Uttarkashi: जहां थी पलायन की मार, वहां तकनीक और नवाचार से आई बहार; जगमोहन सिंह राणा ने किया कमाल
Uttarkashi जगमोहन सिंह राणा का एक वर्ष का खेती-बागवानी का टर्नओवर 25 से 30 लाख रुपये के बीच है। युवा जगमोहन ने अपनी इस पहल से हिमरोल समेत आसपास के गांवों के एक हजार से अधिक ग्रामीणों को जोड़ा है जिससे सुनहरे भविष्य की उम्मीदें भी जगी हैं। वह ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से गांव के विभिन्न उत्पादों को ‘यमुना वैली’ नाम से शहरों तक पहुंचा रहे हैं।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। गांव में खेती-किसानी करने वाला व्यक्ति अगर वैज्ञानिक तरीके से खेती-किसानी की जानकारी रखने के साथ नवाचार भी करें तो बेहतर उत्पादन और आमदनी बढ़ना तय है। जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 88 किमी दूर हिमरोल गांव निवासी जगमोहन सिंह राणा खेती-बागवानी में नवीन तकनीक का उपयोग और नवाचार कर रहे हैं। वह ऑनलाइन व ऑफलाइन माध्यम से गांव के विभिन्न उत्पादों को ‘यमुना वैली’ नाम से शहरों तक पहुंचा रहे हैं।
जगमोहन सिंह राणा का एक वर्ष का खेती-बागवानी का टर्नओवर 25 से 30 लाख रुपये के बीच है। युवा जगमोहन ने अपनी इस पहल से हिमरोल समेत आसपास के गांवों के एक हजार से अधिक ग्रामीणों को जोड़ा है, जिससे वर्तमान तो खुशहाल हो ही रहा है, सुनहरे भविष्य की उम्मीदें भी जगी हैं।
पलायन की धारणा को बदलने का किया काम
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पलायन की खबर हर किसी को चिंतित करती हैं। रोजगार के लिए युवा बड़ी संख्या में पहाड़ छोड़ रहे हैं। ऐसे में उत्तरकाशी जिले के हिमरोल गांव निवासी जगमोहन राणा ने इस धारणा को बदलने का कार्य किया। अपनी मेहनत, नवाचार और तकनीकी के बूते उन्होंने पहाड़ी ढलान की असिंचित भूमि को सोना उगलने वाला बना दिया।
नौकरी नहीं, खेती को चुना
हिमरोल में 70 नाली (1,51,200 वर्ग मीटर) भूमि पर वह वर्ष 2018 से सेब, आडू़, चुल्लू व खुबानी के साथ सब्जी, औषधीय पौधों और मोटे अनाज का उत्पादन कर रहे हैं। इतिहास विषय में एमए और बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद जगमोहन ने नौकरी के बजाय गांव में ही पुश्तैनी खेती-बागवानी से स्वरोजगार को आगे बढ़ाने की ठानी। उन्होंने सिर्फ एक ही उत्पाद की खेती को लक्ष्य नहीं बनाया, बल्कि मिश्रित कृषि-बागवानी का मॉडल खड़ा किया है।
सघन बागवानी की अपनाई तकनीक
जगमोहन कहते हैं कि पहले पांच नाली (10,800 वर्ग मीटर) भूमि पर सेब के 40 पेड़ थे, जिनसे अच्छा लाभ नहीं मिल पा रहा था। सो, वर्ष 2019 में उन्होंने करीब 40 नाली भूमि पर अल्ट्रा हाई डेंसिटी सीडलिंग सेब और अल्ट्रा हाई डेंसिटी रूट स्टाक प्रणाली पर आधारित सेब की डार्क बैरन गाला, किंगरोट व रेड डिलीशियस प्रजाति के 1600 से अधिक पौधे लगाए। सीडलिंग सघन बागवानी की एक नवीन तकनीक है। इसमें पैदावार के साथ पौधों की आयु भी अधिक होती है। इन पौधों से फसल मिलनी शुरू हो चुकी है। बीते वर्ष पांच मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ और इस वर्ष लक्ष्य 10 मीट्रिक टन रखा गया है। अर्ली वैरायटी होने के कारण सेब के अच्छे दाम मिल जाते हैं।
प्रसंस्करण केंद्र से बढ़ रहा रोजगार
फल-सब्जियों से तैयार किए जाने वाले उत्पादों के लिए जगमोहन ने गांव में ही प्रसंस्करण केंद्र और चुल्लू का तेल निकालने के लिए एक यूनिट खोली है। चुल्लू की गिरी से प्रतिवर्ष 600 लीटर तेल निकाला जा रहा है, जिसकी काफी अधिक मांग भी है। अगले दो वर्ष में जगमोहन ने एक हजार लीटर चुल्लू तेल का लक्ष्य रखा है। चुल्लू के गूदे से चटनी और जूस तैयार किया जा रहा है।
इसके अलावा गांव में उत्पादित होने वाले सेब, आडू़, नाशपाती, खुबानी व माल्टा से जूस, चटनी, अचार और मुरब्बा तैयार किया जा रहा है। साथ ही लाल चावल, मंडुवा, झंगोरा व चौलाई के उत्पादन के साथ एक हजार से अधिक ग्रामीणों से खरीद और पैकेजिंग का कार्य भी हिमरोल गांव में ही हो रहा है। जगमोहन बताते हैं कि देश के विभिन्न स्थानों से उत्पादों की आनलाइन और आफलाइन मांग आती है। इन सभी उत्पादों को ‘यमुना घाटी’ ब्रांड नाम से बेचा जा रहा है। प्रसंस्करण केंद्र, हर्बल टी यूनिट, चुल्लू तेल यूनिट और ग्रेडिंग व पैकेजिंग करने में उन्होंने हिमरोल के 15 व्यक्तियों को नियमित रोजगार भी दिया है।
यह मिला सम्मान
उन्नत किस्म की खेती के लिए कृषि और उद्यान विभाग ने भी जगमोहन का हौसला बढ़ाया। खेती-किसानी के लिए वर्ष 2022 में जगमोहन को ब्लॉक स्तर पर ‘किसान श्री’ सम्मान मिला। वर्ष 2023 में जिला स्तरीय ‘किसान भूषण’ सम्मान और सितंबर 2023 में राज्य स्तर पर सतत विकास लक्ष्य में पहला सम्मान जगमोहन को मिल चुका है। इसके अलावा अन्य कई संस्थाओं ने भी उनको सम्मानित किया।
हर्बल चाय की अच्छी मांग
जगमोहन ग्रामीणों को रोजगार देकर औषधीय गुणों से भरपूर हर्बल चाय का उत्पादन कर रहे हैं। इस चाय की मांग स्थानीय बाजार से लेकर दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र व जम्मू कश्मीर तक से आ रही है। इसके अलावा वह देहरादून की एक कंपनी को भी प्रतिवर्ष तीन से चार क्विंटल हर्बल चाय उपलब्ध करा रहे हैं। वहां से हर्बल चाय विदेश भी भेजी जा रही है। एक वर्ष के अंतराल में वह नौ से 10 क्विंटल हर्बल टी का उत्पादन कर लगभग छह लाख रुपये कमा रहे हैं।
वोकल फॉर लोकल को आगे बढ़ाने का है प्रयास
जगमोहन कहते हैं कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वोकल फॉर लोकल अभियान को आगे बढ़ाने का प्रयास है। गांव में महिलाओं द्वारा तैयार हर्बल चाय को स्थानीय बाजार से लेकर आनलाइन बाजार में बेचना वर्ष 2020 से शुरू किया। हर्बल चाय सात तरह के औषधीय पौधों के फूल व पत्तियों से तैयार होती है। इनमें तुलसी, लेमनग्रास, तेजपत्ता, बुरांश व गुलाब के फूल, स्टेविया और रोजमेरी शामिल है। अधिकांश औषधीय पौधे उनके अपने बगीचे के हैं। इसके अलावा गांव की महिलाएं भी रोजमेरी, तुलसी, लेमनग्रास व तेजपत्ता का उत्पादन कर रही हैं।