संस्कृत भारत की ज्ञान परंपरा की संवाहक
संवाद सूत्र, देवप्रयाग : : संस्कृत विज्ञान से परिपुष्ट भाषा है। पूरे विश्व में इसके जैसी कोई भाषा
संवाद सूत्र, देवप्रयाग: संस्कृत विज्ञान से परिपुष्ट भाषा है। पूरे विश्व में इसके जैसी कोई भाषा नहीं हो सकती। एक दिन विज्ञान भी इस भाषा को अपनाएगा। यह बात राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में राज्यस्तरीय शास्त्रीय स्पर्धा के शुभारंभ अवसर पर वक्ताओं ने कही।
मुख्य अतिथि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता आरपी यादव ने संस्कृत भाषा के संरक्षण व प्रसार में सरकार के प्रयास की सराहना की। विशिष्ट अतिथि केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता एके राय ने कहा कि देवप्रयाग जैसे तीर्थस्थल में संस्कृत शिक्षा का बड़ा संस्थान खुलने से पूरे उत्तराखंड को लाभ होगा। लाल बहादुर शास्त्री विद्यापीठ के ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि संस्कृत भारत की ज्ञान परंपरा की संवाहक है। हम गुरु परंपरा से ज्ञान ग्रहण करते आए हैं, परंतु आज भारत में इस परंपरा का कम होना ¨चता का विषय है। उन्होंने कहा कि असली विद्या वही है, जो व्यक्ति को अज्ञान से विमुक्त करती है। कार्यक्रम अध्यक्ष प्राचार्य प्रो. केबी सुब्बरायुडु ने कहा कि संस्कृत के महत्व का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि विदेशों में यह भारत से अधिक पढ़ाई जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत में एक दिन संस्कृत का उज्ज्वल अतीत अवश्य लौटकर आएगा। अतिथियों का स्वागत डॉ. आर बालमुरुगन व डॉ. कृपाशंकर शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीओम शर्मा ने किया। राज्यस्तरीय शास्त्रीय स्पर्धा के पहले दिन कंठ पाठ में भगवत गीता, काव्य, धातु एवं अमरकोश की स्पर्धाएं आयोजित हुईं। इनमें हरिद्वार स्थित पतंजलि, गुरुकुल पौंधा, भगवान दास संस्कृत महाविद्यालय तथा देवप्रयाग संस्कृत संस्थान के विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस मौके पर डॉ. शैलेश तिवारी, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. अर¨वद गौड़, डॉ. वीरेंद्र बत्र्वाल, डॉ. सुरेश शर्मा, डॉ. नितेश द्विवेदी, डॉ. दिनेशचंद्र पांडेय, पंकज कोटियाल आदि मौजूद थे।