सेंट्रल:: पर्यावरण बचाने को फिर 'चिपको' जैसे आंदोलन की जरूरत
पर्यावरण के सामने आज तमाम खतरे हैं। इनका मुकाबला करने के लिए एक बार फिर चिपको आंदोलन की तर्ज पर नया आंदोलन खड़ा करना होगा। ऐसा तभी संभव है जब हम चिपको आंदोलन के इतिहास से नई पीढ़ी को परिचित कराएं और उसे इस आंदोलन का महत्व समझाएं। यह जिम्मेदारी स्वयं आंदोलन से जुड़े रहे लोग उठाएंगे।
संवाद सहयोगी, चंबा (टिहरी):
पर्यावरण के सामने आज तमाम खतरे हैं। इनका मुकाबला करने के लिए एक बार फिर 'चिपको' आंदोलन की तर्ज पर नया आंदोलन खड़ा करना होगा। ऐसा तभी संभव है जब हम 'चिपको' आंदोलन के इतिहास से नई पीढ़ी को परिचित कराएं और उसे इस आंदोलन का महत्व समझाएं। यह जिम्मेदारी स्वयं आंदोलन से जुड़े रहे लोग उठाएंगे।
'चिपको' आंदोलन से जुड़े लोगों को रविवार को नागणी में आयोजित जागरुकता गोष्ठी में यह निर्णय लिया गया। गोष्ठी में नौ फरवरी 1978 के दिन नरेंद्रनगर में वनों की नीलामी का विरोध करने पर जेल जाने वाले दिवंगत आंदोलनकारियों का भावपूर्ण स्मरण किया गया। बताया गया कि जिन लोगों ने 'चिपको' आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की, उनमें कुंवर प्रसून, प्रताप शिखर, बचन सिंह आदि लोग दिवंगत हो चुके हैं। लेकिन, उनका काम आज भी प्रेरणादायी है। पर्यावरणविद् धूम सिंह ने कहा कि जिस आंदोलन ने उस दौर में पूरी दुनिया का ध्यान खींचा था, आज की पीढ़ी उससे पूरी तरह अनभिज्ञ है। यह गंभीर चिंता की बात है। तय हुआ कि सामाजिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के सहयोग से हर वर्ष नौ फरवरी के दिन जागरुकता गोष्ठी आयोजित की जाएगी। इसमें स्कूली बच्चों को आमंत्रित कर उन्हें 'चिपको' आंदोलन का इतिहास पढ़ाया जाएगा।
यह भी निर्णय लिया गया कि आंदोलन से जुड़े फोटोग्राफ, अखबारों की कटिंग व विभिन्न पत्रिकाओं में छपे लेखों का भी संकलन किया जाएगा। ताकि भविष्य की पीढ़ी अपने संघर्षपूर्ण अतीत से परिचित हो सके। गोष्ठी में आंदोलनकारी दयाल भाई, साहब सिंह सरोज, ज्येष्ठ उप प्रमुख संजय मैठाणी, कांग्रेस जिलाध्यक्ष सूरज राणा, सभासद शक्ति प्रसाद जोशी, ग्राम प्रधान प्रीति जड़धारी आदि ने विचार रखे। 'चिपको' आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाली सुदेशा बहन स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण गोष्ठी में शामिल नहीं हो सकीं।
जीने की सीख देता है 'चिपको' आंदोलन
गोष्ठी में बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार विजय जड़धारी ने कहा कि 'चिपको' एक आंदोलन मात्र नहीं था, बल्कि उसमें पर्यावरण संरक्षण और जीवन जीने की सीख भी थी। इस आंदोलन का फलक बहुत व्यापक था और इसके परिणाम भी क्रांतिकारी रहे। आंदोलनकार दयाल भाई ने कहा कि आधुनिक युग में लोग पूरी तरह मशीनों पर निर्भर हो गए हैं और पर्यावरण की हर स्तर पर अनदेखी हो रही है। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए 'चिपको' जैसे आंदोलन की जरूरत दोबारा महसूस की जा रही है।