स्वाधिष्ठान चक्र रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है और इसका स्वरूप आधा चांद के जैसा होता है। इस चक्र का तत्व जल है और यह सामान्य बुद्धि का आभाव, अविश्वास, सर्वनाश, क्रूरता और अवहेलना जैसी निम्न भावनाओं को
योग शास्त्र में बताया गया है कि मणिपुर चक्र नाभि के पीछे और रीढ़ की हड्डी पर मौजूद होता है। इसका आकार त्रिकोण है और यह लाल रंग का होता है। चक्र को उर्जा का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र बताया गया है।
षठकोण रूपी इस चक्र को सौर मंडल भी कहा जाता है। इस चक्र को आशा, चिंता, अहंकार, कपट भाव, अनुताप, दंभ और विवेक इत्यादि जैसी भावनाओं का स्वामी कहा गया है।
विशुद्ध चक्र से सभी प्रकार के सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इस चक्र का कोई एक स्वरूप नहीं है। यह चक्र भौतिक ज्ञान, कल्याण, कार्य, ईश्वर के प्रति समर्पण, विष एवं अमृत जैसी भावनाओं का नेतृत्व करता है।
योग शास्त्र के अनुसार मूलाधार चक्र शरीर में रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचले भाग में मौजूद रहता है। इसे भौम मंडल के नाम से भी जाना जाता है। इस चक्र का रंग लाल होता है और इसका बीज अक्षर 'लं' है।
आज्ञा चक्र का स्थान दोनों भौहों के मध्य में होता है। एक पंखुड़ी काले रंग की है तो दूसरे का रंग सफेद है। एक पंखुड़ी ईश्वर की आराधना का नेतृत्व करती है और एक संसारिकता की ओर ले जाती है।
योग चक्र मस्तिष्क के उपरी भाग में मौजूद है और यह सहस्त्र पंखुड़ियों वाला होता है। इस चक्र का कोई बीज अक्षर नहीं है और इसके माध्यम से केवल गुरु का ध्यान किया जाता है।