भारत-नेपाल के बीच लखनपुर में पुल क्षतिग्रस्त, सैकड़ों भारतीय नेपाल में फंसे
भारत-नेपाल के बीच लखनपुर पुल खतरे की जद में आ गया। नेपाल की तरफ पुल की दीवार ढहने से इसे आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया है।
धारचूला, [जेएनएन]: तीन दिन से चटखधूप खिलने से ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने के कारण भारत नेपाल सीमा पर बहने वाली काली नदी का जलस्तर बढ़ चुका है। इससे अप्रैल में कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर बना अस्थायी लखनपुर पुल खतरे की जद में आ गया। नेपाल की तरफ पुल की दीवार ढहने से इसे आवाजाही के लिए बंद कर दिया गया है। पुल बंद होने से सौ से अधिक भारतीय नेपाल में फंस गए हैं।
उच्च हिमालयी व्यास घाटी को जोड़ने वाले मार्ग से ही कैलास मानसरोवर यात्रा और भारत-चीन व्यापार भी संचालित होता है। फरवरी में सड़क निर्माण के दौरान हुए भूस्खलन से लखनपुर से नजंग के बीच करीब तीन सौ मीटर मार्ग ध्वस्त हो गया था। तब शीतकाल की वजह से उच्च हिमालय जनशून्य था। अप्रैल से जनजाति क्षेत्रों के ग्रामीण ग्रीष्मकालीन प्रवास के लिए अपने मूल गांवों को जाते हैं। उनके माइग्रेशन को लेकर प्रशासन ने काली नदी में लखनपुर और नजंग नामक स्थान पर दो पुलों का प्रस्ताव रखा तो नेपाल सरकार ने अनमुति भी दे दी। लखनपुर और नजंग में दो अस्थायी लकड़ी के पुल बनाए गए।
इन पुलों के बनने के बाद से भारत के ग्रामीण और उच्च हिमालय जाने वाले लोग लखनपुर से नेपाल जा रहे थे। अब तीन दिन से मौसम बदल चुका है। चटख धूप खिलने ग्लेशियर पिघल रहे हैं और नदी का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। लखनपुर पुल की आधार दीवार क्षतिग्रस्त होने से अब इसके कभी भी बहने का खतरा मंडरा रहा है। इसीलिए इससे आवागमन बंद कर दिया गया है।
इन गांवों का कटा संपर्क
नेपाल के तिब्बत चीन सीमा से लगे दो गांव टिंकर और छांगरु के ग्रामीण भी इसी मार्ग से आवाजाही करते हैं। इन दो गांवों के अलावा भारत के व्यास घाटी के बूंदी, गब्र्यांग , गुंजी , नाबी, नपलच्यू, रोंगकोंग और कुटी गांवों का संपर्क भी कट गया है।
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