तांबे के कलश पर कलावा बांधने से जीवन-भर नहीं आता कोई संकट


By Farhan Khan18, Mar 2024 08:00 PMjagran.com

कलावा बांधना

सनातन धर्म में पूजा-पाठ के दौरान कलावा बांधने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। इसे बांधने से व्यक्ति को किसी तरह की परेशानी नहीं होती।

कलाई पर बांधना

कलावा लाल, सफेद, पीले और हरे रंगों से मिलकर बना होता है, जिसे कलाई पर बांधना शुभ होता है।

कलश पर क्यों बांधते हैं कलावा

लेकिन क्या कभी आपके मन में यह सवाल आया है कि कलावा तांबे के कलश पर क्यों बांधा जाता है? आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।

तांबे का कलश

तांबा बेहद शुद्ध धातु मान जाता है। पूजा-पाठ में इस धातु का मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य देते समय भी तांबे के कलश का ही उपयोग किया जाता है।

शुद्धता बरकरार रखना

मान्यता है कि तांबा जितना शुद्ध होता है, उतनी ही जल्दी अशुद्ध भी हो जाता है। इसकी शुद्धता बरकरार रखने के लिए तांबे के कलश में कलावा बांधा जाता है।

सकारात्मक ऊर्जा समाहित

जैसे ही तांबे के कलश में नवग्रहों की सकारात्मक ऊर्जा समाहित होती है, आसपास के वातावरण में फैली नकारात्मकता दूर हो जाती है।

पूजा को बल

तांबे के कलश में कलावा बांधने से पूजा को बल प्राप्त होता है। ऐसा करने से पूजा के दौरान हुई भूल-चूक का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।

रहता है सदैव सुखी

तांबे के कलश में कलावा बांधने से पूजा के दौरान किसी तरह का दोष उत्पन्न नहीं होता। व्यक्ति सदैव सुखी रहता है।

ऐसे में आप यह जान गए होंगे कि तांबे में कलश पर कलावा क्यों बांधा जाता है। अध्यात्म से जुड़ी तमाम बड़ी खबरों के लिए पढ़ते रहें jagran.com