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घोर संकट को भी काट देती है मुखवा की चंदोमति माता

गंगोत्री के शीतकालीन पड़ाव मुखवा गांव के निकट चंदोमति माता का मंदिर अपनी ऐतिहासिक को समेटे हुए है। नवरात्र के दौरान हर वर्ष इस मंदिर में चंडी पाठ का आयोजन होता है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Tue, 20 Mar 2018 12:35 PM (IST)Updated: Wed, 21 Mar 2018 11:14 AM (IST)
घोर संकट को भी काट देती है मुखवा की चंदोमति माता
घोर संकट को भी काट देती है मुखवा की चंदोमति माता

उत्‍तरकाशी, [जेएनएन]: गंगोत्री के शीतकालीन पड़ाव मुखवा गांव के निकट चंदोमति माता का मंदिर अपनी ऐतिहासिक और आध्यात्मिकता को समेटे हुए है। नवरात्र के दौरान हर वर्ष इस मंदिर में चंडी पाठ का आयोजन होता है। सिद्धपीठ चंदोमति देवी की पूजा अर्चना कष्टों के निवारण के साथ ही सुख समृद्धि देने वाली मानी जाती है।

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ऐसे पहुंचें मंदिर

उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर मुखवा गांव पड़ता है। मुखवा तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग की सुविधा है। मुखवा से तीन किलोमीटर की पैदल दूरी पर भागीरथी के किनारे चंदोमति माता का पौराणिक मंदिर है।

ऐतिहासिक मान्यता

चंदोमति माता के मंदिर के निकट तीन नदियों का संगम है। इन नदियों में एक नदी भागीरथी, दूसरी डांडा पोखरी पर्वत से आने वाली देव गंगा तथा तीसरी चंद्र पर्वत से आने वाली हत्याहारणी नदी है। इसके साथ ही जिस स्थान पर मंदिर बना है उस स्थान के निकट 16वीं शताब्दी में तिब्बती लुटेरों और कचोरागढ़ (हर्षिल के निकट) के राणा वंशी भड़ों के बीच युद्ध हुआ था। गंगोत्री तीर्थ क्षेत्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक अध्ययन, गंगोत्री गोमुख सहित कई इतिहास तथा धार्मिक किताबों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। 

निर्माण की शैली

यह मंदिर एक शिला के ऊपर बना हुआ है। मंदिर की निर्माण शैली स्थानीय पहाड़ी शैली है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार टिहरी के राजा कीर्ति शाह ने कराया था। 

धार्मिक मान्यता

मान्यता है कि चंदोमति देवी ने चंड और मुंड का नाश किया था। उनके सिर को एक शिला के नीचे दबा दिए थे। उसी शिला के ऊपर माता चंदोमति माता का मंदिर है। नवरात्र के दौरान इस मंदिर में पूजा अर्चना का विशेष महत्व है। चंदोमति भक्तों के घोर संकट का भी हरण कर देती है। चंदोमति माता के मंदिर में केन्द्रीय मंत्री उमा भारती भी कई बार ध्यान और साधना कर चुकी हैं। 

चंदोमति माता के पुजारी एवं गंगोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित सुरेश सेमवाल का कहना है कि चंदोमति माता मुखवा गांव निवासियों की कुलदेवी भी है। इस मंदिर में पूजा अर्चना का वही विधि विधान है जो गंगोत्री धाम में पूजा अर्चना का होता है। इस मंदिर में चंडी पाठ का सबसे अधिक महत्व है। सच्चे मन से जो भी मां के द्वार पर आता है उसके कष्टों का नाश होता है तथा उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। 

गंगा घाटी के इतिहासकार एवं मुखवा निवासी उमारमण सेमवाल का कहना है कि चंदोमति माता का वर्णन मार्कंडे पुराण में भी मिलता है। इसके साथ ही कई धार्मिक एवं एतिहासिक किताबों में भी इस मंदिर का उल्लेख है। तिब्बती लुटेरों तथा कचोरागढ़ के राणा भड़ों के बीच इस मंदिर के पास युद्ध हुआ था, जिसमें तिब्बती लुटेरे मारे गए थे। द हिमालयन माउंटेन के लेखक जेम्स वेली फेलेजर ने अपनी किताब में हर्षिल के पास के कचोरागढ़ का भी उल्लेख किया है। इस मंदिर तक सड़क पहुंचाने तथा मंदिर के भव्य निर्माण की जरूरत है। 

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