यूएस-कनाडा की तर्ज पर बनेगा प्राकृतिक जल संरक्षण का प्लान
प्राकृतिक जल प्रदूषण होने व स्त्रोत बंद होने से पर्यावरण प्रभावित होता है। इसकी रोकथाम को मंथन हुआ।
अरविद कुमार सिंह, रुद्रपुर। प्राकृतिक जल प्रदूषण होने व स्त्रोत बंद होने से मछली की कई प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। जल संरक्षण के लिए अमेरिका-कनाडा में हुए शोध की तर्ज पर पंत विवि प्रोजेक्ट तैयार करेगा। इसमें कनाडा व बांग्लादेश के वैज्ञानिकों का भी सहयोग होगा। बाद में प्रोजेक्ट को सरकार व प्रदूषण फैलाने वाली जिम्मेदार एजेंसियों को सौंपा जाएगा। इससे प्रदूषण को रोका जा सके। वर्तमान में दुनिया की 27 नदियां बीमार हैं, जिनका पानी मछली, जीव जंतु व जलीय घास के लिए घातक हो गया है। इस पर वैज्ञानिकों ने चिता जताया। कहा कि विकास के साथ प्राकृतिक जल संरक्षण का संतुलन बनाना होगा।
बुधवार को पंत विवि के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय में आयोजित भारतीय अंतरस्थलीय जलीय पारिस्थितिकी व स्वास्थ्य विषय पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में हिस्सा लेने आए वैज्ञानिकों ने कहा कि जैव विविधता में उत्पादकता से पारिस्थितिकी डिस्टर्ब हो गया है। मनुष्य स्वार्थ की खातिर प्राकृतिक जल का दुरुप्रयोग करते हैं। नदियों पर बिजली उत्पादन के लिए डैम बनाने से जल प्रवाह कम हो जाता है, जो कि मछली प्रजातियों के लिए अनुकूल नहीं होता है। मछलियों के लिए जल प्रवाह बेहद जरूरी है। नदियों के पानी से फसलों की सिचाई होती है। कंपनियों से निकलने वाले दूषित पानी व सीवेज से नदियों का पानी प्रदूषित हो गया है। सेंट्रल इंग्लैंड फिशरी रिसर्च इंस्टीट्यूट बैरकपुर के वैज्ञानिक डॉक्टर यूके सरकार ने बताया कि भारत में आठ लाख हेक्टेयर वेटलैंड था, जो नदियों से कनेक्ट रहा। सबसे ज्यादा वेटलैंड बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश व असम में है। वेटलैंड में करोड़ों लोग तरबूज, सब्जी आदि की खेती कर परिवार का आजीविका चलाते थे। मगर प्राकृतिक जल स्त्रोतों के सूखने, नदियों का पानी कम होने से लाखों परिवार के सामने संकट गहरा गया है। नदियों में 90 फीसद मछलियां होती थीं। इनमें 40 फीसद मछलियों की प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं। इनमें चीतल, पापदा जैसी प्रजातियां गायब हो गई हैं। बताया कि प्राकृतिक जल स्त्रोतों को संरक्षण से वेटलैंड बच सकता है।
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वनों का कटाव व डैम मछलियों के लिए हानिकारक
रुद्रपुर : पंत विवि के मत्स्य विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एपी शर्मा ने बताया कि कंपनियों से निकलने वाले दूषित पानी व सीवेज से नदियों, झीलों, जलाशयों का पानी प्रदूषित होता जा रहा है। इस तरह से प्राकृतिक जल का दोहन हो रहा है। इससे जल स्त्रोत सूखते जा रहे हैं। हिमालय में वनों का कटाव, नदियों में डैम बनाने से जल प्रवाह कम होना मछलियों के लिए ठीक नहीं है। शिल्टिग होने से नदियां जगह-जगह सूख गई हैं। बताया कि कनाडा में झील ज्यादा है। अमेरिका व कनाडा के वैज्ञानिक मिलकर प्राकृतिक जल स्त्रोतों व संरक्षण के लिए शोध किए हैं और कर भी रहे हैं। यह काफी प्रभावी साबित हो रहा हैं। उसी तर्ज पर सेमिनार में प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए प्लान तैयार करने का निर्णय लिया गया है। प्लान तैयार करने के बाद सरकार, प्रदूषण फैलाने वाली जिम्मेदार एजेंसियों को दिया जाएगा, जिससे जल संरक्षण व प्रदूषण को रोका जा सके। बताया कि जब 500 मोस्ट प्रोबेबल नंबर यानि एमपीएन पर लीटर से ज्यादा और प्रति लीटर पानी में यदि पांच मिलीमीटर से ज्यादा बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड मिलता है तो पानी प्रदूषित माना जाता है। यह मानक 29 नदियों में अधिक पाया गया है।
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ये हैं बीमार नदियां
भारत की गंगा, यमुना, मिथी, ब्रहमपुत्र नदी, इंडिया-पाकिस्तान से जुड़ी इंडस नदी, इंडोनेशिया की सिटारम, ब्रांटस नदी व सोलो नदी, चीन की येलो रिवर, यांगटी नदी, एक्सी नदी, हंगप्पा नदी, इटली की सार्नो, बांग्लादेश की बरीन गंगा, फिलीपींस मारिलो, पेसिग नदी, यूनाइटेड स्टेट्स की मिसीसिपी नदी, सवान्न नदी, कुयानोगा नदी, जार्डन नदी, अर्जेंटीना की मंटाजा नदी, ब्राजील की डोस नदी, अफ्रीका के नाइजीरिया की नाइजर नदी, रसिया की नोवा नदी, यूनाइटेड किगडम की टेम, म्यामार की इर्रावड्डी नदी बीमार की श्रेणी में आती हैं। --------------
इनसेट
पंत विवि के मत्स्य विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एपी शर्मा ने बताया कि अमेरिका में जलीय क्षेत्र को ग्रेट लेक्स ऑफ अमेरिका कहा जाता है। झीलों व नदियों में प्रदूषण बढ़ने पर अमेरिका व कनाड़ा के वैज्ञानिकों ने शोध किया तो पानी में कंपनियों से निकलने वाले प्रदूषित पानी से फास्फोरस की मात्रा ज्यादा पाई गई, जो जलीय जंतुओं के लिए घातक है। ऐसे में लोगों को जागरूक कर प्रदूषण से झीलों व नदियों को मुक्त कराया गया। साथ ही झीलों को पुनर्जिवित किया गया।
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सेमिनार कनाडा व बांग्लादेश के थे वैज्ञानिक
रुद्रपुर: पंत विवि के मत्स्य विज्ञान विभाग में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में जलीय पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रबंधन समिति कनाड़ा के अध्यक्ष डाक्टर एम मुनावर, डाक्टर जेनिफर लोरीमर, डाक्टर लीसा एल्डर, बांग्लादेश मत्स्य शोध संस्थान के वैज्ञानिक डाक्टर विनय चक्रवती मौजूद थे।