वाइब्रेंट विलेज की आर्थिकी को 'संजीवनी' देगा हिमालयी फल सीबकथॉर्न, स्वास्थ्य के लिए भी खासा लाभप्रद माना जाता है यह फल
Himalayan fruit - सीबकथोर्न को वाइब्रेंट विलेज योजना में शामिल किया गया है। ग्रामीण वेग वृद्धि परियोजना (रिप) उत्तरकाशी ने पहले चरण में जसपुर और झाला के 75 परिवारों को सीबकथोर्न के व्यावसायिक उत्पादन से जोड़ा है। इन परिवारों को सीबकथोर्न को पेड़ों से निकालने से लेकर इससे जूस जैम चटनी सिरका आदि उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी। वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत उत्तरकाशी जिले में सीमांत गांवों के समग्र विकास एवं आजीविका संवर्द्धन के लिए आमील (सीबकथोर्न) के उत्पाद बनाए जाने लगे हैं। साथ ही उत्पादन, प्रोसेसिंग, विपणन और ब्रांडिंग की कवायद भी चल रही है।
सीबकथोर्न से सीमांत क्षेत्र के ग्रामीणों की आर्थिकी बदल सकती है। उत्तरकाशी के जसपुरा और झाला गांव में पहली बार तैयार किए गए सीबकथोर्न के चार उत्पादों को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसी वर्ष आठ जनवरी को आयोजित दीदी-भुली महोत्सव में लांच किया था।
बाजार में सीबकथोर्न उत्पादों की काफी अच्छी मांग है। ‘दैनिक जागरण’ पिछले कई वर्षों से सीबकथोर्न के उपयोग का मुद्दा प्रमुखता से उठाता रहा है, अब जाकर सीबकथोर्न को तरजीह मिली है।
सीबकथोर्न को वाइब्रेंट विलेज योजना में शामिल किया गया है। ग्रामीण वेग वृद्धि परियोजना (रिप) उत्तरकाशी ने पहले चरण में जसपुर और झाला के 75 परिवारों को सीबकथोर्न के व्यावसायिक उत्पादन से जोड़ा है। इन परिवारों को सीबकथोर्न को पेड़ों से निकालने से लेकर इससे जूस, जैम, चटनी, सिरका आदि उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया गया है। इन उत्पादों के विपणन के लिए रिप ने इन्हें ‘हाउस ऑफ हिमालयाज’ नाम से बाजार में उतारने को आवेदन किया है, जिसे जल्द शासन से अनुमति मिलने की उम्मीद है।
रिप के परियोजना प्रबंधक कपिल उपाध्याय के अनुसार, एक लीटर जूस का मूल्य 1400 रुपये, 500 ग्राम जैम का 450 रुपये, 250 एमएल सिरका का 250 रुपये और 500 ग्राम चटनी का 450 रुपये निर्धारित किया गया है।
हर्षिल घाटी में 5,500 पौध तैयार
रिप के परियोजना प्रबंधक कपिल उपाध्याय बताते हैं कि सीबकथोर्न की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक मांग है। लेह-लद्दाख में सीबकथोर्न से 500 करोड़ का टर्नओवर है। हर्षिल घाटी में इसे बढ़ावा देने के लिए 5,500 पौध तैयार की गई हैं, जो काश्तकारों की दी जाएंगी।
इसमें ओमेगा-3, ओमेगा-6 और ओमेगा-9 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही इसमें विटामिन-सी की मात्रा संतरे से 12 गुणा अधिक होती है। इसके अलावा भी सीबकथोर्न में कई औषधीय गुण हैं, जिनको लेकर शोध चल रहा है।
संजीवनी से कम नहीं सीबकथोर्न
सीबकथोर्न एक कांटेदार पौधा है, जिसमें बेरी की संरचना से मिलते-जुलते फल लगते हैं। इसे वंडर बेरी, लेह बेरी और लद्दाख गोल नाम से भी जाना जाता है। अनुच्छेद-370 को निष्क्रिय किए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में सीबकथोर्न का खासतौर पर जिक्र करते हुए इसके फायदे गिनवाए थे।
वर्ष 2008 में सीबकथोर्न पर शोध कर चुकीं पीजी कॉलेज उत्तरकाशी में वनस्पति विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. ऋचा बधाणी बताती हैं कि उत्तराखंड में सबसे अधिक सीबकथोर्न गंगोत्री नेशनल पार्क और हर्षिल घाटी में होता है। समुद्र तल से 2,000 मीटर से लेकर 3,500 मीटर तक की ऊंचाई पर उगने वाले इस पौधे के फल समेत हर हिस्से में पोषक व औषधीय तत्वों का भंडार समाया हुआ है।
एंटीऑक्सीडेंट और विटामिनों से भरपूर यह पौधा कैंसर, मधुमेह व यकृत की बीमारियों में रामबाण औषधि है। इसकी पत्तियों से ग्रीन-टी, जबकि तने और बीज से विभिन्न प्रकार की दवाइयां व अन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं।
पर्यावरणीय दृष्टि से भी यह पौधा बेहद महत्वपूर्ण है। इसकी जड़ों में जीनस फ्रैंकिया जीवाणु के सहजीवी पाए जाते हैं। इसलिए जहां भी ये पौधे होते हैं, वहां नाइट्रोजन अच्छी मात्रा में होती है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है।
सीमांत क्षेत्र में सीबकथोर्न की बड़ी मात्रा में उपलब्धता को देखते हुए इसके व्यावसायिक उत्पादन का एक्शन प्लान बनाया गया है। इससे हर्षिल घाटी के गांवों के सभी परिवारों को जोड़ने की योजना है। सीबकथोर्न से चाय, लिब बाम, आयल और साबुन तैयार करने के लिए अनुसंधान की भी तैयारी है।
-जय किशन, मुख्य विकास अधिकारी, उत्तरकाशी