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यहां गिरा था सती का बदन, अब है चंद्रबदनी सिद्धपीठ

टिहरी जिले में चंद्रकूट पर्वत पर स्थित चंद्रबदनी सिद्धपीठ करीब आठ हजार फीट पर स्थित है। मान्यता है कि यहां सती का बदन गिरा था। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।

By BhanuEdited By: Published: Thu, 30 Mar 2017 10:20 AM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2017 04:10 AM (IST)
यहां गिरा था सती का बदन, अब है चंद्रबदनी सिद्धपीठ

नई टिहरी, [जेएनएन]: टिहरी जिले में चंद्रकूट पर्वत पर स्थित चंद्रबदनी सिद्धपीठ करीब आठ हजार  फीट पर स्थित है। यहां नवरात्र को श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। मान्यता है कि जो भी भक्त यहां आता है उसके कष्ट दूर हो जाते हैं। 

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यह है मान्यता

मान्यता के अनुसार कालांतर में जब भगवान शंकर सती के  को लेकर ब्रह्मांड में थे तो भगवान विष्णु के सुदर्शन से सती का बदन कट कर यहीं गिरा था। सती के विरह में भगवान शंकर व्याकुल थे। इस स्थान पर भगवान शिव प्रकट हुए। इसी स्थान पर महामाया सती अपने चंद्र समान शीतल मुख के साथ प्रकट हुई। 

सती का चंद्र समान मुख देखकर भगवान शंकर का मोह दूर हो गया और वह प्रसन्नचित हो उठे। देव गंधर्वो ने महाशक्ति के इस रूप दर्शन की स्तुति की। सती के यहां पर चंद्र समान मुख के दर्शन होने से इस सिद्धपीठ का नाम चंद्रबदनी पड़ा। 

चंद्रबदनी के चारों दिशाओं में चार दिगपाल बागीश्वर, नागेश्वर, कोटेश्वर भद्रसेनेश्वर स्थापित हैं। किसी समय इस सिद्धपीठ से तीन धाराएं निकलती थी जो क्रमश: भागीरथी, अलकनंदा व भिलंगना में मिलती थी।

महातम्य

चंद्रबदनी मंदिर में निसंतान दंपती यहां विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते है जिस पर उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। देशभर से लोग पूजा-अर्चना के लिए यहां आते है। जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है। नवरात्र पर यहां पूजा का विशेष फल मिलता है। 

कपाट खुलने का समय

यहां वर्षभर लोगों के दर्शनार्थ के लिए मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। 

मौसम: यहां पर मौसम न ज्यादा ठंडा व और न ज्यादा गरम रहता है। गर्मियों में अन्य सिद्धपीठों के अपेक्षा यहां ज्यादा गरम रहता है।

ऐसे पहुंचे मंदिर तक 

यहां तक पहुंचने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग व जामणीखाल होते हुए जुरा गांव तक 110 किमी बस से सफर करना पड़ता है, यहां से एक किमी की पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जाता है। जिला मुख्यालय से जाखणीधार, अंजनीसैंण होते हुए भी 80 किमी का सफर कर मंदिर तक पहुंचा जाता है।

नवरात्र पूजा विशेष फलदायी 

मंदिर के पुजारी पंजित दाताराम भट्ट के मुताबिक वैसे तो पुण्य अर्जित करने के लिए यहां पर किसी भी समय पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालु आ सकते हैं लेकिन नवरात्र पर इस सिद्धपीठ के दर्शन विशेष फलदायी होता है।

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