स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी पर जुर्माना
संवाद सूत्र, गूलरभोज : बडे़-बडे़ सब्जबाग दिखा बीमा पॉलिसी बेचने और वास्तविक क्लेम के भुगतान में
संवाद सूत्र, गूलरभोज : बडे़-बडे़ सब्जबाग दिखा बीमा पॉलिसी बेचने और वास्तविक क्लेम के भुगतान में तमाम तरह की अड़ंगेबाजी करना निजी क्षेत्र की बीमा कंपनियों का शगल बन गया है। जिला उपभोक्ता फोरम में दायर ऐसे ही एक मामले में पॉलिसीधारक को उसकी हार्ट सर्जरी के उपचार का वास्तविक क्लेम खारिज करना कंपनी को भारी पड़ गया। फोरम में दोषी पाई गई कंपनी को पूरे क्लेम भुगतान के साथ जुर्माना अदा करने का हुक्म सुनाया गया। फोरम का यह आदेश उन कंपनियों के लिए भी नसीहत हो सकता है, जो बेवजह क्लेम भुगतान में अड़ंगेबाजी करते हैं।
ग्राम गोविंदपुर, गूलरभोज निवासी मनवीर सिंह पुत्र दर्शन सिंह ने संयुक्त रूप से अपनी पत्नी बलवीर कौर के साथ स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी के अभिकर्ता से 23 फरवरी 2017 को फैमिली हेल्थ ओपटिमा इंश्योरेंस प्लान लिया था। इस दौरान दोनों पति-पत्नी की ईसीजी, शुगर, बीपी, कोलस्ट्रॉल, किडनी, लिवर आदि स्वास्थ्य जांचों के बाद फिटनेस दिया गया। पॉलिसी लेने के 34 दिन बाद यानी 11 अप्रैल को मनवीर सिंह को सीने में तेज दर्द की शिकायत के चलते सीएचसी गदरपुर दिखाया, जहां हार्ट ब्लॉकेज की बात सामने आने के बाद उन्हें हायर सेंटर रेफर कर दिया गया। नई दिल्ली के एक निजी अस्पताल में 13 अप्रैल को मनवीर सिंह को भर्ती किया गया और हार्ट की बाईपास सर्जरी की गई। इस बाबत कंपनी से कैसलेस उपचार की सुविधा मांगी तो दावा ठुकरा दिया गया। बाद में भेजे गए नोटिस का भी कंपनी ने जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। हताश होकर मनवीर सिंह ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से कंपनी के शाखा प्रबंधक व मैनेजिंग डायरेक्टर को प्रतिवादी बना जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, रु द्रपुर में 23 अगस्त 2017 को वाद दायर किया। मामले में बीती 10 अगस्त को हुई बहस में वादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र गोस्वामी ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ऐसे ही मामलों में पारित निर्णयों की तमाम नजीरें और दलीलें पेश की। अधिवक्ता के तर्कों से सहमत फोरम अध्यक्ष आरडी पालीवाल और सदस्य सबाहत हुसैन खान ने एकमत से कंपनी को सेवा में कमी का दोषी माना। निर्णय की तिथि से एक माह के अंदर वादी मनवीर सिंह को सात प्रतिशत साधारण ब्याज की दर से दो लाख 91 हजार दो सौ दस रु पये, मानसिक, आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए बीस हजार और बतौर वाद व्यय दस हजार देने का हुक्म सुनाया। इंसेट-
इसलिए खारिज हुआ कंपनी का वाद
कंपनी ने क्लेम खारिज करने के संबंध में फोरम में बताया कि वादी मनवीर सिंह को लंबे समय से डीएम (डायबिटीज मैलिटस)टाइप-टू की बीमारी थी, जो उसने पॉलिसी लेते हुए छिपाई थी। इस बाबत कंपनी ने दिल्ली से उपचारित अस्पताल की डिस्चार्ज समरी को सुबूत के तौर पर रखा, जिसमें मनवीर सिंह को डीएम टाइप-टू की लंबे समय से बीमारी का उल्लेख किया गया था। लेकिन कंपनी फोरम में यह साबित नहीं कर पाई की डीएम टाइप-टू बीमारी का संबंध हृदय रोग से है। दरअसल डीएम टाइप-टू बीमारी का संबंध मधुमेह से है। जबकि इलाज हृदय रोग का किया गया। इस आधार पर कंपनी को मुंह की खानी पड़ी।