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उच्च हिमालय के सैकड़ों किसान घाटियों में फंसे

शीतकाल में गर्म घाटी वाले इलाकों को पलायन करने वाले सैकड़ों किसान फंस गए हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 Apr 2020 09:44 PM (IST)Updated: Sat, 11 Apr 2020 06:15 AM (IST)
उच्च हिमालय के सैकड़ों किसान घाटियों में फंसे
उच्च हिमालय के सैकड़ों किसान घाटियों में फंसे

संवाद सूत्र, धारचूला : शीतकाल में गर्म घाटी वाले इलाकों को पलायन करने वाले सैकड़ों किसान परिवार लॉकडाउन के चलते फंस गए हैं। जल्द अपने मूल गांवों में नहीं पहुंचे तो इस वर्ष वे उच्च हिमालय स्थित अपने मूल गांवों में खेती नहीं कर पाएंगे। किसानों ने गुरुवार को तहसील मुख्यालय में मांग पत्र सौंप मेडिकल जांच के बाद मूल गांवों में जाने देने की अनुमति मांगी है।

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सीमांत तहसील धारचूला के अंतर्गत आने वाले उच्च हिमालय के दर्जनों गांवों के लोग नवंबर में शीतकालीन प्रवास के लिए धारचूला, जौलजीवी जैसे घाटी वाले इलाकों में आ जाते हैं। चार माह का समय घाटियों में बिताने के बाद ग्रामीण अप्रैल मध्य से अपने मूल गांवों की और लौटते हैं। वहां वे छह माह तक विभिन्न फसलों के साथ-साथ जड़ी बूटी उत्पादन करते हैं। इसी से उनकी आजीविका चलती है। ग्रामीण अभी मूल गांवों की और लौटने की तैयारी कर ही रहे थे कि लॉकडाउन शुरू हो गया, जिससे वे फंस गए हैं।

उच्च हिमालय के नाबी गांव की ग्राम प्रधान सनम नबियाल ने कहा है कि घाटियों में आए लोग इस समय खाली हाथ बैठे हैं। जल्द गांव नहीं लौटे तो उन्हें अपने वर्षभर की आजीविका से हाथ धोना पड़ेगा। ग्राम प्रधान सनम ने शुक्रवार को यह समस्या एसडीएम अनिल कुमार शुक्ला के सामने रखी। साथ ही मांग की कि उच्च हिमालय में रहने वाले ग्रामीणों की मेडिकल जांच कर उन्हें उनके मूल गांवों के लिए माइग्रेशन की अनुमति दी जाए। एसडीएम ने मामले में उच्चाधिकारियों से वार्ता का भरोसा दिया है।

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दारमा, व्यास के 21 गावों के ग्रामीण करते हैं माइग्रेशन

संसू, धारचूला : उच्च हिमालय स्थित व्यास घाटी के सात और दारमा के 13 गावों के ग्रामीण प्रति वर्ष माइग्रेशन करते हैं। माइग्रेशन में ग्रामीण अपने मूल गावों के लिए पड़ाव दर पड़ाव जाते हैं। दारमा घाटी में सड़क बन चुकी है परन्तु मार्ग पर ग्लेशियर होने से यह बंद है। इस बार अधिक बफऱ्बारी से दारमा घाटी में दो से तीन फीट बर्फ है। तिदाग के निकट तक सड़क है। लाक डाउन और सामाजिक दूरी के कारण अभी जा पाना संभव नहीं है। 15 अप्रैल से शुरू होता है माइग्रेशन दारमा घाटी के ग्रामीण 15 अप्रैल के आसपास और व्यास के बाशिंदे अप्रैल अंतिम सप्ताह तक माइग्रेशन करते हैं। इस बार हालात को देखते इस अवधि में माइग्रेशन संभव नहीं है।

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आलू, राजमा,पलथी , जड़ीबूटी की होती है खेती धारचूला : ग्रामीण उच्च हिमालय में आलू, राजमा, पलथी आदि की खेती करते हैं। फसल तैयार होने में कम से कम तीन से चार माह लगते हैं। खेत तैयार करने में एक माह लग जाता है। अक्टूबर तक ग्रामीणों को फसल समेटकर जौलजीबी से धारचूला तक लौटना पड़ता है। इधर, माइग्रेशन में जाने पर देरी होने पर फसल चक्त्र गड़बड़ा जाएगा। इन गावो के ग्रामीण करते हैं माइग्रेशन व्यास घाटी

कुटी, नाबी, रोंगकोंग, नपलच्यु, गुंजी, गर्ब्याग और बूंदी। दारमा घाटी

चल, सेला, नागलिंग, बॉलिंग, बोगलिंग, दुग्तू, दातू, ढाकर, सोन, सीपू, तिदाग, मार्छा, गो, दोनों घाटियों के डेढ़-दो सौ परिवार करते हैं माइग्रेशन।


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