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पूर्व सहकारिता मंत्री चौधरी समरपाल सिंह का निधन

जासं काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) सहकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले कुंडेश्वरी निवासी प

By JagranEdited By: Published: Fri, 12 Apr 2019 11:13 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 06:13 AM (IST)
पूर्व सहकारिता मंत्री चौधरी समरपाल सिंह का निधन

जासं, काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) : सहकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले कुंडेश्वरी निवासी पूर्व सहकारिता मंत्री चौधरी समरपाल सिंह ने शुक्रवार दोपहर ढाई बजे अपने आवास पर अंतिम सांस ली। लंबी बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। सूचना मिलते ही कांग्रेसी नेताओं ने उनके आवास पहुंचकर शोक संवेदना व्यक्त की। चौधरी समरपाल की अंतिम यात्रा आज उनके निवास से सुबह 10 बजे शुरू होगी। उनका अंतिम संस्कार काशीपुर के श्मशानघाट में किया जाएगा।

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चौधरी समरपाल पुत्र चौधरी भगवंत सिंह का जन्म गांव अहरौली माफी, जिला मुरादाबाद, उप्र में 19 दिसंबर 1923 को हुआ था। इन्हें सहकारिता का भीष्म पितामह कहा जाता था। वह वर्ष 1977 में इफ्को के वाइस चेयरमैन रहे तथा 1995-96 में इफ्को सहकारिता रत्न के पुरस्कार से सम्मानित किए गए। सहकारिता में सुधार के उद्देश्य से कई बार विदेश यात्राएं भी कर चुके थे। देश के कई क्षेत्रों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 80 के दशक में अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार में वह 1988 से 1989 तक सहकारिता राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे। 1985 में वह मुरादाबाद के कांठ से कांग्रेस के विधायक चुने गए थे। यहीं से दोबारा 1989 में भी वह कांग्रेस से विधायक रहे। हालांकि 1993 में उन्होंने अमरोहा, विधान सभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं सके। चौधरी का राजनीतिक अनुभव और सहकारिता के क्षेत्र में उनकी भूमिका के लिए उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने उन्हें सहकारिता राज्यमंत्री बनाया था। पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य खराब होने की वजह से वह राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं थे। हालांकि उनकी पुत्री मुक्ता सिंह कांग्रेस में सक्रिय भूमिका में हैं और प्रदेश महासचिव हैं। हाल ही में उन्होंने काशीपुर नगर निगम के मेयर पद का चुनाव भी लड़ा था। ---------------

(कहां से ली शिक्षा-दीक्षा)

1941 में चौधरी समरपाल सिंह ने कोरोनेशन हिदू इंटर कॉलेज मुरादाबाद से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। 1943 में जाट कॉलेज लखावटी, मुरादाबाद उप्र से प्रथम श्रेणी में इंटरमीडिएट (कृषि) की परीक्षा पास की। 1945 में गवर्नमेंट एग्रीकल्चर कॉलेज, कानपुर से प्रथम श्रेणी में बीएससी (कृषि) और 47 में वहीं से प्रथम श्रेणी में एमएससी (कृषि) की परीक्षा पास की। जिसके बाद 1948 में एग्रीकल्चर कॉलेज कानपुर से एग्रीकल्चर रिसर्च स्कॉलर रहे। इस दौरान वायसराय लार्ड वैवेल ने प्रयोगशाला में इनकी पीठ थपथपाई थी। 1957-59 तक बेलग्रेड विश्वविद्यालय में कृषि सहकारिता विषय का अध्ययन किया। ------------------ (कब किन पदों पर रहे तैनात)

---1957-59 तक डीसीडीएफ मेरठ में सचिव/मुख्य कार्यकारी अधिकारी

---1960-65 तक एस्कॉर्ट फार्म काशीपुर के मैनेजर

---1961-62 तक पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरो के को-ऑपरेटिव एडवाइजर

---1965-67 पंत कृषि विश्वविद्यालय में डिप्टी डायरेक्टर, फा‌र्म्स

---1967-69 तक असम के चाय बागानों में मैसर्स विलियम्सन मेगर के एग्रीकल्चर एडवाइजर

---1962-73 तक नैनीताल जिला सहकारी बैंक के कई बार डायरेक्टर रहे। जबकि 1964-65 तक उपाध्यक्ष पद पर रहे।

---1970-72 तक उप्र को-ऑपरेटिव बैंक, लखनऊ के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्य

---1971-74 तक इलाहाबाद बैंक के मेंबर, बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स काशीपुर गन्ना सहकारी समिति अध्यक्ष

---1971-77 तक काशीपुर गन्ना सहकारी समिति के अध्यक्ष

---1973-76 तक केन यूनियन फाउंडेशन उप्र के मेंबर, बोर्ड ऑफ डारेक्टर्स

---1986-88 तक इफ्को प्रतिनिधि के रूप में तीसरी बार कृभकों में डायरेक्टर नामित हुए।

---1988 में उप्र सरकार द्वारा कृषि विभाग के नीति निर्धारण प्रकोष्ठ में सदस्य बने।


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