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बदहाल पड़ा है सातवीं सदी का सूर्य मंदिर

एनके खंडूड़ी, श्रीनगर-गढ़वाल बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि उत्तराखंड में भी ए

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 11:03 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 11:03 PM (IST)
बदहाल पड़ा है सातवीं सदी का सूर्य मंदिर
बदहाल पड़ा है सातवीं सदी का सूर्य मंदिर

एनके खंडूड़ी, श्रीनगर-गढ़वाल

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बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि उत्तराखंड में भी एक ऐसा सूर्य मंदिर भी मौजूद है, जिसका स्थापना काल पुरातत्वविद् छठी से सातवीं सदी के बीच का मानते हैं। यह मंदिर टिहरी जिले के ¨हडोलाखाल विकासखंड मुख्यालय से पांच किमी दूर वनगढ़ क्षेत्र के पलेठी गांव में स्थित है। इस मंदिर को उत्तराखंड के अन्य सभी मंदिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है। मंदिर में शिलापट पर लिखे राजा कल्याण बर्मन व आदि बर्मन का लेख भी मौजूद हैं। जिन्हें उत्तर गुप्त (ब्राह्मी) लिपि में लिखा गया है। यह लिपि छठी-सातवीं शताब्दी में प्रचलित थी। कालसी (देहरादून) के बाद पलेठी का यह शिलालेख उत्तराखंड के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लेकिन, उपेक्षा के चलते यह धरोहर नष्ट होती जा रही है।

देश में प्राचीन सूर्य मंदिर कम संख्या में ही मौजूद हैं। गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल के वरिष्ठ पुरातत्वविद् प्रोफेसर राकेश भट्ट ने अपने शोध और मंदिर में मिले लेख की लिपि के आधार पर पलेठी सूर्य मंदिर के निर्माण का समय 675 से 700 ईस्वी के मध्य का माना है। मंदिर फांसणा शैली में बना है और इसके प्रवेश द्वार के ऊपर सात घोड़ों के रथ पर सवार सूर्यदेव की पत्थर से निर्मित भव्य प्रतिमा विराजमान है। प्रो. भट्ट बताते हैं कि मंदिर के शिखर का निर्माण 12 क्षैतिज पत्थर की पट्टियों से हुआ है और मंदिर की कुल ऊंचाई 7.50 मीटर है। मंदिर में सूर्यदेव की पत्थर से बनी 1.2 मीटर ऊंची दो अद्भुत प्रतिमाएं हैं।

प्रो. भट्ट कहते हैं कि पलेठी का सूर्य मंदिर उत्तराखंड पुरातत्व विभाग के संरक्षण में होने के बावजूद उपेक्षित पड़ा है। इसकी सुरक्षा को लेकर भी पुरातत्व विभाग गंभीर नहीं है। यही वजह है कि रखरखाव के अभाव में यहां स्थित गणेश और पार्वती के मंदिर ध्वस्त हो चुके हैं। सिर्फ सूर्य व शिव के मंदिर ही कुछ ठीक स्थिति में हैं। इसके अलावा सूर्य, गंगा, यमुना, पार्वती व गणेश की मूर्तिया खुले में पड़ी हैं।

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सूर्य मंदिर की विशेषता

इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्वाभिमुख है, जो कि अंग्रेजी के 'टी' के आकार में बना है। इसी तरह के द्वार नचना व देवलगढ़ मंदिरों में भी हैं। इसके आधार पर मंदिर की प्राचीनता गुप्तोत्तर काल मानी जाती है।

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कटारमल सूर्य मंदिर से पांच सदी पुराना

पलेठी सूर्य मंदिर के अलावा गुजरात के पाटन में स्थित मोढेरा सूर्य मंदिर भी छठी-सातवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। जबकि, ओडिशा का कोणार्क सूर्य मंदिर और उत्तराखंड के अल्मोड़ा का कटारमल सूर्य मंदिर 12वीं सदी के आसपास के हैं।


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