सरकार मेहरबान है, लेकिन इनकी गुहार कौन सुनेगा। क्या कहना है निजी शिक्षकों का
पश्चिम बंगाल प्राइवेट ट्यूटर एसोसिएशन के दाíजलिंग जिला अध्यक्ष विवेकानन्द साहा ने बताया की लॉकडाउन की वजह ट्यूशन और छोटे कोचिंग पूरी तरह से बंद हैं। ट्यूशन और घर या किराए पर कोचिंग चलाने वाले शिक्षकों के लिए ऑनलाइन व्यवस्था करना काफी कठिन है। ट्यूशन पढ़ने वाले लॉक डाउन के समय का फीस कतई नहीं देंगे। ऐसे में इन शिक्षकों की समस्या हर दिन के साथ विकराल होती जाएगी। कोरोना से बचने के लिए शारीरिक दूरी, मास्क आदि अन्य मानको के साथ एक कमरे मे कुछ बच्चों को लेकर ट्यूशन व कोचिंग की अनुमति प्रदान करने के लिए सिलीगुड़ी के एसडीओ से गुहार लगाई गई है। वहीं व्यक्तिगत तौर पर एक स्कूल और कोचिंग चलाने वाले शिक्षक अरुनाशु शर्मा ने बताया कम यात्रियों और सुरक्षा मानकों के साथ सरकार बस, ट्रेन और हवाई जहाज चला रही है। उसी तरह एक कमरे मे 5 से 10 बच्चों को लेकर ट्यूशन व कोचिंग शुरू किया जा सकता है। राष्ट्रीय आपदा के समय सरकारी दिशा-निर्देश के बिना शुरू करना उचित नहीं है। छोटे-छोटे स्कूलों, ट्यूशन और कोचिंग मे पढ़ाने वाले शिक्षकों को सरकार और समाज से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिल रही है। ऐसे मे सरकार को हमारे लिए भी विचार करना चाहिए। सिलीगुड़ी मे किराए के कमरे मे कोचिंग चलाने वाले एक अन्य शिक्षक रवि राय ने बताया की इन छोटे-छोटे स्कूल और कोचिंग मे पढ़ाने वाले शिक्षक की आगे की पढ़ाई और घर का खर्च इसी से चलता है। कोचिंग बंद रहने पर शिक्षार्थी भी फीस नहीं देंगे और उनकी आíथक स्थिति भी उतनी मजबूत नहीं होती कि उन पर दवाब दिया जा सके। सरकार को हमारे लिए भी दिशा-निर्देश जारी कर ट्यूशन और कोचिंग शुरू करने कि अनुमति देनी चाहिए।