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नदिया बहा रहा शिल्पांचल में प्राकृतिक मिठास

अजय झा आसनसोल शिल्प की नगरी में प्रकृति की मिठास घोलने के लिए नदिया जिले से दर्जनों लोग आ

By JagranEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 11:18 PM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 11:18 PM (IST)
नदिया बहा रहा शिल्पांचल में प्राकृतिक मिठास
नदिया बहा रहा शिल्पांचल में प्राकृतिक मिठास

अजय झा, आसनसोल : शिल्प की नगरी में प्रकृति की मिठास घोलने के लिए नदिया जिले से दर्जनों लोग आसनसोल पहुंचे हैं। इनका ठौर सड़क किनारे अस्थायी झोपड़ी है। कुछ महीने यहां के लोगों को खजूर का गूड़ खिलाकर फिर पुन: अपने जिले को लौट जाएंगे। लेकिन मिठाई के प्रेमी बंगाल के लोग इनके आने का इंतजार साल भर करते हैं। बंगाल में खजूर के गूड़ का बड़ा क्रेज है। हर बंगाली परिवार इस मौसम में भोजन के समय थोड़ा ही सही लेकिन गूड़ जरूर खाता है। ठंड के मौसम में खजूर के गूड़ की ज्यादा बिक्री बंगाल में होती है। कहते हैं कि खजूर का गूड़ शरीर में गर्मी देता है और सर्दी से बचाता है। इससे दो काम हो जाता है भोजन में मिठास भी भर जाती है और सर्दी से बचाव भी। इन्होंने आसनसोल के जीटी रोड में गोपालपुर के पास कुलतोड़ा में अपना ठौर बनाया है। कुलतोड़ा के आसपास काफी संख्या में खजूर के पेड़ हैं। बाईपास में भी सड़क किनारे कुछ लोग ऐसी भट्टी लगा रहे हैं और वहां गूड़ बनाकर बाजार में बेचते हैं।

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आधुनिकता में खोई पौराणिकता :

आज का जमाना माल के बाजार का हो गया है। लोग पैकेट बंद सामान खरीदना ज्यादा सुविधाजनक व फायदेमंद समझते हैं। यही कारण है कि प्राकृतिक सामानों की बिक्री कम होती है। गूड़ बना रहे लालचंद शेख व विमोल शेख कहते हैं कि अब उस तरह का बाजार नहीं। दिन भर में पांच से सात किलो गूड़ बेच लें यही काफी होता है। निजी तौर पर खरीदार नहीं आते। कुछ दुकानदार ही हैं जो उनका गूड़ खरीदकर ले जाते हैं और पैकेट में बंद कर बाजार में बेचते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि दिनभर की मेहनत के बाद मुश्किल से पांच सौ से सात सौ रुपये कमा पाते हैं। अगर देखा जाए तो महीने में 15 हजार रुपये की कमाई हो रही है। लालचंद शेख ने कहा कि एक ग्रुप में दो लोग होते हैं। दो लोग मिल कर पांच से सात किलो गुड़ तैयार कर पाते हैं।

खजूर के रस का अभाव : गुड़ बना रहे लालचंद शेख ने कहा कि अब खजूर के पेड़ कम मिलते हैं। 20 साल पहले एक दिन में 30 से 35 किलो गुड़ तैयार हो जाता था। आज स्थिति यह है कि सभी पेड़ों के रस उतारने के बाद मुश्किल से पांच से सात किलो गुड़ बन पा रहा है। खजूर के पेड़ अब लुप्त होते जा रहे हैं, इसके संरक्षण की बात कोई नहीं करता। अगर इसे संरक्षित किया जाए तो खजूर से सेहत के लिए काफी तत्व निकलते हैं इसका उपयोग किया जा सकता है।

बड़ा ग्रुप कर रहा काम : इन व्यवसायियों की मानें तो इनका बड़ा ग्रुप इस धंधे से जुड़ा है। सिर्फ बंगाल ही नहीं झारखंड के सीमा क्षेत्रों में भी जाकर लोग इस तरह की भट्टी सड़क किनारे सर्दी के मौसम में लगाते हैं। इससे उन्हें थोड़ी कमाई हो जाती है।


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