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मिलम मार्ग पर दो पुल ध्वस्त, रिलगाड़ी से मापांग तक बाधक बने ग्लेशियर

संवाद सूत्र मुनस्यारी/धारचूला बैसाख माह प्रारंभ हो चुका है। उच्च हिमालय के बाशिंदों के पग परि

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 10:54 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2019 10:54 PM (IST)
मिलम मार्ग पर दो पुल ध्वस्त, रिलगाड़ी से मापांग तक बाधक बने ग्लेशियर
मिलम मार्ग पर दो पुल ध्वस्त, रिलगाड़ी से मापांग तक बाधक बने ग्लेशियर

संवाद सूत्र, मुनस्यारी/धारचूला: बैसाख माह प्रारंभ हो चुका है। उच्च हिमालय के बाशिंदों के पग परिस्थिति ने रोक लिए हैं। अपने मूल गांवों को जाने को आतुर ग्रामीण प्रकृति के आगे लाचार हैं। मुनस्यारी के उच्च हिमालयी जोहार घाटी में मार्ग पर भारी बर्फ से दो पुल ध्वस्त हैं तो लगभग पांच से सात किमी मार्ग ग्लेशियरों से ढका है। दारमा घाटी में प्रवेश करते ही सेलाथा के पास मार्ग धंस गया है तो आगे हिम शिलाखंड तन कर खड़े हैं।

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उच्च हिमालयी दो घाटियों के 24 गांवों के गांवों के लोक बैसाख माह शुरू होते ही अपने मूल गांवों को रवाना हो जाते हैं। धारचूला की दारमा घाटी और मुनस्यारी की मिलम जोहार घाटी के लोगों का अमूमन माइग्रेशन 15 अप्रैल से होने लगता है। ग्रामीणों को समय से अपने उच्च हिमालयी गांवों पर पहुंच कर खेती करनी होती हैं। इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली खेती के लिए अप्रैल माह के अंत तक खेत तैयार कर ग्रामीण आलू, राजमा, पलथी, जड़ी बूटी की बुआई करते हैं। जो सितंबर अंत तक तैयार होती है। अक्टूबर पंद्रह तक खेती समेट कर ग्रामीणो को घाटियों की तरफ आना पड़ता है।

इस वर्ष 11 अप्रैल तक मतदान के चलते और मार्ग बंद होने के कारण अपने गांव, घर की रेकी करने तक नहीं जा सके हैं। माइग्रेशन से पूर्व मार्ग से लेकर क्षेत्र की रेकी के लिए कुछ ग्रामीण जाते हैं। उनके बताए निर्देश पर ही ग्रामीण आगे का सफर करते हैं। इस बार यह संभव नहीं हो सका है। मुनस्यारी-मिलम मार्ग पर पमद्यो और बंखागाड़ पुल बर्फ के कारण टूट चुके हैं। रिलगाड़ी से मापांग तक पूरे ग्लेशियर आए हैं। अभी तक की सूचना केवल मांपाग तक की है। इससे आगे की जानकारी तक नहीं मिल सकी है।

धारचूला के दारमा घाटी में सेला से आगे सेलाथा के पास हिमस्खलन से आए भारी मलबे से लगभग बीस मीटर मार्ग धंस चुका है। इससे आगे की स्थिति का अभी तक पता नहीं चला है। माना जा रहा है कि नागलिंग के पास से सड़क पर ग्लेशियर होंगे। जिसे लेकर जौलजीवी से गलाती तक रहने वाले दारमा के ग्यारह गांवों के ग्रामीण पशोपेश में हैं। ग्रामीणों को अपने गांव पहुंचने की जल्दी है तो व्यवस्था प्रकृति के आगे लाचार है। माइग्रेशन करने वालों के लिए एक -एक दिन भारी होता जा रहा है।


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