थल मेले में आस्था और संस्कृति के हुए दर्शन
संवाद सूत्र थल (पिथौरागढ़) विषवत संक्रांति पर रामगंगा नदी तट पर बालेश्वर मंदिर के प्रांगण में
संवाद सूत्र, थल (पिथौरागढ़): विषवत संक्रांति पर रामगंगा नदी तट पर बालेश्वर मंदिर के प्रांगण में लगने वाले मेले में हजारों भक्तों ने मंदिर में पूजा अर्चना की। इस मौके पर अरिष्ठों के शमन और परिहार के लिए शिवलिंग में जलाभिषेक किया। थल मेले में आस्था और संस्कृति के दर्शन हुए।
थल में शनिवार देर रात्रि दो बजे से ही भक्तों के पहुंचने का सिलसिला जारी हो गया था, जो रविवार अपराह्न तीन बजे तक जारी रहा। मंदिर परिसर में भीड़ लग जाने से थल पुलिस ने बारी-बारी से मंदिर के दर्शन कराए। इस अवसर पर पुरोहित हरीश चंद्र उपाध्याय, पुजारी मथुरा दत्त भट्ट, गिरीश चंद्र भट्ट, भाष्कर भट्ट, भुवन भट्ट सुरेश भट्ट, गणेश भट्ट आदि ने पूजा अर्चना में सहयोग दिया। ========= सरर मालू रा, झुमका बादल पानी सरारा..
थल (पिथौरागढ़): थल मेला समिति के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय ऐतिहासिक थल मेले की पहली रात मां सुनैना सांस्कृतिक पुष्कर महर एंड पार्टी के नाम रही। उनके दल ने न्यौली, छपेली, चांचरी, झौड़ा गीत पेशकर देर रात तक दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। स्टार नाइट के तहत कुमाऊंनी गायक जितेंद्र तोमक्याल ने संगीता मैं फोन करू लों.., सुरेश प्रसाद सुरीला ने यो डाणा को पार.., संदीप लोहिया ने तेरी लवली अन्वार.., चद्रंकला देऊपा ने ओ चंदू डरैवर.., मनोहर आर्य ने डमरु बजै दिन रात.., सीमा विश्वकर्मा ने लौंडा मोहना, तेरि केमुवा गाड़ी.., चंद्र मोहन पांगती ने पहाड़ को ठंडो पानी.., राघव कुमार ने कांछी रे.. गीत गाकर समा बाधा। सांस्कृतिक संध्या के मुख्य अतिथि पर्वतीय महापरिषद लखनऊ के महासचिव गणेश चंद्र जोशी, विशिष्ट अतिथि मुंबई कौथिग के संयोजक जगजीवन सिंह कन्याल थे। इस अवसर पर मेला समिति के अध्यक्ष देवराज सत्याल, व्यवस्थापक दिनेश चंद्र पाठक, सचिव अर्जुन सिंह रावत, कोषाध्यक्ष प्रवीण जंगपांगी ने अतिथियों को सम्मान चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का संचालन कृष्ण गोपाल पंत, हिमाद्रि बृजवाल, और नरेश जोशी ने किया।
======== मोती राम के भगनौला की गायन शैली ने सभी को मोहा
थल (पिथौरागढ़): पीपल के पेड़ के पास भगनौला रात भर चलते रहे। भगनौला की अनौखी गायन शैली का लोगों ने खूब मनोरंजन किया।। भगनौला गायन प्रश्न, उत्तर के साथ कुशल क्षेम पूछने की पुरानी लोक की पुरानी लोक संस्कृति रही है। थल मेले में गाया गए भगनौले ने एक बार लोगों को अपनी पुरानी लोक संस्कृति से परिचित कराया। थल मेले की पहली सांस्कृतिक संध्या में अपनी मूल संस्कृति भगनौले के बोलों ने दर्शकों को मोहित कर दिया। भगनौले के बोल तिमुली को पात न धौ न धिनाली खाई, न चुपडी हाथ, रहाटे की तान ग्यू घालनी घाम, राम ज्यू को भजन करो रोज रात्त्ते ब्याले, सब जंगल को आगि लागि, म्ग क्या क्या खावे क्या रोवे, सुपत्ति्त को सब बाटे विपत्ति न बाटे कोय, सिमलिया हड़ गिर भीड़ भीड़ रड़, ताल मिड पड़ तौहडे राड़ि राड़ि म्यर रु रोनी आपढ़ आदि बोलों के साथ देर रात तक भगनौले के स्वर गूंजे। ====== .. इनके बाद कोई नहीं है भगनौला गायक
थल : मूर्ति गांव निवासी मोती राम उम्र 87 वर्ष, विशन राम 55 वर्ष , भैंस्कोट गांव निवासी रू प राम 80 खीम राम डूणू उम्र 44 साल , शेर राम उम्र 80 वर्ष , ललित मोहन पाठक उम्र 50 साल क्षेत्र के अंतिम भगनौला गायक हैं। संभवतया इनके बाद पहाड़ में ही किसी अन्य भगनौला गायक होने की संभावना नहीं है।भगनौला गायक 80 वर्षीय रू प राम बताते हैं कि जब वह काफी कम उम्र के थे तभी से भगनौला गाना प्रारंभ कर दिया था। वह बताते हैं कि अतीत में जब थल मेले में रौनक रहती थी तो वह पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर भगनौला गाते थे। सुबह भगनौले से उठकर रामगंगा नदी में स्नान करने के बाद मेले में घूम कर आनंद लेते थे। वह कहते हैं कि आधुनिक दौर में यह विधा विलुप्ति पर है जब तक उनकी पीढ़ी के गायक हैं तब तक ही यह विधा है फिर इतिहास बन जाएगी।