फौलादी हौसलों ने आसान बनाई जीने की राह
उत्तरकाशी में कई महिलाओं ने अपने हौसले और विश्वास की मिसाल पेश की। इन महिलाओं ने अपने फौलादी हौसलों ने जीने की राह आसान बनाई है।
उत्तरकाशी, [जेएनएन]: 'जिंदगी है तो ख्वाब हैं, ख्वाब हैं तो मंजिले हैं, मंजिलें हैं तो फासले हैं, फासले हैं तो रास्ते हैं, रास्ते हैं तो मुश्किलें हैं, मुश्किलें हैं तो हौसला है, हौसला है तो विश्वास है।'
इसी हौसले और विश्वास की मिसाल है उत्तरकाशी मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर असी गंगा घाटी के भंकौली गांव की ममता रावत। जब 16 जून 2013 की काली रात को आयी विनाशकारी आपदा ने हजारों जिंदगियों को लील लिया, हजारों घर बर्बाद हुए, जाने कितने बच्चे बेघर हो गए। ऐसी मुश्किल घड़ी में ममता का हौसला काम आया।
ममता रावत ने प्रकृति के इस कहर को अपनी नियति न बना कर इससे लड़ते हुए आगे बढ़ने का हौसला दिखाया। ममता रावत ने अपने परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी के साथ ही 40 स्कूली छात्र-छात्राओं को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के साथ कई कई यात्रियों व ग्रामीणों की जिंदगी भी बचाई। आज ममता रावत ग्रीन पिपुल संस्था की मार्केटिंग हेड तथा ट्रैकिंग हेड हैं।
भंकोली गांव में रामचंद्र सिंह रावत व भूमा देवी के घर 8 जून 1991 को जन्मी ममता दो भाई और एक बहन हैं। बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली ममता की प्राथमिक शिक्षा भंकोली गांव के प्राथमिक विद्यालय में हुई। वे जब महज 11 साल की थी तो उनके पिता का देहांत हो गया। परिवार की स्थिति और भी खराब हो गई। ममता ने राजकीय इंटर कॉलेज भंकोली से 12वीं पास की।
तभी ममता की मां भूमा देवी भी बीमार हो गई। मां की बीमारी के कारण ममता की पढ़ाई भी छूट गई। कठिन हालातों के बीच जिंदगी के संघर्ष से गुजर रही ममता का नाम जब श्री भुवनेश्वरी महिला आश्रम के अधिकारियों ने सुना तो उन्होंने वर्ष 2006 में नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी से बेसिक कोर्स कराया। इसके बाद ममता ने ठान लिया कि वह जीवन में अब कुछ ऐसा करेंगी, जो दूसरों के लिए मिसाल बने। इसके बाद ममता ने ट्रैकिंग का रास्ता चुना। वर्ष 2010 में निम से एडवांस कोर्स तथा अक्टूबर 2010 में पर्वतारोहण में मास्टर डिग्री हासिल की है। यही नहीं ममता ने निम से ही सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स भी किया है।
पहले बच्चों की और फिर यात्रियों की बचाई जान
16 जून 2013 में जब अचानक बाढ़ आई तो उस वक्त ममता दिल्ली व मुंबई के 40 स्कूली छात्रों के साथ दयारा कैंप में थी। जहां ममता इन बच्चों को पर्वतारोहण के साथ एडवेंचर का प्रशिक्षण दे रही थी। लगातार बारिश होने तथा बाढ़ आने पर ममता के सामने सबसे बड़ी चुनौती 40 स्कूली छात्रों को बचाने की थी। दयारा से जंगल के रास्ते से होते हुए ममता बच्चों लेकर गंगोरी पहुंची। जहां पर काफी भीड़ थी। ममता ने डीएम को फोन कर सूचना दी कि उनके साथ 40 बच्चे हैं। इनको सुरक्षित उत्तरकाशी पहुंचाना जरूरी है। डीएम के आदेश पर पुलिस ने ममता के साथ 40 बच्चों को उत्तरकाशी आने की अनुमति दी। बच्चों को उत्तरकाशी सुरक्षित पहुंचाने के बाद ममता ने अपनी गर्भवती भाभी को पीठ पर ले जाकर अस्पताल पहुंचाया। उसके बाद बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए वह मनेरी पहुंची। कई लोगों को वहां से निकालने में भी ममता ने निम की टीम के साथ मदद की। बाढ़ में फंसकर बेहोश हुई एक बूढ़ी औरत को अपनी पीठ पर लादकर सुरक्षित स्थान तक पहुंचा कर ममता ने निम की टीम के साथ अपने बुलंद हौसले का परिचय दिया।
महानायक ने की ममता के हौसले की सराहना
हिम्मत वाली ममता के बुलंद हौसले के चलते 3 जून 2016 को रात आठ बजे स्टार प्लस पर प्रसारित एक कार्यक्रम 'आज की रात है जिंदगी' शो में अभिनेता अमिताभ बच्चन ने ममता रावत से जाना की वर्ष 2013 की आपदा में उसने किस तरह लोगों की जान बचाई। इस पर ममता ने अपने पूरे अनुभव शेयर किए। इस अद्भुत कार्य के लिए अमिताभ बच्चन ने उसे हनुमान की संज्ञा देते हुए उसके हौसले की जमकर सराहना की।
स्क्रीकिंग विलेज जिम्मेदारी संभाली
गांव से पलायन रोकने, गांव में ही ग्रामीणों को रोजगार देने की उद्देश्य से रैथल गांव को स्क्रीनिंग विलेज बनाने की योजना ग्रीन पीपुल नाम की संस्था ने तैयार की, जिसकी जिम्मेदारी संस्था ने ममता रावत को दी। ममता रावत ने रैथल को स्क्रीनिंग विलेज के रूप में विकसित करने के लिए रैथल व आस पास के गांव की लड़कियों को अपने साथ जोड़ना शुरू कर दिया है। अभी भुक्की गांव की सुमिला व नाल्ड गांव की मंजू भी ममता रावत के साथ काम में जुट गई है। यही नहीं द्यारा बुग्याल के निकट पड़ने वाले इस गांव में स्थानीय उत्पादों को एकत्र करने के लिए कलेक्शन सेंटर भी बनाया है। इस सेंटर से स्थानीय जैविक उत्पादों की सप्लाई सीधे पांच सितारा होटलों में जा रहे हैं।
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