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राया, बजेता के बच्चों के लिए स्कूल जाने तक नहीं है रास्ता

संवाद सूत्र नाचनी सबको शिक्षा बालिका शिक्षा बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देश की फिजा में खूब गं

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Aug 2019 10:52 PM (IST)Updated: Sat, 24 Aug 2019 06:34 AM (IST)
राया, बजेता के बच्चों के लिए स्कूल जाने तक नहीं है रास्ता

संवाद सूत्र, नाचनी : सबको शिक्षा, बालिका शिक्षा, बेटी पढ़ाओ जैसे नारे देश की फिजा में खूब गूंज रहे हैं। सीमांत जिला पिथौरागढ़ के मुनस्यारी विकास खंड के दूरस्थ गांव राया, बजेता गांवों के चालीस के आसपास बालक-बालिकाओं का स्कूल जाने का रास्ता विगत तीन माह से बंद पड़ा है। वैसे की विद्यालय गांव से दस किमी की दूरी पर है ऊपर से मार्ग ध्वस्त होने के कारण बालक-बालिकाएं चट्टानों के बीच जान की बाजी लगाकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। जो 21वी सदी के भारत की तस्वीर को उजागर कर रहा है।

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राया, बजेता गांव तल्ला जोहार के अति दूरस्थ गांव हैं। इन गांवों के लिए प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तहत दस किमी सड़क स्वीकृत है। सड़क के निर्माण की गति इस कदर धीमी है कि आने वाले दस सालों में भी सड़क बन पाएगी इसे कह पाना कठिन है। आज भी गांव के लोगों को खाद्यान्न सहित अन्य सामान के लिए दस किमी का ढलान कर फिर दस किमी की चढ़ाई चढ़ कर ले जाना पड़ता है। ग्रामीण इसे अपनी नियति मान चुके हैं। सड़क स्वीकृति की खुशी सड़क बनाने वाले विभाग ने आफत में बदल दी है।

सड़क निर्माण का कार्य प्रारंभ किया । आधी अधूरी सड़क काटी और ऊपर से ग्रामीणों के पैदल मार्ग को भी ध्वस्त कर दिया। ग्रामीणों ने इसकी शिकायत प्रशासन से लेकर विभाग तक की, परंतु किसी भी अधिकारी ने विषम परिस्थितियों में जी रहे दो गांवों के सौ से अधिक परिवारों के दर्द को देखने तक की जहमत नहीं उठाई । सबसे बड़ा खामियाजा इस गांव से रोज हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई करने वाले पचास के आसपास छात्र-छात्राएं भुगत रही हैं। ये बच्चे दस किमी दूर राइंका बांसबगड़ पढ़ने आते हैं। अभिभावक बताते हैं कि मार्ग की स्थिति देखते हुए साढ़े सात बजे खुलने वाले विद्यालय के लिए उनके बच्चे सुबह साढ़े चार बजे घर से रवाना होते हैं। दिन में डेढ़ बजे विद्यालय बंद होने के बाद सायं पांच बजे बाद घर पहुंचते हैं। बच्चों के सकुशल घर पहुंचने के बाद ही माता-पिता व परिजन को सुकून मिलता है।

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समस्या को सुनने वाले कोई नहीं : दरबान

गांव के पूर्व प्रधान दरबान राम का कहना है कि इस संबंध में दर्जनों बार शासन, प्रशासन व विभाग से अनुरोध किया जा चुका है, परंतु कोई सुनने वाला नहीं है। गांव के सरपंच उच्छाप सिंह कहते हैं कि जब गांव के बच्चे विद्यालय के घर लौटते हैं तो उनके चेहरों की थकान को देख कर ऐसा लगता है कि बच्चों को पढ़ने ही नहीं भेजा जाए, परंतु बिना पढ़े बच्चों के भविष्य को देखते हुए यह नहीं कर सकते हैं। वह बताते हैं किसी भी मंच से उनकी आवाज शासन के कानों तक नहीं पहुंच रही है।


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