देश-विदेश में छाप छोड़ने को तैयार है उत्तरकाशी की दन्न, काफी जटिल होती है इसे बनाने प्रक्रिया
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बनने वाली दन्न को भौगोलिक संकेत टैग की पहचान मिल गई है। इससे आशा है कि हैंडलूम से तैयार उत्तराखंड की दन्न को देश-विदेश में पहचान मिलेगी। इससे आने वाले वक्त में इसे अच्छा बाजार उपलब्ध होगा।
जागरण संवाददाता, उत्तरकाशी। जनपद उत्तरकाशी के नाकुरी और वीरपुर डुंडा में बनने वाली दन्न (भेड़ की ऊन से बनी कालीन) को भौगोलिक संकेत (जीआइ) की पहचान मिल गई है। इससे उम्मीद है कि हैंडलूम से तैयार उत्तराखंड की दन्न (कालीन) को देश-विदेश में पहचान मिलेगी, जिससे आने वाले समय में इसे अच्छा बाजार उपलब्ध हो पाएगा।
डुंडा ब्लाक के नाकुरी और वीरपुर डुंडा के ग्रामीण भेड़ की ऊन से दन्न तैयार करते हैं। भेड़ की ऊन से दन्न सहित विभिन्न ऊनी कपड़े बनाने के व्यवसाय से इन दिनों 200 से अधिक परिवार जुड़े हैं। ग्रामीणों का यह व्यवसाय पुश्तैनी है। इन परिवारों की महिलाएं हैंडलूम में पारंगत हैं। नाकुरी गांव की बसंती देवी कहती हैं, तकली और बागेश्वरी चरखे से ऊन की कताई करने का कार्य भी अधिकांश महिलाएं ही करती हैं। इसके साथ ही दन्न तैयार करने की पूरी जिम्मेदारी भी महिलाओं के पास होती हैं, जो अपने घर के कार्य निपटाने के साथ-साथ हर दिन तीन से लेकर चार घंटे तक दन्न तैयार करने में जुटी रहती हैं। दन्न बनाने का कार्य ये महिलाएं तभी करती हैं, जब कोई व्यक्ति या संस्था की ओर से डिमांड आती है। क्योंकि बीते कुछ वर्षों से दन्न की डिमांड काफी कम हो चुकी है।
35 से 40 साल तक चल जाता है दन्न
दरअसल यहां बनाए जाने वाले पूजा दन्न, योग दन्न, सोफा दन्न, रूम दन्न, कुर्सी दन्न को बाजार नहीं मिल पाया है। दस फीट लंबा और चार फीट चौड़े दन्न को तैयार करने में करीब 20 दिन का समय लगता है। यह दन्न 15 से 20 हजार रुपये की कीमत में बिकता है। यह दन्न 35 से 40 साल तक आसानी से चल जाता है, लेकिन कुछ वर्षों से चाइनीज कालीन बाजार में आने के कारण उत्तराखंड के भोटिया दन्न की मांग बेहद कम हो गई है। जबकि, चाइनीज कालीन केवल दो से तीन वर्ष तक ही चल पाती हैं। हालांकि, अब उत्तराखंड भोटिया दन्न को जीआइ टैग मिल गया है। उम्मीद है कि अब ग्रामीणों के पास दन्न की डिमांड देश-विदेश से आएगी। दन्न के अलावा यहां के ग्रामीण भेड़ की ऊन से पारंपरिक वस्त्र थुलमा, पंखी, शाल, स्वेटर, कोट, चुटका आदि तैयार करते हैं, जिसकी स्थानीय स्तर पर अच्छी मांग है।
काफी जटिल होती है प्रक्रिया
भेड़ पालक हीरालाल नेगी बताते हैं, ऊन से कपड़े तैयार करने की प्रक्रिया काफी जटिल होती है। सबसे पहले ऊन की छंटाई की जाती है, इसके बाद ऊन का तागा तैयार किया जाता है। तागा तैयार करने के बाद रंगाई, फिर दन्न की बुनाई की जाती है। उन्होंने बताया कि पहले वे दन्न बनाकर तिब्बत और नेपाल तक भी बेचा करते थे। उत्तराखंड के भोटिया दन्न को जीआइ टैग दिलाने के लिए प्रयास करने वाले पीजी कालेज उत्तरकाशी के वनस्पति विज्ञान के प्रो. महेंद्रपाल परमार कहते हैं, जीआइ टैग करने के लिए रेणुका देवी कतघर बुनकर स्वायत्त सहकारी समिति डुंडा के नाम से उन्होंने 2015 में आवेदन किया था, जिसके बाद आज सार्थक परिणाम मिले हैं। वे कहते हैं दन्न शब्द गढ़वाली बोलचाल का शब्द है। इसका अर्थ सुंदर और सबसे अच्छा होता है।
भेड़ पालन है मुख्य व्यवसाय
उत्तरकाशी जिले में भेड़पालन मुख्य व्यवसाय है। जिले में डुंडा, बगोरी, नाकुरी, जखोल, हर्षिल, ओसला, गंगाड़, लिवाड़ी, फिताड़ी सहित 15 से अधिक गांवों के ग्रामीण भेड़पालन से जुड़े हैं। उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड के सर्वे के अनुसार वर्तमान में उत्तरकाशी जिले में 85 हजार से अधिक भेड़ हैं, जिनसे प्रतिवर्ष करीब 95 टन से अधिक ऊन निकलती है।
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