Uttarkashi Tunnel Rescue: जब खदान से निकाले गए थे 65 श्रमिक... इन बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन पर टिक गई थी देश और दुनिया की नजर
उत्तरांखड के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को आखिरकार सकुशल बाहर निकाल लिया गया है। लेकिन यह अभियान काफी मुश्किल भरा रहा। श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए हर तरह की अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया गया। बाधा आने पर रैट होल माइनर्स मैनुअल खोदाई भी की। आइये जानते हैं विश्व के चर्चित बचाव अभियानों के बारे में जो सिलवयारा सुरंग हादसे से मिलते जुलते हैं।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। 17 दिनों की जद्दोजहद के बाद उत्तरांखड के सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया है। श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए हर तरह की अत्याधुनिक मशीनों का इस्तेमाल किया गया। बाधा आने पर रैट होल माइनर्स मैनुअल खोदाई भी की। आइये जानते हैं विश्व के चर्चित बचाव अभियानों के बारे में जो सिलवयारा सुरंग हादसे से मिलते जुलते हैं।
2010: चिली में खदान से कैप्सूल के जरिये बचाए गए 33 श्रमिक
5 अगस्त, 2010 को चिली में सैन जोस सोने तांबे की खदान धंस गई। हादसे के बाद 33 श्रमिक आपातकालीन शेल्टर एरिया में चले गए। यहां पर सीमित मात्रा में खाना और पानी उपलब्ध था। हालांकि वे अधिकारियों से संपर्क नहीं कर पा रहे थे। 69 दिन के बाद 13 अक्टूबर को एक कैप्सूल के जरिए एक-एक करके 33 श्रमिकों को निकाला गया। कैप्सूल चिली के राष्ट्रीय झंडे के रंग में पेंट किया गया था। अभियान को दुनिया भर में टेलीविजन पर देखा गया था।
2018: थाइलैंड की गुफा में फंसी टीम
घटना जून, 2018 की है। थाइलैंड की वाइल्ड बोर्स फुटबाल टीम ने अपने कोच के साथ लाम लुआंग गुफा में प्रवेश किया। गुफा काफी लंबी थी। लेकिन कुछ देर बाद ही बारिश होने लगी और गुफा में बाढ़ आ गई। जिससे बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद हो गए। आठ दिन की खोज के बाद ब्रिटेन के दो गोताखोरों को लड़कों की लोकेशन मिली। गुफा में पानी का स्तर लगातार बढ़ रहा था। फुटबाल टीम के 12 लड़कों और उनके कोच को 10 जून को निकाला गया। बचाव अभियान में दो सप्ताह से अधिक का समय लगा। हाल के वर्षों के सबसे चर्चित अभियान में अलग अलग देशों के 90 गोताखोरों सहित 10,000 लोग शामिल हुए बचाव अभियान में थाइलैंड के पूर्व नेवी कमांडो समन कुनन की मौत हुई।
2002: क्यूक्रीका हादसा
अमेरिका में समरसेट काउंटी, पेंसिल्वेनिया में 24 जुलाई, 2002 को क्यूक्रीक माइनिंग कंपनी के नौ श्रमिक सतह से सैकड़ो फुट नीचे फंस गए। उनकी आक्सीजन सप्लाई लगातार कम हो रही थी क्योंकि उनके आस-पास पानी बढ़ रहा था। 77 घंटे की जद्दोजहद के बाद, 28 जुलाई को बचाव दल ने 9 श्रमिकों को एक-एक करके सफलतापूर्वक निकाल लिया।
2014: जर्मनी की रीसेडिग गुफा में बचाव अभियान
जून 2014 में, गुफा का अध्ययन करने वाले विज्ञानी जोहान वेस्टहाउसर अपने दो साथियों के साथ जर्मनी की रीसेडिंग गुफा में एक अभियान के लिए गए थे। ये गुफा जर्मनी की सबसे गहरी और लंबे गढ्ढे वाली गुफा के तौर पर जानी जाती है। 8 जून को चट्टान से गिरने की वजह से वेस्टहाउसर के मस्तिष्क में चोट लग गई। उसी शाम को गुफा में बचाव अभियान के लिए तीन दल पहुंच गए। बाद में बचाव अभियान में अतिरिक्त दलों और हेलीकाप्टर को भी लगाया गया। इसके बाद वेस्टहाउसर को बाहर निकाला गया। मैनुअल बचाव अभियान में 60 लोग शामिल थे। अभियान 11 दिन चला। इस पूरे अभियान में कई देशों के 700 लोग शामिल हुए।
1989 खदान से निकाले गए 65 श्रमिक
13 नवंबर, 1989 को रानीगंज (बंगाल) के महाबीर खदान में कोयले से बनी चट्टानों को विस्फोट करके तोड़ा जा रहा था। इसी दौरान वाटर टेबल की दीवार में दरार आ गई और इन दरारों में पानी तेजी से बहने लगा। इसकी वजह से वहां काम कर रहे 232 लोगों में से 6 श्रमिकों की मौके पर मौत हो गई। जो श्रमिक लिफ्ट के पास थे, उन लोगों को समय से बाहर खींच लिया गया, लेकिन 65 श्रमिक फंसे रह गए। हादसे के समय जसवंत सिंह गिल बतौर एडिशनल चीफ माइनिंग इंजीनियर वहां तैनात थे।
उन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए पानी से भरी खदान मे जाने का फैसला किया। उन्होंने 2.5 मीटर लंबा स्टील का एक कैप्सूल बनाया और उसे एक बोर के जरिये खदान में उतारा। उनके आइडिया से एक-एक करके खदान में फंसे लोगों को उस कैप्सूल के जरिये बाहर निकाला गया। इस बहादुरी के लिए दो साल बाद 1991 राष्ट्रपति आर वेंकटरमन के हाथों सर्वोत्तम जीवन रक्षक पदक से सम्मानित किया गया।