सीमांत जिले में दो दिवसीय गौरा-महेश्वर पर्व की धूम
सीमांत जिले का दो दिवसीय लोक पर्व सातू-आठूं (गौरा-महेश्वर) सोमवार को शुरू हो गया है।
संवाद सहयोगी, पिथौरागढ़: सीमांत जिले का दो दिवसीय लोक पर्व सातू-आठूं (गौरा-महेश्वर) सोमवार को शुरू हो गया। नगर में गौरा (मां पार्वती) की प्रतिमा की झांकी महिलाओं ने निकाली। जिले के तमाम गांवों में पहले दिन गौरा प्रतिमा की स्थापना हुई। कोरोना के चलते इस वर्ष सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन नहीं हो सका।
जिला मुख्यालय में पितरौटा वार्ड में मां गौरा की पंच अनाज और घास से प्रतिमा तैयार की गई। विभिन्न मार्गों से महिलाएं गीत गाते हुए प्रतिमा को सिर पर उठाकर रामलीला मैदान तक लाईं। जहां पं. नीरज जोशी ने विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रतिमा की स्थापना करवाई। महिलाओं ने शारीरिक दूरी के मानकों का पालन करते हुए लोक गायन किया। झांकी में सावित्री बिष्ट, गुड्डी वर्मा, निर्मला वर्मा, सुधा देवी, दीपा वर्मा, जानकी पंत, विमला वर्मा, कमला महरा आदि शामिल रहीं। रामलीला प्रबंध कारिणी समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह माहरा ने कहा कि कोरोना की समस्या को देखते हुए इस वर्ष खेल, हिलजात्रा आदि कार्यक्रमों का आयोजन नहीं किया जा रहा है। नगर के जीआइसी रोड स्थित गौरा निवास में सोमवार को गौरा प्रतिमा की स्थापना हुई। मोहनी तिवारी की देखरेख में महिलाओें ने मां गौरा की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। मंगलवार को महेश्वर (भगवान शिव) की प्रतिमा की स्थापना होगी। गौरा-महेश्वर का विवाह संपन्न कराने के साथ ही प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। जिले के तमाम गांवों में सोमवार को सातू-आठूं पर्व की धूम रही, हालांकि इस वर्ष आयोजन स्थलों में भीड़-भाड़ नहीं रही। इधर, डीडीहाट में भी गणेश महोत्सव धूमधाम से मनाया गया।
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बेटियों से जुड़ा है लोक पर्व
सीमांत जिले में मनाया जाने वाला गौरा महेश्वर पर्व बेटियों से जुड़ा है। इस पर्व को मातृशक्ति ही मनाती है। जिले में मां गौरा को हिमालय की बेटी और महेश्वर को दामाद माना जाता है। इस लोक पर्व के दौरान पहाड़ के लोग दोनों की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं। विवाहित बेटियां इस पर्व को मनाने के लिए अपने मायके आती हैं। महिलाएं प्रतिमाओं की स्थापना के साथ खेल आदि आयोजन करती हैं। जिसमें भगवान महेश्वर और गौरा की स्तुति गाई जाती है।