नेपाल के गांवों में भी भारतीयों को भूमि का हक
संवाद सूत्र धारचूला भारत के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की व्यास घाटी के गांवों के ग्रामीणों
संवाद सूत्र, धारचूला : भारत के सीमांत जिले पिथौरागढ़ की व्यास घाटी के गांवों के ग्रामीणों की भूमि आज भी नेपाल में है। सीमा से लगे नेपाल के इन गांवों के भूमिधर भारतीयों को भू उपयोग के लिए लाल पट्टा मिला हुआ है। ग्रामीणों का आज भी नेपाल के गांवों में आना-जाना है, हालांकि अधिकांश लाल पट्टाधारकों ने नेपाल की अपनी जमीन बेच दी हैं। जबकि कुछ अभी भी बंटाई पर जमीन देकर खेती करा रहे हैं। भारतीय क्षेत्र में कालापानी तक भी सारी भूमि गुंजी के गुंज्याल और गब्र्यांग के गब्र्याल परिवारों के ही नाम दर्ज है।
भारत नेपाल के बीच काली नदी सीमा रेखा है। काली नदी के एक तरफ भारत के व्यास घाटी के गांव बूंदी, गब्र्यांग, गुंजी, नाबी, नपलचू, रोंगकोंग, कुटी, कालापानी हैं। दूसरी तरफ नेपाल के टिंकर, छांगरु गांव हैं। भारत के व्यास घाटी के गांवों के ग्रामीणों की काली नदी पार नेपाल के डिलिगड़, रायसुंग, छपटा, कव्वां, छोटी अप्पी में भी भूमि है। राजशाही के दौर में ही नेपाल के राजा द्वारा यह भूमि गब्र्याल एवं गुंज्याल परिवारों को दे दी गई थी। गुंजी सहित व्यास घाटी के ग्रामीण पूर्व में माइग्रेशन के दौरान नेपाल के इन गांवों में निवास करते थे। वर्तमान में कुछ ही परिवार अब वहां जाते हैं। व्यास घाटी निवासी मंगल सिंह, गजेंद्र सिंह, राम सिंह, पान सिंह, भूपाल ंिसह आदि का कहना है कि अब अधिकांश ने जमीन वहीं बेच दी है। जिन परिवारों की भूमि वहां है वे बंटाई पर जौ, मक्का, राजमा, आलू आदि की खेती कर भी रहे हैं। कहते हैं कि नेपाल में कुछ दल विशेष के लोग ही कालापानी सीमा को विवादित करने का प्रयास करते हैं। जबकि हमारे परिवारों के बीच यहां और वहां आपसी भाईचारे के संबंध आज भी कायम हैं।