तुलसीदास का नाम भारतीय साहित्य में सुनहरे अक्षरों में वर्णित है। उन्होंने रामचरितमानस जैसे विशाल महाकाव्य की रचना की है।
ऐसा माना जाता है कि उन्हें श्रीराम और हनुमान जी के दर्शन हुए थे। तुलसीदास के कुछ दोहे हमें जीवन में नई दिशा देते हैं।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर । वसीकरन इक मंत्र है परिहरु बचन कठोर ।।
इस दोहे का अर्थ है कि मीठी बोली बोलने से सभी को वश में किया जा सकता है, पशु भी प्रेम का प्यासा होता है। मधुर वचन बोलने से जीवन मधु समान हो जाता है।
हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहु विधि सब संता । रामचन्द्र के चरित सुहाए ,कलप कोटि लगि जाहि ना गाये ।।
इसका अर्थ है कि जगत के पालनहार मर्यादा पुरूषोत्तम राम की महिमा निराली है। उनकी कथा अनंत है, उनके पदचिन्हों पर चलकर व्यक्ति जीवन में सफल हो जाता है।
काम,क्रोध,मद, लोभ की ,जौ लौ मैन में खान । तौ लौ पण्डित मुरखौ ,तुलसी एक समाना ।।
तुलसीदास जी कहते हैं कि व्यक्ति के मन में जब काम, क्रोध, लालच, मोह रहता है तो व्यक्ति का व्यवहार मूर्खों की भांति होता है। पढ़े-लिखे लोग भी काम, क्रोध, लोभ में आकर मूर्खों के समान कार्य करने लगता है।
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