पिघलने लगे ग्लेशियर, बढ़ने लगा नदियों का जलस्तर
धूप की तपिश बढ़ते ही हिमालय से निकलने वाली नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी होने लगी है।
पिथौरागढ़, जेएनएन : धूप की तपिश बढ़ते ही हिमालय से निकलने वाली नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी होने लगी है। इस वर्ष मौसम के चलते बीते वर्षाें की अपेक्षा लगभग एक माह बाद नदियों के जलस्तर बढ़ा है।
हिमनदों से निकलने वाली नदियों का जलस्तर शीतकाल में अपने अंतिम स्तर पर रहता है। अप्रैल माह से गर्मी बढ़ने के साथ ही नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी होती है। इस वर्ष मौसम मध्य मई तक मौसम खराब रहा। आलम यह रहा कि मई प्रथम सप्ताह तक उच्च हिमालय और ऊंची चोटियों पर हिमपात हुआ। हिमपात होने से उच्च हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने में देरी हुई। शीतकाल में उच्च हिमालय में हिमपात होने से सीजनल ग्लेशियर बनते हैं जो अप्रैल माह में गर्मी बढ़ने के कारण पिघलने लगते हैं। सीजनल ग्लेशियरों के पिघलने से नदी और नालों का जलस्तर बढ़ जाता है।
उच्च हिमालयी व्यास घाटी के ग्लेशियरों का पानी छोटी नदियों और नालों के माध्यम से काली नदी में मिलता है। दारमा घाटी में ग्लेशियरों के पिघलने से सारा पानी धौली नदी, पंचाचूली पश्चिम की तरफ के ग्लेशियरों का पानी मंदाकिनी और मिलम जोहार घाटी में गोरी गंगा नदी में मिलता है। वहीं हीरामणि नामिक ग्लेशियरों का पानी रामगंगा नदी में मिलता है। मध्य अप्रैल से इन सभी नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। इस वर्ष यह प्रक्रिया लगभग एक माह बाद हुई है। बीते आठ-्रदस दिनों से मौसम बदला। धूप खिलने के बाद ग्लेशियरों के पिघलने से बीते दिनों से काली, गोरी, धौली, रामगंगा, मंदाकिनी नदियों के जलस्तर में बढ़ोतरी होने लगी है। ======= नदी किनारे की बस्तियों में बरतनी होगी सावधानी लगातार धूप की तपिश बढ़ने से प्रतिदिन नदियों के जलस्तर में वृद्धि होती है। जिसे लेकर नदी किनारे स्थित बस्तियों के लिए खतरे के संकेत होते हैं। मध्य जून के आसपास से इस क्षेत्र में प्री मानसून बारिश होने पर नदी, नाले विकराल रू प ले लेते हैं। ========= इस वर्ष उच्च हिमालय में हिमपात अधिक हुआ है। ग्लेशियर भी अधिक बने हैं। मई माह के प्रथम पखवाड़े तक मौसम में ठंडक बनी रही। अधिक बर्फ होने के कारण बर्फ धीरे-धीरे पिघल रही है। यदि मौसम ऐसा ही बना रहा तो जून प्रथम सप्ताह तक सभी नदियां ऊफान पर होंगी।
- पीएस धर्मशक्तू, ग्लेशियरों के जानकार