जैविक खाद में लगाया जीवन, सुधार रहीं सेहत; जानिए कैसे तैयार की जाती है वर्मी कंपोस्ट
Organic Fertilizer कोरोना ने जहां पूरे विश्व में अर्थव्यवस्था को जमीन पर लाकर पटक दिया। वहीं इस पूरे दौर में ऐसे भोजन पर विशेष जोर दिया जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाए। ऐसे में उन फल-सब्जियों की मांग बाजार में अधिक रही जो जैविक खाद डालकर उगाई गई।
अजय खंतवाल, कोटद्वार। Organic Fertilizer कोरोना वायरस ने जहां पूरे विश्व में अर्थव्यवस्था को जमीन पर लाकर पटक दिया। वहीं, इस पूरे दौर में ऐसे भोजन पर विशेष जोर दिया गया, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाए। ऐसे में उन फल-सब्जियों की मांग बाजार में अधिक रही, जो जैविक खाद डालकर उगाई गई थीं। हालांकि, बाजार में ऐसे उत्पादों की तादाद काफी कम रही, लेकिन इनकी मांग ने जैविक खाद बनाने वालों के चेहरों पर रंगत ला दी।
कोटद्वार नगर निगम के अंतर्गत हल्दूखाता निवासी डॉ. माधुरी डबराल पिछले ग्यारह वर्षों से जैविक खाद (वर्मी कंपोस्ट) तैयार करने के साथ ही काश्तकारों को इस खाद का प्रयोग करने के लिए भी प्रेरित कर रही हैं। हालांकि, उनके प्रयास अधिक सफल नहीं हो पाए, लेकिन पिछले छह माह में बदले परिदृश्य के बीच अब उन्हें उम्मीद की नई किरण नजर आने लगी है।
किशनपुरी निवासी डॉ. डबराल पिछले एक दशक से काश्तकारों के बीच पहुंच उन्हें रासायनिक उर्वरक के दुष्प्रभावों की जानकारी देने के साथ ही जैविक खाद तैयार करने के गुर सिखा रही हैं। वे स्वयं भी केंचुओं से खाद तैयार कर उसे काश्तकारों को देती हैं।
साथ ही उन्हें केंचुओं से खाद तैयार करने की यूनिट लगाने में भी मदद करती हैं। वर्मी कंपोस्ट विषय से पीएचडी करने वाली डॉ. डबराल ने अपने आवास में ही वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की पूरी यूनिट लगाई है। कोरोना वायरस संक्रमण से पहले जहां उनकी यूनिट से हर साल पांच से छह सौ क्विंटल वर्मी कंपोस्ट काश्तकार लेकर जाते थे, पिछले दो महीनों में प्रतिमाह दो से ढाई सौ क्विंटल वर्मी कंपोस्ट की बिक्री हो रही है।
ऐसे तैयार होता है वर्मी कंपोस्ट, आत्मनिर्भर हो सकते हैं गांव
डॉ. डबराल की मानें तो पहाड़ में आर्थिक संकट से जूझ रहे ग्रामीणों के लिए वर्मी कंपोस्ट किसी वरदान से कम साबित नहीं होगा। उन्होंने बताया कि वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए गोबर, चीड़, गाजर घास और लैंटाना की पत्तियों की जरूरत होती है। सभी का मिश्रण तैयार कर उसमें केचुओं को छोड़ दिया जाता है और केंचुए अगले कुछ दिनों में इस मिश्रण को खाद में बदल देते हैं। बताया कि ग्रामीण क्षेत्र में गोबर सहित अन्य पत्तियां आसानी से मिल जाती हैं। बताया कि वे ग्रामीणों को खाद बनाने का प्रशिक्षण देने के साथ ही केंचुए भी मुहैया करवा देंगी। बताया कि ग्रामीण वर्मी कंपोस्ट बनाने के साथ ही वर्मी वॉश, केंचुए व कोकून की भी बिक्री कर सकते हैं।
सौ नई यूनिट लगाने की तैयारी
डॉ. डबराल ने बताया कि कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के बाद कई काश्तकारों ने अपने क्षेत्रों में वर्मी कंपोस्ट की यूनिट लगाने के लिए उनसे संपर्क साधा है। बताया कि इस वर्ष वे पूरे देश में वर्मी कंपोस्ट की सौ बड़ी यूनिटें लगाएंगी। वर्तमान में चमोली और पौड़ी जिलों में पांच सौ से अधिक काश्तकार वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग कर रहे हैं।
साथ ही काशीपुर, जसपुर और देहरादून में कुछ काश्तकार अपने खेतों में वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगवाने के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं। इसके अलावा बिहार, चेन्नई, नागपुर, कपूरथला, यमुनानगर, चंडीगढ़ से वर्मी कंपोस्ट खाद की काफी अधिक डिमांड उन्हें मिली है। बताया कि उनका प्रयास होगा कि इन क्षेत्रों में काश्तकार यूनिट स्थापित कर स्वयं खाद तैयार करे।
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