हमारे समाज में ट्रांसजेंडर्स की जिंदगी आम लोगों की तरह सामान्य नहीं होती है। उन्हें जीवन में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है और समाज से ताने सुनते जीवन गुजारने को मजबूर होती हैं।
वो कहते हैं न कि अगर कुछ कर गुजरने की चाहत और हौसला है तो जीवन में आने वाली तमाम बाधाओं के बावजूद लोग सफलता अर्जित करते हैं। ऐसी ही मिशाल पेश करती हैं ट्रांसजेंडर समाज से आने वाली मानवी मधु कश्यप।
मानवी मधु कश्यप हाल ही में बिहार में दारोगा बनी हैं। वह पहली ट्रांसजेंडर हैं, जो बिहार में इस पद पर सफलता पाने में सफल रही हैं।
मानवी को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। ऐसे में उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम जानकारी देंगे।
माधवी कहती हैं कि उन्हें परिवार का साथ मिला है। मां मेरी वास्तविक पहचान से वाकिफ थीं और वह मेरा ख्याल रखती थी। हालांकि, पिताजी कभी मेरी पहचान से सहज नहीं रहे।
माधवी आगे कहती हैं कि लोअर मिडिल क्लास में जन्म लेने के कारण आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। ऐसे में माधवी ने पढ़ाई पूरी करने के लिए 5 साल तक अखबार बेचा।
माधवी कुछ समय के लिए बेंगलुरु में भी रही। यहां वह अपनी पहचान के साथ रहती थीं। वहां रहकर माधवी ने भीख मांगी, बधाइयां गाईं। इसमें मिली आधी राशि गुरू को देनी होती थी और आधी राशि सर्जरी के लिए इकट्ठी करती थी।
बाद में माधवी को पटना के इस सेंटर के बारे में पता चला। इसकी संचालक रेशमा प्रसाद चाहती थी कि सभी पढ़ें और अधिकार के साथ जीवन जिएं। यहीं से माधवी को एक नई दिशा मिली और वह इंस्पेक्टर बन गई हैं।
माधवी का सपना आईएएस बनकर देश और समाज की सेवा करना है। ऐसी ही अन्य खबरों के लिए पढ़ते रहें Jagran.Com