हिमालयी क्षेत्र में जैव विविधता को बचाना जरूरी
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस को लेकर गो¨वद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिम
जागरण संवाददाता, श्रीनगर गढ़वाल: अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस को लेकर गो¨वद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान की गढ़वाल क्षेत्रीय इकाई ने संस्थान के श्रीनगर कार्यालय पर कार्यक्रम का आयोजन किया। पहाड़ के पर्यावरण और जैव विविधता के महत्व और उसकी जरूरतों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।
माउंटेंस मैटर विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रमुख वैज्ञानिक वक्ताओं का कहना था कि हिमालयी क्षेत्र की प्रभावित हो रही जैव विविधता को देश और समाजहित में बचाना बहुत जरूरी है। पूरे भारत का मौसम भी हिमालय पर ही निर्भर करता है, लेकिन पिछले दो दशकों से हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता जंगल और मानवीय गतिविधियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इससे भी पहाड़ से पलायन को तेजी मिली है।
जीबी पंत संस्थान के गढ़वाल वैज्ञानिक प्रभारी डॉ. आरके मैखुरी ने हिमालयी क्षेत्र के महत्व और यहां की जैव विविधता के बारे में विस्तार से बताया। संसाधनों और पर्यावरण की दृष्टि से हिमालयी पर्वतीय क्षेत्र बहुत धनी भी है, लेकिन इसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं मिल पाता है। डॉ. मैखुरी ने कहा कि पर्यावरण संबंधी विज्ञान और आधुनिक तकनीकियों का समावेश कर के स्थानीय लोगों के जीविकोपार्जन के संसाधन भी बढ़ाए जाने चाहिए। केंद्र सरकार ने पानी, आजीविका, पर्यटन विकास आदि को लेकर जो नेशनल एक्शन प्लॉन मिशन बनाया है, उसमें हिमालय के संरक्षण का विकास भी शामिल है। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. एके जुगरान ने हिमालय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मानवीय कारणों और मानवीय गतिविधियों से हिमालयी क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। वैज्ञानिक डॉ. एके साहनी ने पर्यावरण के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षित रहने से पर्यटन भी बढ़ेगा। डॉ. एस. तरफदार ने जल की महत्ता और उसके संरक्षण पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने कहा कि विश्व की कुल जैव विविधता का 50 प्रतिशत पर्वतों में ही पाया जाता है। भारत का 1/3 भाग हिमालयी क्षेत्र में है, जिसके 45 प्रतिशत भाग पर जंगल भी हैं। जहां 1740 प्रकार की जड़ी बूटियां और 675 प्रकार के जंगली फल भी पाए जाते हैं।