केले के रेशे से बने कपड़े को सराहा
संवाद सहयोगी, पंतनगर : इंदिरा गाधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर तथा कृषि विज्ञान केंद्र, जाजगीर
संवाद सहयोगी, पंतनगर : इंदिरा गाधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर तथा कृषि विज्ञान केंद्र, जाजगीर-चम्पा, छत्तीसगढ़ ने अलसी पौधे के डंठल व केले के रेशे से तैयार लिनेन कपड़े ने खूब वाहवाही बटोरी। उत्पाद को जीबी पंत विवि द्वारा आयोजित 104वें किसान मेले में प्रदर्शित किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक किसानों को प्रशिक्षण देकर उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करने सहित इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हैं।
केवीके के वैज्ञानिकों ने बताया कि सबसे पहले कृषक राम आधार देवागन को इसका प्रशिक्षण देकर उसे कपड़ा बुनने के लिए पर्याप्त समान उपलब्ध कराया गया। वैज्ञानिकों के सतत मार्गदर्शन एवं परामर्श से कृषि की विभिन्न नई-नई तकनीकों को अपनाने एवं रुचि दिखाने वाले प्रगतिशील कृषक राम आधार ने अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत की है। अब वह विभिन्न समूहों से जुड़ते हुए इस तकनीक को आग बढ़ाने एवं अन्य किसानों में जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी प्रकार केले के रेशे से लिनेन तैयार करने में भी प्रगतिशील कृषकों ने सफलता प्राप्त की है। इंदिरा गाधी कृषि विश्वविद्यालय व केवीके जाजगीर-चम्पा किसानों में जागरूकता फैलाने व उनको आत्मनिर्भर बनाने में जुटा है। -बाक्स में
ऐसे बनाया जाता है लिनेन कपड़ा
वैज्ञानिकों ने बताया कि अलसी के डंठल को पहले ट्राइकोडर्मा युक्त पानी में पांच दिनों तक भिगोया जाता है। इस प्रक्रिया में डंठल की अवाछित ऊपरी परत अलग हो जाती है। बाद में रेशायुक्त डंठल को अलग कर सुखाया जाता है। फिर तकनीकी रूप से परिवर्तित गन्नारस निकालने वाली मशीन में इसकी पेराई की जाती है। इस प्रक्रिया में प्राप्त रेशे की सफाई कर धागे के रूप में प्रयोग कर कपड़े की बुनाई की जाती है।