यहां अल्पाइन तकनीक से किया गया 6387 मीटर ऊंची कालानाग चोटी का आरोहण, जानेें- इसके बारे में
पर्वतारोहण की अल्पाइन तकनीक को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड के युवाओं ने नई पहल की है। इसके तहत छह पर्वतारोही युवाओं में से तीन ने 6387 मीटर ऊंची कालानाग चोटी का अल्पाइन तकनीक से सफल आरोहण किया।
उत्तरकाशी, जेएनएन। देश में पर्वतारोहण की अल्पाइन तकनीक को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड के युवाओं ने नई पहल की है। इसके तहत छह पर्वतारोही युवाओं में से तीन ने 6387 मीटर ऊंची कालानाग चोटी का अल्पाइन तकनीक से सफल आरोहण किया। इसकी रिपोर्ट इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) को भेजी गई है। अब इन युवाओं का लक्ष्य इसी तकनीक से स्वार्गारोहणी-प्रथम चोटी के आरोहण का है। असल में कालानाग चोटी नाग के फन की तरह दिखती है। इसलिए इसे 'कालानाग' नाम से जाना जाता है।
आइएफएफ की अनुमति से उत्तरकाशी जिले के बड़कोट निवासी पंकज रावत और राम उनियाल, भटवाड़ी निवासी राजेश, चमोली जिले के लोहागंज निवासी रघु बिष्ट, देहरादून निवासी अमनदीप और सिद्धार्थ कसाना गोविंद वन्यजीव विहार में पड़ने वाली कालानाग चोटी के आरोहण के लिए गत सात अक्टूबर को सांकरी पहुंचे। ये सभी पर्वतारोही अपना सामान खुद ही पीठ पर लादकर आठ अक्टूबर को सांकरी से तालुका और फिर सीमा कैंप पहुंचे। यहां से उन्होंने रुइंसाड़ा ताल, क्यारकोटी बेस कैंप और अर्जुन छाड़ होते हुए समिट कैंप तक की फासला तय किया। 14 अक्टूबर को पंकज रावत, राम उनियाल और रघु बिष्ट ने अल्पाइन तकनीक से कालानाग चोटी का सफल आरोहण किया। 16 अक्टूबर को वे वापस सांकरी पहुंचे।
जानिए क्या है अल्पाइन तकनीक
युवा पर्वतारोही पंकज रावत ने बताया कि कालानाग चोटी का आज तक अल्पाइन तकनीक से आरोहण नहीं हुआ है। अल्पाइन तकनीक में पर्वतारोहियों को टैंट, स्लीपिंग बैग, खाने का सामान और आरोहण के जरूरी उपकरण खुद पीठ पर लादकर ले जाने होते हैं। टेंट लगाने से लेकर खाना भी खुद ही बनाना पड़ता है। बेस कैंप से चोटी के आरोहण के लिए खुद ही पर्वतारोहियों को रूट तैयार करना होता है।
इस तकनीक से भारत में बेहद कम पर्वतारोही आरोहण करते हैं। इसमें पोर्टर, गाइड, कुक और अन्य की कोई मदद नहीं ली जाती। बताया कि काफी जटिल होने के कारण इस तकनीक का उपयोग विदेशों में ही अधिक होता है। देश में अल्पाइन तकनीक से आरोहण को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कालानाग चोटी इसी विधि से आरोहण किया। अब उनका दूसरा लक्ष्य स्वार्गारोहणी-प्रथम चोटी है। करीब 6200 मीटर ऊंची इस चोटी का अभी तक किसी भी तकनीक से आरोहण नहीं हो सका है।