नदी ने दिलाई पहचान, अपनों ने मिटा दिया वजूद
जागरण संवाददाता, चम्पावत : लोहावती..। एक ऐसी नदी जिसने लोहाघाट को पहचान दिलाई मगर यहां बसने
जागरण संवाददाता, चम्पावत : लोहावती..। एक ऐसी नदी जिसने लोहाघाट को पहचान दिलाई मगर यहां बसने वालों ने ही इसका वजूद ही मिटा डाला। आज यह नदी अपना अस्तित्व तलाश रही है। आज बेशुमार गंदगी और कीचड़ से पटी है तो वहीं इसकी बसासत को आस्था से जोड़ने वाले ऋषेश्वर मंदिर भी आज कालिख छाई है। उपेक्षा के चलते नदी की गंदगी से इस पर उपेक्षा बरस रही है, लेकिन निकाय चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही इसको बचाने के वादे गलियारों में गूंजने लगे है।
एक दौर था जब लोहावती नदी का पानी निर्मल था, लेकिन धीरे-धीरे उपेक्षा की कालिख बरसती रही और लोग देखते रहे। आज भले ही दो दशक हो गया हो, लेकिन यह नदी बदहाली के आंसू बहा रही है। खास बात यह है कैलाश मान सरोवर यात्रा का पड़ाव भी ऋषेश्वर मंदिर भी इससे जुड़ा है। लाखों भक्त इस मंदिर की आस्था से जुड़े है। इसकी देखरेख का जिम्मा पंचायत प्रतिनिधियों और प्रशासन का था, लेकिन जो भी आता गया वह सत्ता का सुख लेकर चला निकला। लोग बताते हैं कि मंदिर दर्शन के दौरान न सिर्फ इस नदी में स्नान करते थे बल्कि भगवान शिव के इस मंदिर में पूजन-अर्चना भी किया करते है। आज निकाय चुनाव आते ही राजनैतिक गलियारों में फिर इस नदी व मंदिर को बेहतर बनाने का दावा किया जा रहा है। 13 अध्यक्ष बदल गए, लेकिन सूरत जस की तस है।
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यहां इतनी है आबादी
चम्पावत : लोहावती के नाम पर लोहाघाट नाम पड़ने के साथ ही इस नदी पर 15000 की आबादी पानी पी रही है। लेकिन आज नदी की सूरत बदलने व गंदगी से पट जाने के कारण संक्रामक का खतरा बढ़ गया है।
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बदली हुकूमत, नहीं बदली सूरत
चम्पावत : लोहावती नदी के वजूद को मिटाने वाले और कोई नहीं बल्कि यहां बसर कर रहे लोग ही है। जो भी कचरा मिला उसको वहीं फेंक दिया। चौकाने वाली बात यह है कि 13 अध्यक्ष बदल गए, लेकिन इसकी सूरत नहीं बदल सकी।