Move to Jagran APP

उत्तरकाशी के इस इलाके में लोगों को राजनीति से नहीं कोई मतलब, लेकिन जो करेगा समस्याओं का समाधान इस बार उसी को करेंगे वोट

दिन शुक्रवार सुबह के आठ बजे हैं और बर्फीली बयार के बीच मैं इस समय सुक्की गांव में हूं। यात्रा सीजन और शीतकाल में जब बर्फ देखने या हर्षिल घूमने के लिए पर्यटक आते हैं गांव में रौनक बढ़ जाती है। फिर कहने लगे मेरे पास अभी कोई वोट मांगने नहीं आया है। वैसे भी ग्रामीणों को राजनीति की बहस से कोई मतलब नहीं। कृषि-बागवानी और पर्यटन जैसे...

By Jagran News Edited By: Riya Pandey Published: Sun, 31 Mar 2024 05:09 PM (IST)Updated: Sun, 31 Mar 2024 05:09 PM (IST)
इस बार राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा समस्याओं के समाधान करने वालों लीडर को जनता करेगी वोट

शैलेंद्र गोदियाल, हर्षिल (उत्तरकाशी)। दिन शुक्रवार (29 मार्च) सुबह के आठ बजे हैं और बर्फीली बयार के बीच मैं इस समय सुक्की गांव में हूं। हालांकि, चुनावी मौसम होने के कारण सूर्य की किरणें गुनगुनेपन का एहसास करा रही हैं। चारधाम यात्रा के दौरान गुलजार रहने वाले सुक्की गांव में दुकानें अभी बंद हैं।

loksabha election banner

गांव के पास गंगोत्री हाईवे के किनारे मुझे दो दुकान खुली हुई नजर आईं। एक के बाहर बेंच पर दुकान स्वामी विजय सिंह राणा बैठे हैं। सो, मैं भी उनके पास जा पहुंचा। कहने लगे, ‘सर्दी हो या गर्मी, मैं और मेरा परिवार सुक्की में ही रहता है। ग्रामीणों की जरूरत का सभी सामान दुकान में है।

पर्यटकों के आगमन से गांव में रौनक

यात्रा सीजन और शीतकाल में जब बर्फ देखने या हर्षिल घूमने के लिए पर्यटक आते हैं, गांव में रौनक बढ़ जाती है। फिर कहने लगे, मेरे पास अभी कोई वोट मांगने नहीं आया है। वैसे भी ग्रामीणों को राजनीति की बहस से कोई मतलब नहीं। कृषि-बागवानी और पर्यटन जैसे काम-धंधों में सभी व्यस्त हैं।’

राणाजी से मैं आगे कुछ और पूछता कि तभी मेरी नजर सड़क किनारे मोहन सिंह राणा पर पड़ी। पहचान के हैं, सो उनसे मिलने भी जा पहुंचा। पूर्व सैनिक मोहन सिंह सुक्की में होटल चलाते हैं। पारंपरिक शिष्टाचार के बाद मैंने मोहन भाई का मन टटोलने की कोशिश की। इससे पहले कि मैं मुद्दों को लेकर कुछ पूछता, वह खुद ही कहने लगे, ‘सीमांत क्षेत्र के लोग हमेशा राष्ट्रीय मुद्दों पर वोट करते हैं। लेकिन, इस बार उनके स्थानीय मुद्दे और चिंताएं भी हैं।

वाइब्रेंट विलेज के सुक्की गांव को अलग करने की कोशिश

वाइब्रेंट विलेज में शामिल सुक्की गांव को अलग-थलग करने की कोशिश की जा रही है। अधिकारियों और जिम्मेदारों की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है। आलवेदर के तहत प्रस्तावित बाईपास बनने से सुक्की गांव को दो तरह के खतरे हैं।

पहला सुक्की गांव व सुक्की टाप में चारधाम यात्रा व पर्यटन से जो रोजगार मिलता है, वह बंद हो जाएगा। दूसरा बाईपास रोड निर्माण का मलबा जब भागीरथी नदी में गिरेगा तो नदी गांव की ओर कटाव करेगी। इससे गांव में भूस्खलन बढ़ने की भी आशंका है।’

सुक्की टाप के पास सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र होने से हर्षिल से कटा संपर्क

मोहन भाई आगे कहते हैं, ‘एक बड़ी समस्या सुक्की टाप के पास सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र की भी है, जिसका ट्रीटमेंट आज तक नहीं किया गया। इससे हाईवे अवरुद्ध होगा और सुक्की गांव का हर्षिल से संपर्क कट जाएगा। इन समस्याओं के समाधान को कहां-कहां नहीं पत्राचार किया गया, लेकिन हुआ क्या, वही ढाक के तीन पात।’

खैर! मैं अब सुक्की गांव से हर्षिल की ओर बढ़ा। जसपुर बैंड के पास कुछ होटल व होम स्टे बन रहे हैं। यहां ग्रामीणों को चुनावी चर्चा से अधिक फिक्र रोजी-रोटी की है। उन्हें उम्मीद है कि आने वाला यात्रा सीजन अच्छा चलेगा। चुनावी माहौल की टोह लेने के लिए मैं किसी को तलाशता, कि तभी अचानक ट्रैकिंग व्यवसाय से जुड़े पुराली गांव निवासी जयेंद्र सिंह राणा वहां आ धमके। वह हाव-भाव से व्यथित नजर आ रहे थे।

सुक्की बाईपास बनने से पुराली भी चारधाम यात्रा मार्ग होगा अलग

मैंने कारण पूछा तो कहने लगे, सुक्की बाईपास बनने से जसपुर के साथ पुराली भी चारधाम यात्रा मार्ग से कट जाएगा। जसपुर बैंड के बाजार में जो होटल व होम स्टे हैं, वह चारधाम यात्रा और पर्यटन पर ही निर्भर हैं। वह वर्ष 2008 से मांग कर रहे हैं कि जसपुर से पुराली होते हुए बगोरी, हर्षिल, मुखवा और जांगला तक सड़क बनाई जाए। यह मार्ग सुलभ और मौसम के अनुकूल भी होगा। जब कुछ सुनवाई नहीं हुई तो अब वह भी थक-हार गए हैं।

जसपुर के बाद मेरा अगला पड़वा बगोरी गांव था। बगोरी में बौद्ध मंदिर के निकट कुछ महिलाएं भेड़ का ऊन कातती हुई दिखीं। वहीं मेरी भेंट बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा से भी हुई। लगे हाथ मैंने भी चुनावी मुद्दों का जिक्र छेड़ दिया। इस पर राणाजी कहने लगे, ‘जसपुर बैंड से पुराली होते हुए बगोरी गांव सड़क से जुड़ जाए तो हर घर पर्यटन व्यवसाय से जुड़ जाएगा। गांव में होम स्टे, होटल व कैंप तो हैं, लेकिन उम्मीद के अनुरूप पर्यटक नहीं पहुंच रहे।’

शीतकाल व बच्चों की शिक्षा से वीरपुर पलायन को मजबूर

मैंने मतदान में महिलाओं की भागीदारी पर सवाल किया तो काती हुई ऊन का गोला बनाते हुए संगीता देवी कहने लगीं, ‘इस बार हमारा मतदान केंद्र बगोरी के बजाय वीरपुर डुंडा में शिफ्ट किया गया है। शीतकाल की परेशानियों और बच्चों की शिक्षा के कारण हमें वीरपुर में पलायन करना पड़ा है।

इन दिनों मैं बागवानी और अन्य कुछ काम निपटाने बगोरी आई हुई हूं। वोट देने के लिए वीरपुर ही जाऊंगी। वोट के सवाल पर वह सधे हुए अंदाज में बोलीं, ‘जहां देश होगा, वहीं मेरा वोट होगा।’ खैर! कुछ और मुद्दों पर चर्चा के बाद मैं भी मुखवा की ओर चल पड़ा।

शीतकाल में ग्रामीण दूसरी जगह हो जाते हैं शिफ्ट

मुखवा गांव मां गंगा का शीतकालीन प्रवास स्थल है। दोपहर का समय हो चला है, मौसम के मिजाज में आई गर्माहट से पहाड़ियों पर गिरी बर्फ कतरा-कतरा पिघल रही है। मंदिर में श्रद्धालुओं की चहलकदमी तो है, पर गांव के अधिकांश घरों के किवाड़ बंद हैं। यहां के ग्रामीण इन दिनों उत्तरकाशी क्षेत्र में निवासरत हैं।

इस बारे में पूछने पर शीतकाल के तीर्थ पुरोहित सुमेश सेमवाल कहने लगे, ‘हर बार शीतकाल में तीर्थ पुरोहितों समेत अन्य ग्रामीण उत्तरकाशी, भटवाड़ी, गंगोरी व मातली में शिफ्ट हो जाते हैं, लेकिन वोट देने के लिए सभी मुखवा लौटेंगे।’ मुझे भी अब आगे जाना नहीं था, सो मुखवा से ही उत्तरकाशी की राह पकड़ ली।

यह भी पढ़ें- सैलानियों के लिए एक अप्रैल को खुलेंगे Gangotri National Park के गेट, यहां होता है दुर्लभ जीवोंं का दीदार


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.