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राहत-रेस्क्यू के बीच पहाड़ सरीखी दस चुनौतियां

शैलेंद्र गोदियाल आराकोट (उत्तरकाशी) आराकोट की आपदा को पांच दिन हो गए हैं लेकिन

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Aug 2019 02:58 AM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 06:35 AM (IST)
राहत-रेस्क्यू के बीच पहाड़ सरीखी दस चुनौतियां
राहत-रेस्क्यू के बीच पहाड़ सरीखी दस चुनौतियां

शैलेंद्र गोदियाल, आराकोट (उत्तरकाशी)

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आराकोट की आपदा को पांच दिन हो गए हैं, लेकिन रेस्क्यू-राहत में चुनौतियां अब भी कदम-कदम पर रुकावट डाल रही हैं। बुधवार को राहत-रेस्क्यू में लगे एक हेली के क्रैश होने से भी रेस्क्यू टीम के मनोबल पर प्रभाव पड़ा है। इससे रेस्क्यू और राहत के कार्य की गति को धीमा कर दिया है। गुरुवार को केवल वायु सेना के हेली से ही जरूरी सामान ही कुछ गांवों में पहुंचाया जा सका। जबकि, आपदा प्रभावित गांवों में अभी भी सड़क, पैदल रास्ते, पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य, रसद, शिक्षा व्यवस्था आदि को पटरी पर लाने और ग्रामीणों की नगदी फसलों सेब व आलू को बाजार तक पहुंचाने की चुनौतियां मुंहबाये खड़ी हैं। ऐसे में हालात कब पटरी पर लौटेंगे, इसका भी कोई अंदाजा नहीं है और यही वजह है कि भविष्य को लेकर ग्रामीण आशंकित नजर आ रहे हैं। हालांकि, इस सबके बावजूद जिला प्रशासन और आपदा प्रबंधन की टीमें चुनौतियों से निपटने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। स्वयं जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान और पुलिस अधीक्षक पंकज भट्ट भी आराकोट में ही डेरा डाले हुए हैं।

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चुनौती-एक : सड़क

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 220 किमी दूर स्थित आराकोट क्षेत्र में सबसे अधिक नुकसान आवागमन के संसाधनों को हुआ है। आराकोट क्षेत्र के आठ मोटर मार्गो में से छह आराकोट-चिवां-बालचा, चिवां-मोंडा, बरनाली-माकुड़ी, बरनाली-झोटाड़ी, टिकोची-दुचाणू-किराणू-सरतोली और चिंवा-गोकुल मोटर मार्ग अभी तक पूरी तरह बंद हैं। पांच स्थानों पर इन मार्गो को जोड़ने वाले पुल भी बह गए हैं। कुछ स्थानों पर तो पैदल चलने के लिए इंचभर रास्ता भी नहीं बचा। जिससे एक गांव के ग्रामीण दूसरे गांव और बाजार तक नहीं पहुंच पा रहे। हालांकि, इस बीच रेस्क्यू टीम ने आराकोट-नकोट और आराकोट- कलीच-थुनारा मोटर मार्ग को आवाजाही लायक बना दिया है।

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चुनौती-दो : बिजली

आपदा ने आराकोट क्षेत्र की विद्युत व्यवस्था को भी पूरी तरह चौपट कर दिया। यहां बिजली के पोल व ट्रांसफॉर्मर बह गए हैं। 17 अगस्त की शाम इस पूरे क्षेत्र में बिजली गुल हो गई थी और 18 अगस्त की तड़के कुदरत का कहर टूट पड़ा। हालांकि, ऊर्जा निगम ने 36 गांवों में से 19 गांवों तक तो बिजली पहुंचा दी है, लेकिन आपदा से सर्वाधिक प्रभावित गांवों में अभी भी अंधकार पसरा हुआ है। बिजली न होने के कारण ग्रामीण अपने फोन तक चार्ज नहीं कर पा रहे। इनमें किराणू, दुचाणू, सरतोली, मालना, मोंडा, टिकोची, माकुड़ी, डगोली, बरनाली, झोटाड़ी, जागटा, चिवां, मोल्डी, बलावट, सुनाली, गोकुल, खकवाड़ी आदि गांव शामिल हैं।

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चुनौती-तीन : पेयजल

कुदरत के कहर ने आराकोट क्षेत्र के लोगों को पीने के पानी से भी महरूम कर दिया। स्थिति यह है कि घाटी के 14 गांवों में लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। किराणू, दुचाणू, मालना, मोंडा, टिकोची, बरनाली, झोटाड़ी, जागटा, चिवां, मोल्डी, बलावट, सुनाली, गोकुल व खकवाड़ी गांव के ग्रामीण आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से दी गई पानी की बोतलों के सहारे अपनी प्यास बुझा रहे हैं। पानी की विकट समस्या को देखते हुए गुरुवार को मोंडा, दुचाणू और किराणू में हेली के जरिये पेयजल लाइन बिछाने के लिए प्लास्टिक के पाइप पहुंचाए गए। लेकिन, अभी तक पेयजल स्त्रोतों पर पानी के टैंक बनाने और लाइन बिछाने का कार्य शुरू नहीं हो पाया है।

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चुनौती-चार : स्वास्थ्य

आपदा प्रभावित क्षेत्र में सड़कें बंद होने, अस्पताल बह जाने व स्वच्छ पानी की सुचारु व्यवस्था न होने के कारण ग्रामीणों के सामने सबसे अधिक दिक्कतें स्वास्थ्य संबंधी आ रही हैं। खासकर गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों और बुजुर्गों के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से आराकोट व अन्य स्थानों पर स्वास्थ्य शिविर तो लगाए गए हैं, लेकिन आपदा प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी सुचारु व्यवस्था नहीं हो पाई है।

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चुनौती-पांच : शिक्षा

आपदा के कहर ने ग्रामीणों की रोजी-रोटी ही नहीं, तकरीबन 600 नौनिहालों से उनकी शिक्षा भी छीन ली। आराकोट घाटी में राजकीय इंटर कॉलेज टिकोची, प्राथमिक विद्यालय टिकोची, जूनियर हाईस्कूल टिकोची, प्राथमिक विद्यालय चिवां, जूनियर हाईस्कूल चिवां व हाईस्कूल चिवां के अलावा अन्य प्राइवेट स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्र सैलाब में बह चुके हैं। आराकोट में भी एक निजी स्कूल के बहने से 150 बच्चों की उम्मीदें धराशायी हो गई। इसी तरह के हालात टिकोची समेत अन्य सभी स्कूलों के हैं। स्कूल कब और कहां शुरू होंगे, इस बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है।

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चुनौती-छह : रसद

प्रभावित गांवों में रसद पहुंचाना भी प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। हेली रेस्क्यू अभियान कम करने के बाद प्रशासन स्थानीय मजदूरों और घोड़े-खच्चरों के जरिये राशन व राहत सामग्री पहुंचाने के दावे कर रहा है। गुरुवार को आराकोट के निकटवर्ती गांवों में मजदूरों के जरिये राशन भेजा गया, लेकिन मोंडा, बलावट, किराणू आदि गांवों में अभी तक पर्याप्त राशन नहीं पहुंचाया गया है। राशन पहुंचाने में सबसे बड़ी बाधा पैदल मार्ग पेश कर रहे हैं, क्योंकि ज्यादातर स्थानों पर पैदल मार्गो का नामोनिशान तक नहीं बचा।

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चुनौती-सात : नकदी फसल

आराकोट क्षेत्र सेब की पैदावार के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। यहां हर गांव का हर व्यक्ति सेब का काश्तकार है। यही इन ग्रामीणों की आर्थिकी का मुख्य जरिया भी है। इन दिनों सेब का सीजन चल रहा है और दस अगस्त से सेब को निकालने का कार्य भी शुरू हो चुका था। 20 अगस्त से इस कार्य में तेजी आनी थी, लेकिन, आपदा के कहर ने यहां के काश्तकारों की कमर ही तोड़ दी। सेब के पांच दर्जन बागीचे नष्ट हो गए और जिन रहे-सहे बागीचों में सेब के पेड़ फलों से लकदक हैं, उन्हें सड़क और बाजार तक पहुंचाने के लिए कोई साधन नहीं हैं।

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चुनौती-आठ : संचार

उत्तरकाशी जिले का आराकोट क्षेत्र हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा है, लेकिन इस क्षेत्र में उत्तराखंड की संचार सेवाएं ना के बराबर हैं। संचार सेवा की बदहाली के चलते सबसे अधिक परेशानी इन दिनों हो रही है। क्योंकि, आपदा प्रभावित अपनी पीड़ा सरकारी तंत्र तो छोड़िए, रिश्तेदारों को भी नहीं बता पा रहे। यहां कुछ स्थानों पर हिमाचल प्रदेश के मोबाइल टॉवर काम करते हैं।

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चुनौती-नौ : लापता लोगों की तलाश

रेस्क्यू टीम अब तक मलबे में दबे 15 लोगों के शव निकाल चुकी है। लेकिन, अभी भी 12 से अधिक लोग लापता बताए जा रहे हैं। लापता लोगों की तलाश में अभी तक युद्धस्तर पर रेस्क्यू अभियान नहीं चल पाया है। लोगों का कहना है कि सनेल, टिकोची, चिवां व नगवारा में बड़े स्तर पर रेस्क्यू अभियान न चल पाने के कारण उनकी उम्मीदें टूटती जा रही हैं।

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चुनौती-दस : राहत कैंप

आपदा के बाद जिला प्रशासन ने प्रभावित ग्रामीणों के लिए राहत शिविरों की व्यवस्था की हैं। लेकिन, इन शिविरों में प्रभावितों का जीवन खानाबदोश जैसा गुजर रहा है। आराकोट में तीन राहत शिविर लगाए गए हैं, जिनमें 400 प्रभावित रह रहे हैं। लेकिन, टिकोची, चिवां व माकुड़ी के प्रभावितों ने गांव के पास स्वयं ही टेंट लगाया है। इन ग्रामीणों के सामने सबसे बड़ा संकट अब नए घर का है। करीब 30 परिवार ऐसे हैं, जिनकी जमीन भी बही है और घर भी। भवन निर्माण करने के लिए कोई स्थान नहीं बचा है। ऐसे में प्रशासन के सामने प्रभावितों को भूमि उपलब्ध कराना और भवन निर्माण में उनकी मदद करना सबसे बड़ी चुनौती है।


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