हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, शुभ और मांगलिक कार्य या फिर किसी पर्व के अवसर पर भंडारा किया जाता है। भंडारा को एक तरह का दान माना जाता है।
आज हम आपको बताएंगे कि आखिर भंडारे की शुरुआत कैसे हुई? और भंडारा कराने से क्या लाभ मिलते हैं? आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
भंडारे की शुरुआत कैसे हुई? इसका जवाब पौराणिक कथा में छिपा है। इस कथा के अनुसार, जब विदर्भ के राजा स्वेत परलोक में पहुंचे, तो उन्हें भूख लगने लगी, लेकिन उन्हें कुछ खाने को नहीं मिला।
जब विदर्भ के राजा ने भोजन मांगा, तो किसी ने भी उनकी मदद नहीं की। इसके पश्चात राजा स्वेत की आत्मा ने ब्रह्मदेव से पूछा कि आखिर क्यों राजा को भोजन नहीं दिया जा रहा है।
ब्रह्म देव ने इसके जवाब में कहा कि आप भले ही राजा रहे हों, लेकिन आपने जीवन में कभी अन्न दान नहीं किया। इसी वजह से आपको परलोक में आने के बाद भोजन नहीं मिलेगा।
इसके बाद राजा ने आने वाली नई पीढ़ी को सपने में आकर अन्न का दान करने के लिए कहा। तभी से भंडारा करने की प्रथा की शुरुआत हुई।
धार्मिक अनुष्ठान के बाद भंडारा करने से पूजा सफल मानी जाती है। घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। मां अन्नपूर्णा की कृपा भी प्राप्त होती है।
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