खेला होबे, ऐ बार मानुष कोरबे खेला, दीदी होबे बा दादा
मनोज कुमार भगत बर्नपुर (आसनसोल) दिन शुक्रवार शाम के करीब पौने चार बजे हैं। हम मानक
मनोज कुमार भगत, बर्नपुर (आसनसोल): दिन सोमवार, शाम के करीब पौने चार बजे हैं। हम मानकर रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां बर्द्धमान-आसनसोल पैसेंजर ट्रेन से आसनसोल तक की यात्रा करनी है। ताकि ट्रेन में भी सियासी गर्मी का अहसास कर सकें। 4:05 पर सवारी गाड़ी स्टेशन पहुंची। हम भी उसमें सवार हो गए।
अंदर देखा तो युवाओं की एक टोली सियासी चर्चा में मशगूल थी। हमने भी जगह देखी और बैठ गए। तब तक गाड़ी चल दी। तब तक उत्तम कुमार नामक युवक भी दौड़कर चढ़ा और हमारे ही पास बैठ गया। बीएड छात्रा सारिका राय तभी बोल उठी, आप कुछ भी कहो, बावजूद दीदी की बात ही अलग है। पूरे लाकडाउन के दौरान जनता के लिए फर्ज निभाया। कोई भी भूखे पेट नहीं सोया, हर घर तक राशन पहुंचा है। हम तो दीदी के ही मुरीद हैं। यह देख उत्तम से न रहा गया। बांग्ला भाषा में बोले, खेला होबे, ऐ बार मानुष कोरबे खेला, दीदी होबे बा दादा। यानी इस बार खेला तो होगा, मगर जनता तय करेगी, ममता दीदी या नरेंद्र दादा। इस बीच ट्रेन पानागढ़ व वारिया के बाद राजबांध में रुकी। राजबांध में कुछ लोग उतरे, हमारी बातों में रस ले रहे एक बुजुर्ग से न रहा गया सो वे भी उतरते उतरते कह गए, आयुष्मान योजना यहां आती तो और ठीक होता। दीदी की स्वास्थ्य साथी कार्ड योजना का वैसा लाभ नहीं मिल रहा जिसकी हर गरीब को जरूरत है। गाड़ी फिर चल पड़ी। बातचीत में अब छात्रा सुमन कुमारी आ गई। कहने लगीं जनता नासमझ नहीं है। केंद्र और राज्य में सामंजस्य रहता तो आज बंगाल की तस्वीर और बेहतर होती। डबल इंजन की सरकार जरूरी है। तब तक उनकी बात वंदना ने काटी। बोलीं, अरे तृणमूल कांग्रेस से निकलकर कई नेता भाजपा में गए। सीधी सी बात हैं वहां दाल नहीं गल रही तो दूसरी पार्टी का रुख कर लिया। लूट तो बंगाल में कई नेताओं ने मचाई। भाजपा में भी वैसा ही करेंगे। काफी देर से इन लोगों की बातों पर कान लगाए सावित्री नामक बुजुर्ग महिला बोल उठी, दीदी ने जो किया, सोचकर देखो, समझ में आ जाएगा, वे क्यों बेहतर हैं। इन सबकी बातें काफी देर से युवक मनोज सुन रहा था। उससे न रह गया तो वह भी परिचर्चा में कूद गया। बोला, देश के पीएम मोदी हैं। पूरी नजर रखे हैं। लूट खसोट उनके रहते तो नहीं हो पाएगी। ये तय मानिए। तब तक एक बुजुर्ग ने भी अपनी बात रख दी। वे भी बड़ी देर से युवाओं की इस टोली की बातचीत पर कान लगाए थे। बोले, सोच समझकर मतदान कीजिए। जो आपकी कसौटी पर खरा उतरे उसे चुनें। मंथन करें और देश व राज्य हित में निर्णय लें। तब तक गाड़ी की गति धीमी होने लगी। आसनसोल स्टेशन आ रहा था। शाम के साढ़े पांच बज रहे थे। नतीजा हमने भी उठ खड़े हुए। गाड़ी स्टेशन पहुंची तो हम भी गंतव्य को रवाना हो गए।