अघोरी भगवान शिव के भक्त होते हैं, जो विशेष पूजा और पहनावे के लिए जाने जाते हैं। ये भगवान शिव के अघोरनाथ की पूजा करते हैं।
अघोरियों का जिक्र श्वेताश्वतरोपनिषद में मिलता है। अघोरी बाबा भैरवनाथ को अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
भगवान दत्तात्रेय को अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है, जो भगवान शिव के ही अवतार हैं। अघोरियों को न जीवन का मोह होता है और न ही मृत्यु का भय।
अघोरी जीवन अपनाने की सबसे पहली शर्त यह है कि व्यक्ति को अपने जीवन से घृणा निकालना होता है। समाज जिन चीजों को घृणा मानता है, अघोरी उसे ही जीवन में अपनाते हैं।
वही लोग अघोरी बन सकते हैं, जो सांसारिक मोह माया को छोड़ चुके होते हैं। अघोरी लोग श्मशान में निवास करते हैं।
अघोरशास्त्र में श्मशान साधना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि श्मशान में की गई पूजा का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
अघोरी लोग शव के ऊपर पैर रखकर साधना करते हैं, इस साधना को शिव और शैव साधना कहते हैं। शिव और शैव साधना में मुर्दे के ऊपर मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।
अघोरी अपने साथ में नरमुण्ड रखते हैं, इसे कापालिका भी कहा जाता है। कापालिका का प्रयोग अघोरी लोग भोजन करने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
अघोरी कच्चा मांस खाते हैं और मानव शव का मांस भी खा जाते हैं। ये लोग किसी से कुछ नहीं मांगते हैं। ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें Jagran.Com