दीपावली में भी नहीं झुलसे मरीजों की इलाज की व्यवस्था
संवाद सहयोगी, चम्पावत : खुदा न खास्ता अगर जनपद में आगजनी की कोई घटना हुई तो इनमें झुलसे ला
संवाद सहयोगी, चम्पावत : खुदा न खास्ता अगर जनपद में आगजनी की कोई घटना हुई तो इनमें झुलसे लोगों के उपचार के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास कोई व्यवस्था नहीं है। दीपावली के नाम पर आपातकालीन वार्ड में इलाज ही मात्र एक व्यवस्था है। अस्पताल में बर्न यूनिट की सुविधा उपलब्ध है और न ही सीएचसी पीएचसी भी। सभी जगह आइसोलेशन वार्ड के भरोसे ही बर्न मरीजों का उपचार किया जा रहा है। यहां तक कि इन मरीजों को देखने के लिए प्लास्टिक सर्जन की भी तैनाती नहीं है।
जनपद की आबादी करीब दो लाख से अधिक है। दीपावली में अक्सर बम पटाखों से चोटिल होने व झुलसने की जाने अंजाने कई घटनाएं हो जाती हैं। ऐसे में जरुरी है कि चिकित्सालय में ऐसे मरीजों के लिए उपचार की उचित व्यवस्था हो। मगर जनपद के जिला चिकित्सालय, सीएचसी, पीएचसी आदि में बर्न यूनिट न होने से ऐसे मरीज आइसोलेशन वार्ड के भरोसे है। जनपद के किसी भी चिकित्सालय में बर्न यूनिट नहीं है। केवल आइसोलेशन वार्ड की सुविधा उपलब्ध है जहा केवल बर्न के मरीजों को अन्य मरीजों से अलग रखा जाता है ताकि किसी प्रकार का इंफेक्शन न फैले। दीपावली के मद्देनजर बर्न मरीजों के उपचार में प्रयोग होने वाली दवाएं एक अक्टूबर को ही जनपद में भेज दी गई थी। जिसे जनपद के जिला चिकित्सालय, सीएच, सीएचसी, पीएचसी व एपीएचसी को सप्लाई कर दिया गया है। सीएमओ डॉ. आरपी खंडूरी ने बताया शरीर का 20 से 25 प्रतिशत तक झुलसना समान्य स्थिति में आता है ऐसे मरीजों का उपचार जनपद में संभव है लेकिन यह प्रतिशत अगर चेहरे और छाती में हो तो इसे गंभीर में रखते हैं। इस स्थिति में मरीज को रेफर करना पड़ता है। तीन ब्लाकों का एक मात्र सीएचसी में भी नहीं बर्न यूनिट
लोहाघाट : जिले भर के अस्पतालों में वर्न यूनिट न होने से साफ जाहिर होता है कि सरकार जनता के प्रति कितनी समर्पित है। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि तीन ब्लाकों का एक मात्र सीएचसी अस्पताल लोहाघाट है जिसमें वर्न यूनिट की कोई व्यवस्था नही है। इतना बड़ा क्षेत्र होने के बाद आग से बचाव के लिए अस्पताल में कोई व्यवस्था नहीं। इस तरह की व्यवस्थाओं से साफ जाहिर होता है कि सरकार में बैठ लोगों अपनी प्रजा के प्रति कितने फिक्र बंद है। बर्न यूनिट व डॉक्टरों का टोटा होने से दिक्कते
टनकपुर : संयुक्त चिकित्सालय टनकपुर में बर्न यूनिट न होने से मरीजों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। यहां मात्र 20 प्रतिशत जले हुए लोगों का ही उपचार किया जाता है। इससे अधिक जलने वाले मरीजों को सुशीला तिवारी हल्द्वानी रेफर कर दिया जाता है। जिससे घायलों को इसका लाभ नही मिल पाता है। यहां चिकित्सकों व कर्मियों की कमी बताकर अक्सर पल्ला झाड़ लिया जाता है। जिससे गरीब तबके के लोग प्राईवेट क्लीनिकों का सहारा लेने को मजबूर होते है। बर्न सेंटर व सर्जन न होने से यह चिकित्सालय रेफर सेंटर नाम से भी जाना जाता है। जबकि यहां पहाड़ के साथ-साथ तराई क्षेत्र के लगभग एक लाख से भी अधिक की आबादी वाला क्षेत्र है। साथ ही पड़ोसी देश नेपाल से भी यहां इलाज के लिए लोग पहुंचते है।
......................... क्या है बर्न वार्ड के मानक - बर्न वार्ड में 20 से 25 डिग्री तापमान हर समय मैंटेन होना चाहिए।
-दिन में तीन चार बार फिनाइल से सफाई होनी चाहिए।
- तीमारदार और चिकित्सक बाहर से पहने जूते अंदर न ले जाएं क्योंकि गंदे जूते चप्पलों से इंफेक्शन का खतरा रहता है।
- मरीज से मिलने वाले लोग एप्रन पहने बिना अंदर न जाएं।
- झुलसे रोगियों से लोगों को बार बार न मिलने दिया जाए। आग से जलने पर क्या करें
- ठंडे पानी से जले हुए स्थान को धो लें
- बर्फ की सिकाई करें
- छालों को फोड़े नहीं
- ज्यादा दर्द व नुकसान होने पर डाक्टर से परामर्श लें।
........................... पटाखे फोड़ते समय इन बातों का रखें ध्यान
= सीमित मात्रा में पटाखे लायें और चलायें
= आतिशबाजी के लिए घर से दूर किसी खुली जगह में जाएँ
= पटाखे चलाते समय अपने पास एक बाल्टी पानी जरूर रखे
= राकेट आदि चलने से पहले ये देख लें कि उसकी दिशा सही है या नहीं जिससे वह बिजली के तार आदि में ना रुके
= हमेशा जूते-चप्पल पहन के पटाखे चलायें क्योकि चिंगारी आपके पाँव में भी लग सकती है
=विशेष ध्यान रखें कि पटाखे चलते समय आपने सूती के कपडे पहले हो ना कि नॉयलान और टेरीकॉट के
= पटाखे चला रहे हों तो अन्य पटाखों को उससे दूर रखें