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केदारकांठा के घने जंगल में दो दिन भूखे-प्यासे भटकते रहे पर्यटक, रातभर दिल दहलाती रही जानवरों की आवाज

ट्रैक से लौटते समय दो पर्यटक अपने दल से बिछुड़ गए और दो दिनों तक जंगल में भूखे-प्यासे भटकते रहे। घने जंगल के बीच बिना संसाधनों के उन्होंने दो रात बिताई। शनिवार सुबह खोज-बचाव टीम ने दोनों को सुरक्षित मोरी के सांकरी गांव पहुंचाया।

By Edited By: Published: Sat, 17 Oct 2020 07:00 PM (IST)Updated: Sun, 18 Oct 2020 08:50 AM (IST)
केदारकांठा के घने जंगल में दो दिन भूखे-प्यासे भटकते रहे पर्यटक, रातभर दिल दहलाती रही जानवरों की आवाज
केदारकांठा के घने जंगल में दो दिन भूखे-प्यासे भटकते रहे पर्यटक।

पुरोला(उत्तरकाशी), जेएनएन। केदारकांठा ट्रैक से लौटते समय दो पर्यटक अपने दल से बिछुड़ गए और दो दिनों तक जंगल में भूखे-प्यासे भटकते रहे। घने जंगल के बीच बिना संसाधनों के उन्होंने दो रात बिताई। शनिवार सुबह खोज-बचाव टीम ने दोनों को सुरक्षित मोरी के सांकरी गांव पहुंचाया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र मोरी में जरूरी उपचार के बाद उन्हें देहरादून रेफर कर दिया गया। 

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पर्यटकों का छह-सदस्यीय दल गत 14 अक्टूबर की सुबह मोरी ब्लॉक के सांकरी से 12 किमी दूर केदारकांठा ट्रैक पर गया था। शाम को दल ने केदारकांठा में टेंट लगाकर रात्रि विश्राम किया। 15 अक्टूबर की सुबह दल जब वापस लौटने लगा तो दो सदस्य शुभम गैरोला (पश्चिमवाला-विकासनगर, देहरादून) व महेंद्र तोमर (दुर्गा विहार-विकासनगर, देहरादून) रास्ते में फोटोग्राफी करने लगे। इसी धुन में दोनों बुग्याल (मखमली घास का मैदान) में टहलते हुए काफी आगे निकल गए। लेकिन, जब वापस लौटने लगे तो रास्ता भूल गए। 
सिग्नल न होने के कारण उनका अन्य साथियों से भी संपर्क नहीं हो पाया। 15 अक्टूबर की रात साथी पर्यटकों ने उनके जंगल में भटकने की सूचना पुलिस को दी। साथ ही विकासनगर से परिजन भी सांकरी पहुंच गए। 16 अक्टूबर की सुबह मोरी के थानाध्यक्ष केदार सिंह चौहान ने पांच टीमें गठित कर लापता पर्यटकों की ढूंढ-खोज शुरू की और शनिवार सुबह जंगल में उन्हें खोज निकाला। दोनों की स्थिति काफी खराब थी। दो दिन-दो रात से भूखे-प्यासे होने के कारण वह चल भी नहीं पा रहे थे। पर्यटकों ने पुलिस को बताया कि 15 अक्टूबर की रात उन्होंने जंगल के मध्य एक पत्थर की आड़ में गुजारी। उनके पास आग जलाने का भी कोई साधन नहीं था। 
मोबाइल और कैमरे की लाइट के सहारे किसी तरह उन्होंने रात काटी। जंगली जानवरों की आवाजें उनका दिल दहला रही थीं, इसलिए वह ठीक से सो भी नहीं पाए। नेटवर्क न होने के कारण किसी से संपर्क भी नहीं हो पा रहा था। 16 अक्टूबर को भी उन्हें वापसी का रास्ता नहीं मिला। सो, रात फिर उसी पत्थर की आड़ में गुजारी। थानाध्यक्ष केदार सिंह चौहान ने बताया कि दोनों की स्थिति काफी गंभीर थी और वह बेहद डरे हुए थे।

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